5 राज्यों में जनता ने नकारा, अब कांग्रेस पार्टी के अंदर ही गांधी परिवार को नकारा जाने लगा है

कांग्रेस में गांधी-विरोधी आवाज़ों ने पकड़ा ज़ोर!

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Laat Saab

‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना’… जी हां, केरल से लेकर असम, पुडुचेरी और पश्चिम बंगाल तक में हाशिए पर जा चुकी कांग्रेस पार्टी का मुख्य चेहरा यानी राहुल गांधी केवल इसलिए खुश हैं कि बीजेपी को बंगाल में सत्ता नहीं मिली, उन्हें अपनी चार राज्यों की हार की लेशमात्र भी परवाह नहीं है, जिसके चलते अब पार्टी के बागी नेता कपिल सिब्बल ने आत्ममंथन करने की बात कही है, साथ ही गांधी परिवार के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलने वाले बंगाल कांग्रेस के दिग्गज नेता अधीर रंजन चौधरी भी अब ये मानने लगे हैं कि कांग्रेस का जनाधार तेजी से गिर रहा है। इन चुनावों में मुख्य तौर पर कांग्रेस का नेतृत्व राहुल गांधी कर रहे थे और अब हार की पुनरावृत्ति ने राहुल समेत गांधी परिवार को पशोपेश की स्थिति में डाल दिया है।

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के ऐलान से पहले ही ये माना जा रहा था कि अगर इन चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन ख़राब रहता है तो राहुल समेत पूरे गांधी परिवार की कांग्रेस अध्यक्ष पद की दावेदारी कमजोर हो जाएगी। वहीं अब अध्यक्ष पद के चुनाव और कार्यशैली में बदलाव के लिए बगावती 23 नेताओं में सबसे मुखर चेहरा रहे कपिल सिब्बल ने केरल, असम, पुडुचेरी, पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की हार पर काफी बड़े सवाल खड़े किए हैं। सिब्बल का कहना है कि अब पार्टी को अपने अन्दर झांकना ही होगा, क्योंकि ये पार्टी के भविष्य और अस्तित्व के लिए आवश्यकता बन गया है।

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कपिल सिब्बल ने कहा, “हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है। यह असम और केरेल में विफल रही। पार्टी पश्चिम बंगाल में एक भी सीट सुरक्षित नहीं कर सकी।अब जब पार्टी की ओर से आवाज उठाई जा रही है, तो इस मामले पर गौर किया जाना चाहिए।” कोरोना काल को आधार बनाकर उन्होंने अभी इस मुद्दे पर ज्यादा कुछ भी कहने से मना कर दिया है, लेकिन वो बोले, “हम अपने विचार पेश करेंगे। आज सभी दलों के सभी लोगों को कोविड-19 के बीच लोगों के जीवन को बचाने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।”

इसके इतर बंगाल में कांग्रेस का मुख्य चेहरा रहे लोकसभा में विपक्ष के प्रमुख नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा, “टीएमसी सत्ता को बचाना चाहती थी, जबकि बीजेपी पावर हासिल करना चाहती थी। हमारे लिए ऐसा कुछ दांव पर नहीं था। हम अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे थे।” उन्होंने इस बात को स्वीकार किया है, कि उनके हिस्से का मुस्लिम वोट भी ममता के हिस्से चला गया है। उन्होंने कहा, “कांग्रेस को मुख्य तौर पर मुस्लिम वोट मिलता है और वह टीएमसी को ट्रांसफर हो गया। इसके चलते ही यह स्थिति पैदा हो गई। मुस्लिम वोट टीएमसी के खाते में चला गया और हिंदू वोट बीजेपी के खाते में चला गया। हमारे लिए कुछ भी नहीं बचा था।”

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इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में अधीर रंजन चौधरी ने भी पार्टी की कार्यशैली पर सवाल खड़े करते हुए कहा, “ट्विटर और फेसबुक से बाहर आने की जरूरत है और पार्टी के कार्य करने के तरीके में विशेष बदलाव करना की आवश्यकताएं हैं, क्योंकि इस वर्तमान स्थिति में किसी भी उज्ज्वल संभावना की उम्मीद नहीं कर सकते हैं।” उनका कहना है कि मुद्दों की कमी नहीं है, लेकिन कांग्रेस को फेसबुक और ट्विटर की दुनिया से बाहर आकर जनता के बीच आना चाहिए और ये समय की मांग है।

बंगाल में हार के बाद कांग्रेस नेता के ‘अधीर’ होने को एक बगावत माना जा रहा है, क्योंकि ये अधीर ही थे, जो गांधी परिवार के खिलाफ उठती बगावती नेताओं की आवाज़ को लताड़ते थे। पहले जो अधीर कपिल सिब्बल की बात से असहमत थे, वो आज खुद सिब्बल की तरह बगावत सुर छेड़ रहे हैं, और ये राहुल गांधी समेत पूरे गांधी परिवार के लोग मुसीबत बनने वाला है, क्योंकि ये सभी बगावती नेता अब राहुल के नेतृत्व में मिली पांच राज्यों की हार के लिए राहुल को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं और इसके चलते राहुल की अध्यक्ष पद पर दावेदारी पहले से अधिक कमजोर हो गई है।

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