भारत सरकार अब अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए पश्चिमी देशों के साथ-साथ चीन और रूस जैसे देशों को सख्त भाषा में जवाब देने से भी पीछे नहीं हट रही है। पिछले दिनों जहां भारत के पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने जलवायु परिवर्तन मुद्दे पर अमेरिका और यूरोप को लताड़ लगाई थी तो वहीं अब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रूस को खरी-खरी सुनाई है।
दरअसल, बीते बुधवार को भारत में मौजूद रूसी राजदूत ने भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के Quad समूह के खिलाफ कई टिप्पणियाँ की थी, और इसे खतरनाक सोच से प्रेरित बताया था। रूसी राजदूत निकोलाय कुदाशेव ने पश्चिमी देशों की हिंद-प्रशांत रणनीति को बेहद खतरनाक बताते हुए इसे शीत युद्ध को दोबारा जिंदा करने की कोशिश बताया था।
इससे पहले रूसी विदेश मंत्री Sergey Lavrov भारत में आकर Quad की आलोचना कर चुके हैं। उन्होंने Quad के लिए एशियन NATO शब्द का प्रयोग किया था और भारत को अमेरिका के हाथों की कठपुतली की तरह बर्ताव नहीं करने को कहा था। इतना ही नहीं, इसके बाद रूसी विदेश मंत्री पाकिस्तान के दौरे पर गए थे जहां उन्होंने पाकिस्तान को सैन्य सहायता प्रदान करने की बात भी कही। ऐसे में अब भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रूस को जबरदस्त लताड़ लगाई है।
जयशंकर ने बुधवार को रायसीना वार्ता के दौरान कहा “क्वाड के बारे में ‘एशियाई नाटो’ जैसे शब्दों का उपयोग ऐसा कहने वालों के एक दिमागी खेल का हिस्सा है। एक साथ आने का मकसद हमारा अपने राष्ट्रीय, क्षेत्रीय व वैश्विक हितों के लिए काम करने की राह तलाशना है। किसी भी देश के पास भारत के स्वतंत्र द्विपक्षीय रिश्तों पर टिप्पणी करने की Veto पावर नहीं है।”
आगे जयशंकर ने रूस को नसीहत देते हुए कहा “हिंद-प्रशांत का मतलब एक ऐसी निर्बाध दुनिया है, जो एतिहासिक रूप से भारत-अरब आर्थिक-व्यापारिक संबंधों और वियतनाम व चीन के पूर्वी तट जैसे आसियान देशों के सांस्कृतिक प्रभावों के रूप में मौजूद थी। मैं कहूंगा कि यह एक तरह से हिंद-प्रशांत के इतिहास की तरफ वापसी है। यह अधिक सामयिक दुनिया को प्रदर्शित करता है। यह शीत युद्ध से उबरने जैसा है और उसे थोपता नहीं है।”
अपनी टिप्पणी से भारत ने रूस को यह स्पष्ट कर दिया कि वह रूस के दबाव में आकर Indo-Pacific क्षेत्र में चीन की आक्रामकता के खिलाफ Quad में अपनी भागीदारी को कम नहीं करेगा। रूस बेशक भारत का एक रणनीतिक साझेदार है। हालांकि, इसके लिए भारत मॉस्को के इशारे पर अपनी विदेश नीति तय नहीं करेगा।
आज का भारत 60 के दशक वाला नहीं है जब अमेरिका समर्थित पाकिस्तान से निपटने के लिए उसे सोवियत की आर्थिक और सैन्य सहायता पर निर्भर रहना पड़ता था। आज रूस को अपने डिफेंस सेक्टर को मजबूत करने के लिए भारत की ज़रूरत है। रूस को ना सिर्फ भारतीय निवेश की ज़रूरत है बल्कि रूस को अपने हथियारों की बिक्री के लिए भी भारत का साथ चाहिए। ऐसे में रूस को भारत-रूस की रणनीतिक साझेदारी को आधार बनाकर भारत की विदेश नीति पर हावी होने का प्रयास नहीं करना चाहिए!



























