ज्ञानवापी मस्जिद पर पुनः दावों के बीच योगी ने किए काशी विश्वनाथ के दर्शन, आखिर वे क्या संकेत देना चाहते हैं

काशी विश्वनाथ

हाल में ही काशी विश्वनाथ मंदिर पर वाराणसी जिला कोर्ट का फैसला आया है। कोर्ट ने ASI को मामले में जांच करने की मंजूरी दे दी है। उसके बाद से ही सभी की नजरें बनारस और उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ पर टिकी हुई हैं। फैसला आने के तुरंत बाद सीएम योगी आदित्यनाथ शुक्रवार शाम को करीब 4:45 बजे श्री काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंच गए।

इसके बाद उन्होंने श्री काशी विश्वनाथ का विधि विधान से दर्शन-पूजन किया। आखिर ऐसे समय में उनके काशी विश्वनाथ में आने का क्या कारण हो सकता है ? इसका उत्तर कोई रॉकेट साइंस नहीं है। उनके आने का मकसद स्पष्ट है कि अब अयोध्या की राम जन्मभूमि के बाद बारी देश भर में स्थित ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी के विश्वनाथ मंदिर की है।

दरअसल, वाराणसी जिला कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए ज्ञानवापी परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण का आदेश आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) को दिया है और रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने के लिए भी कहा है। कोर्ट ने केंद्र के पुरातत्व विभाग के 5 लोगों की टीम बनाकर पूरे परिसर का रिसर्च कराने का फैसला सुनाया।

रिपोर्ट के अनुसार यह याचिका स्थानीय वकील वीएस रस्तोगी ने दायर की थी। उन्होंने हिंदुओं के लिए ज्ञानवापी मस्जिद में प्रवेश करने वाली भूमि को बहाल करने की मांग की थी, जिसमें दावा किया गया था कि 1664 में मुगल सम्राट औरंगजेब ने 2000 साल पुरानी काशी विश्वनाथ मंदिर के एक हिस्से को ज्ञानवापी मस्जिद बनाने के लिए तोड़ा था।

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इसके ठीक एक दिन बाद ही शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पूजा अर्चना के लिए पहुँचे। इस दौरान मुख्यमंत्री ने बाबा विश्वनाथ से प्रदेशवासियों को स्वस्थ रखने के लिए मंगलकामना की। मुख्यमंत्री गेट नंबर चार से होकर बद्रीनाथ प्रवेश द्वार होते हुए मंदिर पहुंचे। इस दौरान पंडित श्रीकांत मिश्र और पंडित श्रीदेव महाराज ने पूजन कराया। षोडशोपचार पूजन के पश्चात मुख्यमंत्री ने निर्माण कार्यों की भी जानकारी ली।

उनके काशी आने का समय एक अहम संदेश था कि जिस तरह से अयोध्या की राम जन्म भूमि के लिए कांग्रेस के शासन में इतने वर्षों का इंतजार करना पड़ा, अब उनके शासन में ऐसा नहीं होगा। विश्वनाथ मंदिर के क्षेत्र पर अधिकार को विशेष महत्व दिया जायेगा और हिन्दुओं को उनका हक या अधिकार दिया जायेगा। योगी सरकार के लिए यह कितना महत्वपूर्ण है, यह इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोर्ट के आदेश आने के बाद ही उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने वाराणसी में ASI के सर्वेक्षण से संबंधित सभी लागतों को वहन करने का ऐलान कर दिया।

इससे यह स्पष्ट होता है कि योगी आदित्यनाथ काशी के लिए अब तनिक भी देरी नहीं करना चाहते हैं। राम जन्म भूमि की लड़ाई लगभग 500 वर्षों तक चली। आजादी के बाद तो इसमें अगर सबसे अधिक रोड़ा किसी ने लगाया तो कांग्रेस की सरकार थी। उसके पाले हुए इतिहासकारों ने इस मुद्दे को कोर्ट में कमजोर करने की भरपूर कोशिश की और यह साबित करने की कोशिश की कि बाबरी के नीचे कोई मंदिर ही नहीं था।

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हालांकि तब ASI में KK Muhammad जैसे लोग थे, जिन्होंने सर्वेक्षण और खुदाई के बाद अपनी रिपोर्ट में यह स्पष्ट कर दिया था कि मस्जिद के नीचे एक भव्य मंदिर था। अब अगली लड़ाई काशी और मथुरा की है। वाराणसी कोर्ट के आदेश के बाद ASI के सर्वेक्षण से काशी विश्वनाथ के अधिकार पाने में उतना अधिक समय नहीं लगेगा।

इसका एक प्रमुख कारण औरंगजेब द्वारा मंदिर के तोड़े जाने साक्ष्य अधिक मात्रा में मौजूद हैं और साथ ही आज भी ज्ञानवापी ढांचे का बाहरी दिवार मंदिर के दीवारों से बना हुआ नग्न आँखों से दिखाई पड़ता है। ऐसे में कोर्ट के एक फैसले के बाद योगी आदित्यनाथ का इस तरह से तत्परता दिखता है कि वह दिन दूर नहीं जब राम जन्मभूमि की तरह ही काशी और फिर मथुरा का अधिकार अधिक दूर नहीं है।

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