सबरीमाला फैसले के बाद, भाजपा केरल के नायरों की पहली पसंद, एझावा का शिफ्ट भी भाजपा की तरफ बढ़ा

तेलंगाना भाजपा

New Delhi: BJP president Amit Shah shoes a victory sign after addressing a press conference following party’s victory in the assembly elections, at the party head quarters in New Delhi on Saturday. PTI Photo by Kamal Kishore(PTI3_11_2017_000136B)

नेमम विधानसभा के समीकरण बताते हैं कि केरल का हिन्दू वोटर भाजपा की ओर तेजी से आकर्षित हो रहा है। नेमम को नायर और एझावा समुदाय के राजनीतिक रुझान को समझने के लिए सैम्पल साइज की तरह इस्तेमाल किया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह दोनों समुदाय, जो मूलतः हिन्दू धर्म से जुड़े हैं, नेमम में बड़ी संख्या में पाए जाते हैं. दोनों समुदाय, नेमम की कुल आबादी का 50 प्रतिशत से अधिक हैं।

नेमम इन दिनों चर्चा में भी है। केरल की इस विधानसभा को ‘केरल का गुजरात’ कहते हैं। कारण यह है कि, यही एकमात्र सीट है जहाँ 2016 विधानसभा चुनाव में भाजपा को जीत मिली थी। पिछले कुछ वर्षों में भाजपा ने धीरे धीरे यहाँ पकड़ मजबूत की है, जो केरल में हुए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक बदलाव को दर्शाता है। नायर और एझावा समुदाय, जो क्रमशः कांग्रेस गठबंधन और लेफ्ट गठबंधन का वोटबैंक रहे हैं, चुनाव दर चुनाव भाजपा की ओर खिसक रहे हैं।

National Election Survey की रिपोर्ट बताती है कि 2006 में भाजपा को 11% नायर वोट मिले थे, जो 2016 तक बढ़कर 33% हो गया। वहीं, कांग्रेस नेतृत्व वाले UDF का नायर वोट प्रतिशत हर चुनाव में घट रहा है। UDF को 2011 में नायर वोटबैंक का 43% वोट हासिल हुआ था, जो 2016 में घटकर 20% रह गया।

नायर मूलतः मलयाला क्षत्रिय हैं, जिनका वर्षों तक केरल क्षेत्र के राजतंत्र में प्रभाव रहा है। केरल की 3 करोड़ 18 लाख की कुल आबादी में 44 लाख से अधिक नायर लोग निवास करते हैं। नायर वोट का BJP की ओर झुकाव बढ़ने के कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण मोदी फैक्टर है। 2014 के बाद से हिंदुत्व और विकास की जो लहर चली है, उसने नायर समुदाय को प्रभावित किया है। यही कारण था कि 2019 के लोकसभा चुनाव में नायरों का भाजपा को समर्थन, खुलकर सामने आया। भाजपा को कुल 43% नायर वोट हासिल हुए थे। इसके अतिरिक्त सबरीमाला प्रकरण में भाजपा के आक्रामक रुख ने भी नायर समुदाय को प्रभावित किया है।

वहीं, एझावा समुदाय की बात करें तो इसका भी झुकाव भी धीरे-धीरे भाजपा की ओर बढ़ रहा है। एझावा केरल की हिन्दू आबादी में सबसे बड़ा समुदाय है। केरल की कुल आबादी का 23% हिस्सा एझावा समुदाय का है। यह परम्परागत रूप से लेफ्ट फ्रंट का वोटबैंक रहा है, किंतु 2006 से 2016 के बीच भाजपा का एझावा वोट प्रतिशत 6% से बढ़कर 16% हो गया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि एझावा समुदाय का लेफ्ट से मोहभंग हो रहा है। 2006 में जहाँ लेफ्ट फ्रंट को 64% एझावा वोट मिले वहीं 2016 तक यह आंकड़ा गिरकर 49% रह गया। हालांकि, आज भी लेफ्ट का ठीक ठाक प्रभाव एझावा समुदाय पर मौजूद है, लेकिन इसबार यह समीकरण बदलने की उम्मीद है।

एझावा और नायर की संयुक्त शक्ति किसी भी दल को केरल की सत्ता तक पहुंचा सकती है और नेमम विधानसभा सीट इसके लिए सबसे अच्छी प्रयोगशाला है। यही कारण है कि इसबार यहाँ मुकाबला त्रिकोणीय है। पिछली बार यहाँ मुख्य मुकाबला भाजपा के ओ राजगोपाल और कम्युनिस्ट पार्टी के शिवकुट्टी के बीच था। उस समय राजगोपाल ने दिग्गज नेता और सीटिंग एम एल ए शिवकुट्टी को हराया था। कांग्रेस पहले ही मुकाबले के बाहर थी क्योंकि यह सीट उसने अपने छोटे सहयोगी दल JD’U’ को दे दी थी।

किंतु इस बार यहाँ मुकाबला कांटे का है क्योंकि कांग्रेस ने भी अपने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और सांसद मुरलीधरन को मैदान में उतारा है जो चुनाव जीतने के लिए जाने जाते हैं, जबकि भाजपा और कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने पुराने कैंडिडेट ही मैदान में उतारे हैं। कांग्रेस गठबंधन, लेफ्ट फ्रंट और भाजपा तीनों की नजर नायर और एझावा समुदाय पर ही है।

किंतु भाजपा ने हिंदुत्व और विकास का कार्ड खेला है। जहाँ चुनाव में योगी आदित्यनाथ स्टार प्रचारक बनाए गए हैं। वहीं ई० श्रीधरन का पार्टी में शामिल होना, विकास के प्रति प्रतिबद्धता को दिखाता है। साथ ही केरल में मुस्लिम कट्टरपंथ के फैलाव के कारण भी हिन्दू वोट को भाजपा की ओर खिसका रहा है। एक महत्वपूर्ण मुद्दा सबरीमाला प्रकरण भी है जिसने हिन्दू वोट को भाजपा के पक्ष में एकजुट किया है। ऐसे में केरल चुनाव का परिणाम अप्रत्याशित रूप से भाजपा के पक्ष में भी जा सकता है।

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