देश में महिलाओं के सशक्तिकरण को लेकर सरकारों द्वारा प्रयास तो होते हैं, लेकिन धार्मिक कारणों के चलते मुस्लिम समाज की प्रगति में उनके अपने ही लोग रुकावट बनते हैं। तीन तलाक के खिलाफ लड़ाई के मुद्दे पर मुस्लिम महिलाओं ने एक लंबा संघर्ष किया था। कुछ इसी तरह रिवर्स तलाक (खुला) के लिए भी इन महिलाओं का संघर्ष जारी है, लेकिन इन महिलाओं ने अपनी इस लड़ाई में एक बड़ा पड़ाव पार कर लिया है, क्योंकि केरल हाईकोर्ट ने अब मुस्लिम महिलाओ के हक में फैसला सुना दिया है, जिसके तहत वो भी अपने पति को उनकी मर्जी के खिलाफ जाकर तलाक देने के लिए आजाद होंगी।
हम सभी को पता है कि कैसे मुस्लिम समाज की महिलाओं को तीन तलाक दे दिया जाता था और उन्हें पति की इस क्रूरता के बाद अपने जीवनकाल में अनेकों संघर्ष करने पड़ते थे, लेकिन मोदी सरकार की सख्त नीति के कारण महिलाओं के साथ न्याय हुआ और तीन तलाक के मुद्दे पर केन्द्र सरकार द्वारा एक सख्त कानून बनाया गया। कुछ इसी तरह अब इन्हीं महिलाओं को अपने तलाक देने के हक के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है। इस मामले में केरल हाईकोर्ट ने इन मुस्लिम महिलाओं को एक बड़ी आशा की किरण दिखाई है।
दरअसल, केरल हाईकोर्ट में मुस्लिम महिलाओं के एकतरफा तलाक के लिए केस चल रहा था जिसमें फैसला सुनाते हुए जस्टिस ए मुहम्मद मुस्ताक और जस्टिस सीएस डायस की बेंच ने मुस्लिम महिलाओं के एकतरफा तलाक़ को सहमति दे दी है। इस मुद्दे पर कोर्ट ने ख़ुला कहलाने वाले तलाक को मुस्लिम महिलाओं के लिए वैध ठहराया है, जो कि मुस्लिम महिलाओं के लिए एक जीत की तरह माना जा रहा है।
इस मामले में अनेकों याचिकाओं के बाद कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा, “डीएमएमए केवल फास्ख को आधिकारिक करता है, जो कि पत्नी के उदाहरण पर तलाक होता है जिसमें एक अदालत बताए गए कारण की वैधता के आधार पर निर्णय लेती है। इसके अतिरिक्त न्यायिक तलाक के अन्य बहुत से तरीके (जैसे तल्ख-ए-तफ़विज़, ख़ुला, और मुबारत) मुस्लिम महिलाओं के लिए उपलब्ध हैं, जैसा कि शरीयत अधिनियम की धारा 2 में बताया गया है।”
मुस्लिम महिलाओं के लिए इसे एतिहासिक फैसला इसलिए माना जा रहा है क्योंकि 1972 मेंकेरल हाईकोर्ट की पीठ ने एक फैसले में मुस्लिम महिलाओं की इस मांग पर आपत्ति जताई थी। कोर्ट केवल कानूनी प्रक्रिया के तहत ही मुस्लिम महिलाओं को अपने पतियों को एकतरफा तलाक देने पर राजी था। उस समय कोर्ट ने कहा था कि महिलाओं को तलाक के लिए डिसॉल्यूशन ऑफ मुस्लिम मैरिजेज एक्ट 1939 (DMMA) के अंतर्गत कोर्ट का रुख करना आवश्यक है। लेकिन अब कोर्ट ने अपने ही फ़ैसले को पलटा है जो कि इन महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात है।
1972 से लेकर आज 2021 तक… यानी करीब 48 सालों के संघर्ष के बाद केरल हाईकोर्ट में मुस्लिम महिलाओं ने एक बड़ी लड़ाई जीती है। ये फैसला इसलिए भी अधिक अहम है क्योंकि इस फैसले को उदाहरण बनाकर देशव्यापी मुहिम चलाई जा सकती है जिससे मुस्लिम महिलाओं के ये हक केवल केरल तक ही सीमित न रहें। यही कारण हे कि इस फैसले को एक पायलट प्रोजेक्ट की सफलता के रूप में भी देखा जा रहा है, जो क मुस्लिम समाज की महिलाओं को अधिक सशक्त बनाएगा।