Rocketry: The Nambi Effect :कांग्रेस के सताये देशभक्त नंबी नारायणन की कहानी को अब आर माधवन ने Silver Screen पर उतारा

आर माधवन की ये फिल्म कांग्रेस के मुंह पर तमाचा है!

“कभी कभी एक व्यक्ति के साथ की गई नाइंसाफी पूरे देश के साथ गद्दारी होती है”। यह बात कितनी अहम और कितनी प्रभावी है, यह आप पूर्व इसरो वैज्ञानिक एस नंबी नारायणन के जीवन से बेहतर समझ सकते हैं। कुछ झूठे आरोपों के आधार पर जिस विलक्षण प्रतिभा को 50 दिनों के लिए कारावास की यातना झेलनी पड़ी, उससे न केवल भारत की स्पेस आकांक्षाओं को दो दशक पीछे धकेला गया, बल्कि एस नम्बी नारायणन को वो अपमान झेलना पड़ा, जिसके वो कभी हकदार भी नहीं थे। अब उनके संघर्षपूर्ण जीवन को परदे पर उकेरने का बीड़ा उठाया है प्रख्यात अभिनेता आर माधवन ने, जिनके निर्देशन में बनी ‘रॉकेट्री – द नंबी इफेक्ट’ का ट्रेलर हाल ही में प्रदर्शित हुआ है।

छः भाषाओं में बनकर तैयार हो रही यह फिल्म पूर्व इसरो वैज्ञानिक शंकरलिंगम नंबी नारायणन के जीवन पर आधारित है, जिनकी भूमिका स्वयं आर माधवन निभा रहे हैं। इस फिल्म में उनका साथ सिमरन बग्गा, रजित कपूर जैसे कलाकार दे रहे हैं, और शाहरुख खान एवं सूर्या शिवकुमार जैसे अभिनेता अपने अपने संस्करणों में कैमियो रोल भी करेंगे। यह फिल्म नंबी नारायणन के सम्पूर्ण जीवन पर प्रकाश डालेगी, कि कैसे उन्होंने बेहद कम समय में प्रिंसटन विश्वविद्यालय में अपनी पढ़ाई पूरी की, कैसे उन्होंने नासा के प्रस्ताव को ठुकराते हुए भारत की सेवा करनी चाही, और कैसे कुछ स्वार्थी राजनीतिज्ञों और अकर्मण्य अफसरों के कारण एक होनहार वैज्ञानिक द्वारा भारत को अंतरिक्ष की ऊंचाइयों में ले जाने के सपने कई वर्षों तक स्थगित रहे।

आज कई लोग अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर समय समय पर देशद्रोह के आरोप को तानाशाही बताने का प्रयास करते हैं, लेकिन जब नंबी नारायणन के मामले का उल्लेख करें तो इन्हीं बुद्धिजीवियों को सांप सूंघ जाता है। बता दें कि 1994 में नम्बी नारायणन को पाकिस्तान को भारत के संवेदनशील स्पेस तकनीक के बारे में मालदीव के अफसरों के जरिए जानकारी बेचने के इल्जाम में हिरासत में लिया। उन्हें 50 दिनों तक इन आरोपों के अंतर्गत जेल में रखा गया, जिसके कारण उन्हें खूब मानसिक और शारीरिक तौर पर  प्रताड़ित किया गया था।

लेकिन जब सीबीआई को इस मामले की जांच पड़ताल सौंपी गई, तो उनके खुलासे से देशभर में खलबली मच गई। नंबी नारायणन और डी शशिकुमारन के विरुद्ध आरोप न केवल झूठे और बेबुनियाद थे, बल्कि इन आरोपों के पीछे एक मकसद था – वो था, के करुणाकरण को मुख्यमंत्री के पद से हटवाना और एके एंटनी को मुख्यमंत्री बनाना [जो बाद में कांग्रेस की ओर से देश के रक्षा मंत्री भी बने]। यह वही एके एंटनी हैं जिनके बतौर रक्षा मंत्री होते हुए भारत के पास युद्ध लड़ने के लिए पर्याप्त गोलाबारूद भी नहीं बचे थे। नम्बी नारायणन पर इन झूठे आरोपों को ‘पुख्ता’ करने में कथित तौर पर उस आरबी श्रीकुमार का भी नाम शामिल था, जिसने बतौर गुजरात पुलिस अध्यक्ष गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर 2002 के दंगे भड़काने का झूठा आरोप लगाया था।

इसके अलावा नम्बी नारायणन को फंसाने के पीछे एक और कारण था – नंबी नारायणन उस प्रोजेक्ट का भी हिस्सा थे जो क्रायोजेनिक तकनीक के जरिए स्पेस सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेज सकते थे। ये तकनीक भारत को न मिले, इसके लिए तत्कालीन अमेरिकी सरकार ने रूस पर काफी दबाव डाला था। इसलिए नम्बी नारायणन ने इस तकनीक को भारत में ही विकसित करने की योजना बनाई थी, और यदि वे सफल रहते, तो जो उपलब्धियां आज भारत स्पेस जगत में प्राप्त कर रहा है, वह 1994 में ही प्राप्त कर लेता, परंतु ऐसा नहीं हो सका।

मई 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की रिपोर्ट के आधार पर इसरो जासूसी केस में गिरफ्तार सभी आरोपियों को रिहा कर दिया, सीपीएम की नई सरकार ने मामले की फिर से जांच का आदेश दिया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मई 1998 में केरल सरकार द्वारा इस मामले की फिर से जांच के आदेश को खारिज कर दिया।  ये मुकदमा 14 साल तक और चला, जिसमें 2012 तक आते आते केरल सरकार महज 10 लाख रुपये देने को राजी हुई। लेकिन नंबी नारायणन उन लोगों में से नहीं थे जो हाथ पर हाथ रखकर बैठने वाले थे। उन्होंने 7 साल तक निरंतर लड़ाई लड़ी, और अंत में 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार को लताड़ लगाते हुए उन्हें तत्काल प्रभाव से 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया और उन्हें फंसाने के मामले में केरल के पुलिस अफसरों की भूमिका को लेकर न्यायिक कमेटी का गठन किया गया। इसके साथ ही नम्बी नारायणन को केरल की वर्तमान सरकार से 1.3 करोड़ रुपये का अतिरिक्त मुआवजा मिला। इसके अलावा वर्तमान केंद्र सरकार ने नम्बी नारायणन को उनका खोया गौरव लौटाते हुए 2019 में पद्मभूषण से पुरस्कृत किया।

आज यदि आर माधवन इस कर्मठ वैज्ञानिक के संघर्ष को बड़े परदे पर दिखा रहे हैं, तो इसके लिए उनका जितना आभार जताया है, वो कम है। नंबी नारायणन ने जो झेला, वो किसी और भारतीय के साथ फिर कभी न हो, इसलिए ‘रॉकेट्री’ का प्रदर्शित होना बहुत जरूरी है।

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