‘आत्मानिभर भारत ही एकमात्र रास्ता है’, भारत के प्रति तथाकथित वैश्विक शक्तियों की उदासीनता ने यह साबित कर दिया है

भारत को अपने पैरों पर खड़ा होना ही पड़ेगा

NITI आयोग वैक्सीन मिथ

कोरोना महामारी से निपटने के बाद, भारत सरकार की पहली प्राथमिकता भारत को आत्मनिर्भर बनाने की होनी चाहिए क्योंकि आपदा के वक्त ग्लोबल पॉवर कहलाए जाने वाले देश जैसे अमेरिका और जर्मनी भी भारत का साथ नहीं दे रहे है। ऐसे में अपने पैरों पर खड़ा होना ही एकमात्र रास्ता है।

दरअसल बात यह है कि, अमेरिका ने कल साफ कर दिया है कि, जब तक अमेरिका में टीकाकरण की प्रक्रिया पूरे तरह से नहीं हो जाती है, अमेरिका भारत को वैक्सीन बनाने वाला कच्चा माल एक्सपोर्ट नहीं करेगा। वहीं दूसरी ओर जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने भारत की ओर से वैक्सीन मिलने में देर होने के वजह से आपत्ति जताई हैं।

बता दें कि, अमेरिका में जो बाइडन प्रशासन ने वैक्सीन बनाने में इस्तेमाल होने वाले कच्चा माल के एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध लगा दिया है। बाइडेन प्रशासन ने यह फैसला Defense Production Act के तहत लिया है। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस मुद्दे पर 19 अप्रैल को अमेरिका के secretary of State Antony Blinken से बात की थी। लेकिन, कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला।

अमेरिका के पत्रकारों ने जब वैक्सीन बनाने के लिए कच्चा माल के एक्सपोर्ट के बारे में सवाल पूछा तो अमेरिकी के state department के प्रवक्ता Ned Price ने कहा कि, “नंबर एक, हमारे ऊपर अमेरिकी लोगों के लिए एक विशेष जिम्मेदारी है। नंबर दो अमेरिका इस महामारी की मार सबसे ज्यादा झेल रहा है। 550,000 से अधिक मौतें, लाखों लोग संक्रमित हुए है। लेकिन यहां एक ध्यान देने वाली बात है कि, अमेरिकियों को टीके लगाने के लिए प्राथमिकता देना हमारे हित में तो है ही, बल्कि दुनिया के बाकी देशों के हित में भी है।”

इसके बाद जब पत्रकारों ने अमेरिका को Quad मीटिंग में किए हुए वादे को याद दिलाया तो Price ने पल्ला झाड़ते हुए कहा कि, बेशक अमेरिका ने बोला था कि वह एक्सपोर्ट बैन हटाएगा, लेकिन कब हटाएगा उसके बारे में हमने कभी जिक्र नहीं किया था।

वहीं दूसरी ओर यूरोप के जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने प्रेस में बयान जारी कर कहा कि, “जहां तक कोरोना महामारी की आपातकालीन स्थिति का सवाल है, हम चिंतित हैं कि भारत से फार्मास्युटिकल उत्पाद जर्मनी के पास कब तक आएंगे।”

मर्केल ने आगे कहा कि, “बेशक, हमने केवल भारत को इतने बड़े फार्मास्यूटिकल निर्माता बनने की अनुमति दी है। इस उम्मीद से कि भारत इसका अनुपालन करेगा। यदि अब ऐसा नहीं होता है, तो हमें पुनर्विचार करना होगा।”

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अगर हम बीते घटनाक्रम की कड़ी को देखे तो यह देखेंगे कि, पश्चिमी देश बहुत बड़े पाखंडी है। एक तरफ अमेरिका भारत को वैक्सीन बनाने के लिए कच्चा माल नहीं दे रहा है। वहीं दूसरी तरफ जर्मनी भारत से वैक्सीन मिलने में देर होने की वजह से आपत्ति जाता रहा है। इस बीच भारत की कोरोना महामारी की वजह से हालत खुद खराब है।

अमेरिका और जर्मनी के नेताओं का यह रवैया एक ऐसे समय में सामने आया है, जब भारत को उनके सहयोग की सख्त जरूरत है। यह दर्शाता है कि, यदि भारत के लिए समय कठिन होता है, तो भारत की मदद करने के लिए कोई सामने नहीं आएगा। अमेरिका और यूरोप के देश भारत को एक बढ़ती हुई शक्ति के रूप में देखते हैं । इसलिए, जब भी इन देशों को भारत की प्रगति की राह में अड़चन डालने का मौका मिलेगा, तो यह कतई पीछे नहीं हटेंगे।

मोदी सरकार ने सत्ता संभालने के दिन से ही ‘राष्ट्र पहले’ नारा दिया है। राष्ट्रवाद का मुद्दा, एक मुख्य कारण था जिसके वजह से भाजपा सत्ता में आई। भारत को बुनियादी जरूरतों में आत्मनिर्भर बनाने के लिए शुरू किए गए आत्मनिर्भर भारत अभियान को राष्ट्रीय एजेंडा बनाना चाहिए क्योंकि इस एजेंडे के माध्यम से ही भारत आने वाले समय में ‘विश्व गुरु’ बन सकता है।

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