कार्तिक और सुशांत सिंह होने का मतलब है प्रतिभाहीन और भाई-भतीजावाद से भरे बॉलीवुड इंडस्ट्री में कोई जगह नहीं

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PC: Bollywood Hungama

वैसे तो पूरे भारत में शायद ही कोई ऐसा सेक्टर है जहाँ नेपोटिज्म और बाहरी बनाम भीतरी की लड़ाई नहीं है लेकिन बॉलीवुड इस मामले में अलग ही स्तर पर काम करता है। बॉलीवुड में आया हर आदमी किसी न किसी की सिफारिश का मोहताज बन जाता है। आप एक सेट पैटर्न पर सोचते हैं, सिस्टम का हिस्सा बने रहना चाहते हैं, कुछ विशेष लोगों की चापलूसी करने को तैयार हैं तो ही आप यहाँ टिक सकते हैं, वरना बॉलीवुड में स्थापित एलीट आपको कहीं का नहीं छोड़ेगा।

भारतीय सिनेमा इंडस्ट्री, सिर्फ टैलेंट को मारना जानती है। सुशांत सिंह प्रकरण में यह बात खुलकर उजागर हो गई। सुशांत बिहार से जाकर अपने आपको स्थापित करना चाहते थे, उनसे एक ही गलती हुई कि उन्होंने बॉलीवुड के कुछ विशेष लोगों से संबंध बनाकर चलना नहीं सीखा, उनका टैलेंट उनकी जान का दुश्मन बन गया और उन्हें पिक्चर मिलना बंद हो गई। परिणाम पर चर्चा की आवश्यकता नहीं क्योंकि उससे सभी परिचित हैं।

इन दिनों कार्तिक आर्यन को दूसरा सुशांत बनाया जा रहा है। कारण है कि कार्तिक आर्यन ने अपने टैलेंट के दम पर जगह बनाने की कोशिश की है। उन्होंने करण जोहर जैसे स्थापित बॉलीवुड माफिया से संबंध साधकर चलने की जरूरत नहीं समझी, उन्होंने खुलेआम हिन्दू धर्म में अपनी आस्था को प्रदर्शित किया। इसके बाद भी वह सिनेमा जगत का हिस्सा कैसे बने रह सकते हैं।

देखा जाए तो कोई भी इंडस्ट्री बाहरी लोग ही शुरू करते हैं, उसमें जुड़ने वाला हर नया आदमी बाहरी होता है। आम प्रोफेशन में टैलेंट को तवज्जो मिल भी जाती है, लेकिन बॉलीवुड के लिए टैलेंट मायने नहीं रखता। वहाँ मायने रखता है आपका कनेक्शन।

अगर टैलेंट मायने रख रहा होता तो पानीपत जैसी बड़ी फिल्म के लिए अर्जुन कपूर जैसे घटिया एक्टर को नायक नहीं चुना जाता, वो भी तब जब खलनायक की भूमिका में संजय दत्त जैसा मंझा हुआ कलाकार हो। वैसे देखा जाए तो अर्जुन कपूर किसी फिल्म में नायक बनने योग्य नहीं हैं, उनकी फिल्में पिटती रहती हैं, लेकिन उन्हें फिल्मों की कमी नहीं होती। कारण उनके पिता बोनी कपूर प्रोड्यूसर हैं, और उन्होंने यह मान लिया है कि उनका बेटा अगला महानायक बनने के लिए पैदा हुआ है।

एक ओर अर्जुन कपूर हैं वहीं, दूसरी ओर रणदीप हुड्डा, विद्युत जामवाल जैसे कलाकार हैं, जिनके पास एक्टिंग स्किल है, लेकिन सही कनेक्शन न बनाने के कारण उन्हें फिल्में नहीं मिलती। सबसे अच्छा उदाहरण विवेक ओबरॉय है, जिन्हें उनकी जबरदस्त एक्टिंग स्किल के लिए कभी सराहा नहीं गया। ‘शूट आउट एट लोखंडवाला’ में माया के कैरेक्टर में उनकी सराहना हुई, लेकिन उन्हें वो स्टारडम कभी नहीं मिला जिसके वो हकदार हैं। इसका कारण, उन्होंने सलमान खान से दुश्मनी करने की जुर्रत की थी।

बॉलीवुड में बाहरी लोगों को सम्मान मिलता तो पंकज त्रिपाठी, मनोज वाजपेयी, नवाजुद्दीन आदि को स्थापित होने के लिए इतना संघर्ष नहीं करना पड़ता। रवि किशन जैसे बड़े कलाकार को पर्याप्त सम्मान नहीं मिलता, जबकि उन्होंने बुलेट राजा, 1971, तेरे नाम जैसी फिल्मों में हर बार अपने छोटे किरदारों को भी यादगार बनाया है। विजय राज एक और उदाहरण हैं, उन्होंने रन, धमाल, स्त्री आदि फिल्मों में मिले छोटे-छोटे किरदारों को, अपने पांच मिनट के अभिनय से ही लोगों के दिलो दिमाग में स्थापित कर दिया, लेकिन बॉलीवुड में उन्हें कभी सम्मान, धन, मौके नहीं मिले।

बॉलीवुड में आपको अपनी जगह बनाए रखनी है तो तमाम खान, कपूर, चोपड़ा, भट्ट आदि से संबंध साधकर चलना आना चाहिए, सनातन धर्म की बे-सिरपैर की आलोचना करनी आनी चाहिए, ड्रग्स, शारिरिक शोषण, भेदभाव को नजरअंदाज करने की काबिलियत होनी चाहिए, कम शब्दों में कहें तो आप अगर अपना ईमान बेचकर और परमस्वार्थी बनकर जीना सीख जाते हैं तो आपको अपनी जगह बनाए रखने में कठिनाई नहीं होगी।

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