श्रीलंका की सरकार कट्टर इस्लामिस्टों पर लगाम लगाने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। दरअसल, श्रीलंका ने इस्लामिक स्टेट और अल कायदा समेत 11 कट्टर इस्लामी संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया है। श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने इस बात की जानकारी विशेष राजपत्र अधिसूचना जारी करते हुए दी है।
अधिसूचना के मुताबिक अगर कोई इस कानून का पालन नहीं करता है या किसी आतंकी संगठन से जुड़ता है, तो उस व्यक्ति को 10 से 20 साल कैद की सजा हो सकती है। इस्लामिक स्टेट और अल कायदा समेत 11 कट्टर इस्लामी संगठनों को उग्रवादी गतिविधियों से जुड़े होने की खबर आने के बाद श्रीलंका ने उनके ऊपर पूरे तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है। प्रतिबंधित संगठनों में श्रीलंका इस्लामिक स्टूडेंट्स मूवमेंट के साथ कुछ स्थानीय मुस्लिम संगठन भी शामिल हैं।
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बता दें कि, श्रीलंका देश में बढ़ रहे कट्टर इस्लामिस्टों के प्रकोप को जड़ से खत्म करने की तैयारी में बहुत दिनों से जुटा हुआ है। श्रीलंका में हुए साल 2019 में ईस्टर आतंकवादी हमले के बारे में कौन नहीं जानता। इस आतंकवादी हमले में करीबन 270 लोगों की मौत हो गई थी और 500 से ज्यादा लोग घायल हो गये थे। इस हमले के बाद से श्रीलंका का इस्लाम से प्रति रुख साफ और आक्रामक हो गया है।
इस फैसले से पहले श्रीलंका के मंत्री सरथ वीरसेकरा ने कहा था कि श्रीलंका बुर्का पर प्रतिबंध लगाएगा। साथ ही 1,000 मदरसों के ऊपर भी प्रतिबंध लगाएगा। उन्होंने कहा था कि, “हमारे शुरुआती दिनों में मुस्लिम महिलाओं और लड़कियों ने बुर्का कभी नहीं पहना था। यह धार्मिक अतिवाद का संकेत है, जो हाल ही में आया है। हम निश्चित रूप से इस पर प्रतिबंध लगाने जा रहे हैं।”
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उन्होंने आगे बोलते हुए कहा कि, “कोई भी स्कूल नहीं खोल सकता है और बच्चों को जो कुछ भी आप चाहते हैं वह नहीं सिखा सकते हैं।” श्रीलंका ने यह क्रांतिकारी कदम इसलिए उठाया है, क्योंकि रिपोर्ट्स के मुताबिक श्रीलंका में ISIS अपने पांव पसारने की कोशिश कर रहा है। ISIS यह काम श्रीलंका के लोकल कट्टर इस्लामिस्ट संगठन से मिलकर कर रहा है। ISIS नेशनल तोहीद जमात के माध्यम से बड़े पैमाने पर मुस्लिमों में कट्टरपंथ फैलाकर यहां एक ‘इस्लामिक राज्य’ स्थापित करना चाहता है।
आतंकवाद मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन है, जिसके खात्मे के लिए सभी देशों को साथ मिलकर काम करने की जरूरत है। सभी देशों को पाकिस्तान जैसे आतंक-एक्सपोर्ट देशों का बहिष्कार करना चाहिए। इसके साथ ही आतंक-विरोधी इस लड़ाई में अपनी घरेलू राजनीति को छोड़कर एक दूसरे का पूरा सहयोग करना चाहिए।