अमेरिका ने भारत में बनने वाली वैक्सीन के लिए इस्तेमाल होने वाली कच्ची वस्तुओं की सप्लाई पर प्रतिबन्ध हटाने से मना कर दिया है। बाइडन प्रशासन की तरफ से कहा गया है कि अमेरिका भारत की आवश्यकताओं को समझता है, लेकिन फिलहाल उसके पास भारत के लिए कुछ नहीं है। जब व्हाइट हाउस से इस संबंध में सवाल किया गया, तो प्रेस सेक्रेटरी जैन पास्की ने सीधा जवाब न देते हुए बस इतना कहा कि हम भारत की जरूरतों को समझते हैं।
White house sidesteps & refuses to comment on a question on US ban on #covid vaccine raw material for export to India. pic.twitter.com/og5QvIuOmd
— Sidhant Sibal (@sidhant) April 20, 2021
वहीं, कोविड-19 रिस्पांस टीम के वरिष्ठ सलाहकार और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शस डिसीज के डायरेक्टर डॉ एंथनी फौसी ने कहा कि फिलहाल हमारे पास भारत के लिए कुछ नहीं है। डॉ एंथनी फौसी से भारत में कोविशील्ड वैक्सीन तैयार करने वाले सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला की अपील के बारे में पूछा गया तब उन्होंने कहा, “फिलहाल हमारे पास पूनावाला की मांग को पूरा करने के लिए कुछ नहीं है।“
बता दें कि Serum Institute of India के CEO अदार पूनावाला ने यह खुलासा किया था कि वैक्सीन उत्पादन के लिए होने वाली कुछ ज़रूरी supplies के निर्यात पर अमेरिका और यूरोपीय देशों ने रोक लगा दी है, जिसके कारण आने वाले दिनों में Serum Institute of India की वैक्सीन उत्पादन क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
उसके बाद उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन को टैग कर ट्वीट किया था कि, “आदरणीय राष्ट्रपति, अगर हमें वायरस को सच में हराना है तो मैं अमेरिका के बाहर वैक्सीन उद्योग की ओर से आपसे आपसे विनम्रतापूर्वक अनुरोध करता हूं कि आप कच्चे माल के निर्यात पर लगे प्रतिबन्ध को हटा लें ताकि वैक्सीन उत्पादन में तेजी आ सके। यूएस प्रशासन के पास पूरी डिटेल्स है।“
अगर देखा जाये तो, अमेरिका में वैक्सीन की प्रचुर मात्रा में मौजूदगी के बावजूद अमेरिका ने भारत तथा अन्य देशों में वैक्सीन बनाने के लिए API सहित कई कच्चे माल के एक्सपोर्ट को प्रतिबंधित किया हुआ है। अमेरिका फाइजर और मॉडर्ना (Pfizer and Moderna) वैक्सीन के उत्पादन में तेजी लाया है।इसकी वजह है 4 जुलाई तक पूरी आबादी को टीका लगाने का लक्ष्य। पिछले सप्ताह अमेरिका ने covid-19 वैक्सीन के एक अरब डोज के उत्पादन आंकड़ों को भी पार कर लिया था।
यही नहीं उनके पास वैक्सीन बनाने से कही अधिक जरुरी API और कच्चा माल मौजूद है, परन्तु ऐसे समय में भी अमेरिका किसी देश की मदद नहीं करना चाहता है। कच्चे माल और वैक्सीन उपकरणों पर अमेरिकी एक्सपोर्ट कंट्रोल के कारण कई देशों के अन्दर वैक्सीन उत्पादन में बाधा आ रही है।
भारत के अन्दर उत्पादन हो रहे वैक्सीन के आकड़ों को देखा जाये तो एक महीने में कम से कम 160 मिलियन डोज बनती हैं, लेकिन अगर अमेरिका इन 37 महत्वपूर्ण वस्तुओं की आपूर्ति नहीं करता है तो कुछ सप्ताह में स्थिति में नकारात्मक असर देखने को मिलेगा।
बता दें कि वैक्सीन बनाने वाले कच्चे माल के एक्सपोर्ट को रोकने के लिए जो बाइडन ने 5 फरवरी को ही Defence Production Act (DPA) नामक कानून का इस्तेमाल करने का फैसला किया था। DPA कोरियन युद्ध के दौरान अमेरिका में लागु किया गया था। इसका मकसद राष्ट्रपति को ऐसी ताकत प्रदान करना था जिसके तहत वे किसी भी कॉन्ट्रैक्ट के ऊपर दूसरे कॉन्ट्रैक्ट को राष्ट्रीय सुरक्षा को देखते हुए मंजूरी दे सकते थे।
कठिन परिस्थितियों में इस कानून का इस्तेमाल कंपनियों को कुछ वस्तुओं का निर्यात करने से रोकने के लिए भी किया जा सकता है। इस कानून ने अमेरिकी दवा कंपनियों को अधिक टीके बनाने के लिए आवश्यक कच्चे माल और उपकरणों को सुरक्षित करने में मदद की है।
लेकिन वैक्सीन उत्पादन के लिए आवश्यक उत्पादों की आपूर्ति करने वाली अमेरिकी फार्म का कहना है कि DPA उन्हें निर्यात करने में बाधा डालता है। उन्हें किसी भी वस्तु को निर्यात करने से पहले अनुमति लेनी होगी, जिसके लिए समय और कागजी कार्रवाई की आवश्यकता होती है। अगर अमेरिका की सरकार ने फैसला किया कि उन्हें सामान की आवश्यकता है, तो फर्मों को उन्हें निर्यात करने से रोका जा सकता है। अब इस कारण से वैक्सीन के ग्लोबल सप्लाई चेन में बाधा आ रही है।
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अमेरिकी प्रतिबन्ध के कारण सिर्फ SII चिंतित होने वाली एकमात्र कंपनी नहीं है। कच्चे माल पर लगाये गए ‘निर्यात नियंत्रण’ यूरोपीय वैक्सीन उत्पादकों को भी प्रभावित करते हैं, जिन्हें अपने उत्पादों को बनाने के लिए अमेरिका से विशेष बैग की आवश्यकता होती है।
मार्च की शुरुआत में वैक्सीन सप्लाई चेन की बैठक में एक यूरोपीय दवा कंपनी ने वैक्सीन बैगों की आपूर्ति के लिए 66-सप्ताह के डिलीवरी समय की शिकायत की थी। वहीं 24 मार्च को आयरलैंड के प्रधानमंत्री माइकल मार्टिन ने भी चेतावनी दी कि निर्यात प्रतिबंध वैश्विक टीका उत्पादन को कम कर देगा।
वहीं टीके विकसित करने वाले वैश्विक संगठन Coalition for Epidemic Preparedness Innovations (CEPI) के प्रमुख रिचर्ड हैचेट का कहना है कि “उनका संगठन वैश्विक सप्लाई चेन में बाधाओं के बारे में अत्यधिक चिंतित है।“
यदि सब कुछ सामान्य तौर पर होता तो दुनिया में इस साल वैक्सीन की 14 बिलियन डोज का उत्पादन हो सकता था, लेकिन अगर टीके और कच्चे माल नहीं पहुंचते हैं, तो उत्पादन इस अनुमान से बेहद कम हो जाएगा।
हालाँकि, भारत ने घरेलू जरूरतों को पूरा करते हुए टीकों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। SII के executive director सुरेश जाधव का कहना है कि SII वैश्विक वैक्सीन प्रोग्राम में भाग लेने वाले कार्यक्रम कोवाक्स के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा नहीं कर सकता है, और यूरोप और ब्रिटेन को आपूर्ति नहीं कर सकता है। देखा जाये तो अमेरिका प्रतिबन्ध न हटा कर भारत और भारत पर आश्रित देशों को भी कोरोना जैसी परिस्थिति में मदद नहीं करना चाहता है।
ऐसे समय में जब कई अमेरिकी राज्यों में वैक्सीन का सरपल्स है और तीन में से एक वैक्सीन बिना किसी उपयोग के बेकार जा रही है, तब अमेरिका निर्यात पर प्रतिबंध लगा कर न सिर्फ दुनिया में vaccination को खतरे में डाल रहा है बल्कि दुनिया भर में वैक्सीन की कमी से होने वाली मौतों का भी जिम्मेदार होगा।