रोहिंग्या मुसलमानों और शरणार्थियों का विषय हमेशा ही देश की राजनीति में ज्वलंत रहा है। भारत सरकार इस मसले को लेकर एक ही नीति पर चली है कि प्रक्रिया के तहत देश में पैठ जमाए सभी रोहिंग्याओं को वापस भेजा जाए। सरकार की इसी नीति पर अब देश की सर्वोच्च अदालत ने भी मुहर लगाते हुए साफ कहा है कि जल्द-से-जल्द एक निश्चित मानवीय सहज प्रकिया के तहत देश से रोहिंग्या शरणार्थियों का प्रत्यर्पण शुरू किया जाए। सर्वोच्च अदालत का ये फैसला उन सभी लोगों के लिए झटका है जो कि इस मामले में मुस्लिमों के नाम पर राजनीतिक दुकान खोलकर बैठे थे।
दरअसल, हाल ही केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर से पकड़े गए रोहिंग्या शरणार्थियों का म्यांमार प्रत्यर्पण करने की प्रक्रिया शुरु हो गई हैं जिसको लेकर देश में एक खास वर्ग के लोगों के बचाव में बयानबाजी करने लगा है। ऐसे में इन सभी का पक्ष रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण ने एक याचिका लगाई थी, जिसे निरस्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने खरी-खोटी सुना दी है, और प्रक्रिया के तहत प्रत्यर्पण शुरू करने के आदेश जारी कर दिए हैं।
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सुप्रीम कोर्ट अब रोहिंग्या के मुद्दे पर किसी भी तरह की घुल-मुल नीति अपनाने के पक्ष में नहीं है। कोर्ट ने कहा, “कैंप में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों को तब तक नहीं भेजा जा सकता, जब तक डिपोर्टेशन की पूरी प्रक्रिया का पालन न किया जाए।” सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि किसी भी कीमत पर होल्डिंग सेंटर में प्रशासन की गिरफ्त में रह रहे रोहिंग्या समुदाय के लोगों को रिहा नहीं किया जा सकता है। दिलचस्प बात ये है कि कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला 26 मार्च को ही सुरक्षित कर लिया था।
इस मामले में सलीमुल्लाह नामक रोहिंग्या प्रतिनिधि की याचिका पर संपूर्ण पक्ष रखने वाले वरिष्ठ वकील का कहना था कि अंतर्राष्ट्रीय नियमों के तहत इन सभी रोहिंग्याओं को गिरफ्तारी से आजाद किया जाना चाहिए। इनका म्यांमार में प्रत्यर्पण किया जाना इन सभी लोगों की जान के लिए खतरा होने के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का उल्लंघन भी होगा। इसीलिए कोर्ट को इस मामले में दखल देनी चाहिए।
वहीं, इस मामले में केंद्र सरकार की तरफ से पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने साफ कहा है कि रोहिंग्याओं से जुड़ा मामला देश की आंतरिक सुरक्षा में ख़तरे का परिचायक हो सकता है। सरकार कानून के तहत अपना काम कर रही है, और भारत को किसी भी कीमत पर घुसपैठियों की राजधानी नहीं समझा जाना चाहिए। साफ है कि सरकार इस मुद्दे पर अपने रुख पर अडिग है। ऐसे में ये कहा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रकिया के तहत रोहिंग्याओं को प्रत्यर्पित करने के मुद्दे पर रोहिंग्याओं को किसी भी प्रकार की छूट नहीं मिली है।
कोर्ट द्वारा दिया गया ये फैसला उन सभी एनजीओ और खासकर प्रशांत भूषण जैसे वकीलों के मुंह पर सांकेतिक तमाचा है जो कि रोहिंग्या के मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय स्तर के लोगों का ध्यान आकर्षित करके ये दिखाना चाहते थे कि भारत में शरणार्थियों के खिलाफ अत्याचार जारी है। वहीं, कोर्ट ने साफ कर दिया है, प्रकिया के तहत एक-एक घुसपैठिए को देश से बाहर फेंका जाए।