अलीबाबा के बाद Meituan आया आगे, जिनपिंग से बगावत के स्वर हो रहे हैं मुखर

चीनी राष्ट्रपति और बड़े व्यवसायों के बीच युद्ध आधिकारिक रूप से शुरू हो गया है

चीनी सरकार Xi Jinping

China's President Xi Jinping arrive at San Martin square to pay homage to Argentina's national hero General Jose de San Martin in Buenos Aires, Argentina, Saturday, July 19, 2014. (AP Photo/Natacha Pisarenko)

कुछ महीनों पहले ही अलीबाबा के जैक मा के साथ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव शी जिनपिंग का टकराव देखने को मिला था और अब चीन की ‛take away food’ कंपनी Meituan के सह संस्थापक Wang Xing ने सोशल मीडिया पर एक कविता पोस्ट की है, जिसे सीधे तौर पर जिनपिंग की आलोचना के रूप में देखा जा रहा है।

चीनी अरबपति ने जिस कविता को पोस्ट किया था वह चीन के प्राचीन किन साम्राज्य ‛Qin Dynasty’ के पतन पर लिखी गई बहुत पुरानी कविता है। हालांकि पोस्ट को बाद में डिलीट कर दिया गया। लेकिन Wang Xing द्वारा किए गए पोस्ट के कारण चीन के स्टॉक एक्सचेंज में भूचाल आ गया।

“The Book Burning Pit” के नाम से अंग्रेजी में रूपांतरित चीन की यह कविता तांग शासन में दरबारी कवि रहे Zhang Jie ने किन साम्राज्य के क्रूर शासक शी हुआंग के ऊपर लिखी थी।शी हुआंग ने चीन को शक्ति के बल पर एकीकृत किया था। इसके अतिरिक्त शी हुआंग को प्राचीन कन्फ्यूशियसवाद को बलपूर्वक खत्म करने का प्रयास करने के लिए जाना जाता है। उसने कन्फ्यूशियसवाद से संबंधित किताबों को जलवा दिया था।

शी हुआंग ने अपनी आलोचना बन्द करवाने के लिए 400 विद्वानों की हत्या करवा दी थी। उसने शक्ति के बल पर कई भूभाग जीते थे, किंतु अपने तानाशाही रवैये के कारण, उसे तात्कालिक बुद्धिमान लोगों का सहयोग नहीं मिला। उसके साम्रज्य में किसी ने उसे पसन्द नहीं किया और मारने के कई प्रयास हुए। उसकी मृत्यु के तुरंत बाद 4 सालों में ही उसका साम्राज्य टूट गया था।

Wang द्वारा इस कविता को पोस्ट करने को अप्रत्यक्ष रूप से CCP पर हमला माना जा रहा है। बता दें कि जिनपिंग के तानाशाही रवैये को लेकर पहले ही उद्योगपतियों में खासी नाराजगी है। चीन में डेंग जियाओपींग ‛deng xiaoping’ ने आर्थिक सुधारों को लागू किया था, उस समय से हर चीनी राष्ट्रपति उद्योगपतियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलता रहा है।

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चीन आज वैश्विक महाशक्ति बनने का दम भर रहा है तो इसका कारण उसके सफल उद्योगपति हैं। किंतु जिनपिंग की नीतियों ने इन्हीं उद्योगपतियों का सबसे अधिक नुकसान किया है।

जिनपिंग की मूर्खतापूर्ण विदेश नीति ने चीनी कंपनी के हितों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया है। उदाहरण के लिए बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट जिनपिंग के दिमाग की उपज है, किंतु इसके कारण एक ओर तो चीनी कंपनियों को ऐसे प्रोजेक्ट में पैसा लगाना पड़ रहा है, जहाँ से लाभ की संभावना नगण्य है।

साथ ही इस योजना के तहत निवेश के बाद छोटे देशों को डेब ट्रैप में फंसाकर, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी अपने कूटनीतिक हित साधना चाहती है, किंतु इससे चीनी कंपनियों की छवि खराब हो रही है। आज कई देशों में चीनी कंपनियां अछूत बन गई हैं।

पाकिस्तान में चीनी विनिर्माण इकाइयों को निशाना बनाया जा रहा है, फिलीपींस जैसे देशों में चीनी कंपनियों को महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट से बाहर रखा जा रहा है और भारत जैसे देश से, जो विश्व का सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार हज, चीन के संबंध बिगड़ने के कारण, चीनी कंपनियों को भारी नुकसान हो रहा है।

इन सबके बाद भी सरकार अपनी नीतियों पर न तो आलोचना सुनने को तैयार है, न उनका पुनर्मूल्यांकन करने को। जब जैक मा ने इसके विरुद्ध आवाज उठाई तो उनकी कंपनी अलीबाबा पर 18.2 बिलियन युआन (2.8 बिलियन डॉलर) का जुर्माना लगाया दिया गया।

चीनी सरकार ने इस फैसले के कुछ दिनों बाद देश के 34 बड़े उद्योगपतियों की मीटिंग बुलाई और उन्हें अपना स्वतः सर्वेक्षण करने और एकाधिकारवादी रवैया त्यागने का आदेश मिला। इस मीटिंग में Wang की कंपनी Meituan को भी बुलाया गया था।
संभवतः Wang ने उसी मीटिंग की चिढ़ में कविता पोस्ट की थी।

हालांकि बाद में उन्होंने सफाई दी कि उनकी कविता का कोई राजनीतिक अर्थ नहीं था। किंतु तब तक उनके कंपनी का मार्केट शेयर 9.8 प्रतिशत गिर चुका था और उन्हें 16 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ।
अब चीनी विशेषज्ञ यह मान रहे हैं कि यदि कम्युनिस्ट पार्टी Wang पर कार्रवाई करेगी तो कंपनी का मार्केट शेयर और गिरेगा।

एक पोस्ट मात्र से 9.8 प्रतिशत की गिरावट होना दर्शाता है कि चीनी उद्योग जगत में जिनपिंग का पर्याप्त भय है, लेकिन इससे यह भी पता चलता है कि चीनी उद्योगपति आर्थिक कार्रवाईयों के बाद भी मुखर होकर अपनी बात रख दे रहे हैं।

भले ही Wang को बाद में पोस्ट डिलीट करना पड़ा और सफाई देनी पड़ी, लेकिन उनका अप्रत्यक्ष रूप से कम्युनिस्ट सरकार पर हमला करना, चीनी उद्योगपतियों में बढ़ती नाराजगी को दिखाता है, साथ ही यह भी दिखाता है की अब लोग मुखर हो रहे हैं, बिना इसकी परवाह के की उनको अपनी मुखरता की क्या कीमत चिकनी पड़ेगी।

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