कोरोना की दूसरी लहर ने भारत को बुरी तरह प्रभावित किया है। सरकार ऑक्सिजन से लेकर हॉस्पिटल तक हर मूलभूत सुविधा की उपलब्धता को बनाए रखने के लिए दिन रात मेहनत करने में लगी है। इसी बीच एक जीवन रक्षक दवा ‘रेमडेसिविर’ इन दिनों चर्चा का मुख्य विषय बना हुआ है। रेमडेसिविर की कहीं कम होने की शिकायत रही हैं, तो कहीं जमाखोरी से जुड़ी खबरें, इस पूरे परिदृश्य पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का बयान भी सामने आया है.
अमित शाह ने कहा है कि “रेमडेसिविर का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में हो रहा है, हमने एहतियात के लिए निर्यात पर रोक लगाई है लेकिन लोग डरकर अधिक मात्रा में इसे खरीदने लगे हैं, जिससे शॉर्टेज की समस्या पैदा हो रही है।” अमित शाह ने लोगों से अपील की है कि, ‘अनावश्यक रूप से रेमडेसिविर खरीदने से बचें।‘ उन्होंने कहा कि “बिना डॉक्टर की सलाह के रेमडेसिविर को न खरीदें।“
अमित शाह का बयान विपक्ष के दुष्प्रचार के बीच और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। कांग्रेस शासित राज्यों की ओर से इसकी शिकायत आ रही है कि देश में पर्याप्त मात्रा में रेमडेसिविर नहीं है, वहीं उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री सीधे निर्माताओं से बात कर रेमडेसिविर की उपलब्धता सुनिश्चित कर रहे हैं, कांग्रेस के मुख्यमंत्री केवल जनता में भय फैला रहे हैं।
गौरतलब है कि रेमडेसिविर निर्माता कंपनी Biocon की एग्जीक्यूटिव चेयरपर्सन किरण मजूमदार ने कहा है कि रेमडेसिविर की अचानक बढ़ी मांग के कारण अस्पतालों में इसकी कमी देखी जा रही है। उन्होंने यह बताया की कोरोना का प्रभाव जब कम होने लगा था तो निर्माता कंपनियों ने इसके उत्पादन की गति कम कर दी थी लेकिन दूसरी लहर के अचानक आने से स्टॉक में कमी हुई है, किंतु मई के दूसरे हफ्ते तक रेमडेसिविर को लेकर सारी परिस्थिति सामान्य हो जाएगी।
वास्तविकता यह है कि रेमडेसिविर की कमी देश में नहीं है, किंतु बाजार में इसकी अनुपलब्धता दिखने के कई कारण हैं। देश में कुछ ही कंपनियों को रेमडेसिविर के उत्पादन की छूट मिली थी, सरकार को यह पूर्वाभास नहीं था कि अचानक इसकी मांग बढ़ेगी। वैसे भी रेमडेसिविर को कहीं भी कोरोनानाशक दवा स्वीकार नहीं किया गया है, जैसा भ्रम फैला हुआ है। स्वयं भारतीय विशेषज्ञ मानते हैं कि रेमडेसिविर कोई रामबाण नहीं है। हालांकि, यह गिरते ऑक्सीजन लेवल को रोकने में मदद कर सकता है।
रेमडेसिविर की कमी दिखने का दूसरा सबसे बड़ा कारण हैं जमाखोरी का शुरू होना, जैसे ही चिकित्सकों ने इसको कोरोना के विरुद्ध महत्वपूर्ण बताया, देश भर से जमाखोरी की खबरें आने लगी है और महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश हर जगह जमाखोरी शुरू हो गई है।
तीसरा कारण विपक्षी दलों द्वारा फैलाया जा रहा भ्रम है। विशेषज्ञ मानते हैं कि, रेमडेसिविर का इस्तेमाल एसिम्प्टोमैटिक मरीजों अथवा बहुत अधिक बीमार मरीजों पर असरदायक नहीं है। यह केवल माइल्ड सिम्टम वाले मरीजों के लिए उपयोगी है, किन्तु विपक्षी दलों के भ्रामक प्रचार के कारण कोविड का हर मरीज इसे खरीदना चाहता है। जबकि सभी को न तो इसकी आवश्यकता है और न यह हर मरीज पर कारगर है। महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे राज्यों की सरकार अपनी असफलता को ढकने के लिए दवा की कमी को बहाना बना रही हैं।
सरकार रेमडेसिविर के निर्यात पर प्रतिबंध लगा चुकी है। निर्माता दिन रात मेहनत कर रहे हैं। देश में हर महीने 38.80 लाख इंजेक्शन तैयार किए जा रहे हैं। इस महीने के आखिर तक करीब 80 लाख इंजेक्शन तैयार होंगे। मंत्रालय के मुताबिक, “देश में इस वक्त रेमडेसिविर इंजेक्शन के कुल 7 मैन्यूफेक्चरर्स हैं। अब 6 और कंपनियों को इसके उत्पादन की मंजूरी दी गई है। इससे 10 लाख इंजेक्शन हर महीने और बनाए जा सकेंगे। इसके अलावा 30 लाख यूनिट और बनाए जाने की तैयारियां आखिरी दौर में हैं।“
इन सब के बाद भी इसकी कमी होना प्रशासनिक मशीनरी की असफलता है। राज्य सरकारें ऐसे नियम बनाती है कि बिना डॉक्टरों की सलाह के रेमडेसिविर लोगों को न मिले एवं कालाबाजारी करने वालों पर कार्रवाई तेज कर देती हैं, तो भारत में मई के पहले सप्ताह में ही रेमडेसिविर की बढ़ती मांग के अनुरूप पूर्ति को सुनिश्चित किया जा सकता है। कालाबाजारी पर कार्रवाई के बिना रेमडेसिविर की आपूर्ति कभी भी सुनिश्चित नहीं की जा सकेगी।