AIADMK सरकार वैक्सीन का पैसा भी केंद्र से चाहती थी, CM स्टालिन अब हर परिवार को 4 हज़ार रुपये देंगे

मुफ्त की सुविधाओं की झड़ी लगाकर राज्य की इकॉनमी को बर्बाद करके ही छोड़ेंगे स्टालिन

स्टालिन

(PC: The WEEK)

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के पतन का कारण ज्यादातर समाजवाद ही होता है। समाजवाद वो जोंक (कीड़ा) है, जो देश की अर्थव्यवस्था को धीरे-धीरे चूस लेता है। जब तक इस बात का ज्ञात होता है, तब तक देर हो चुकी होती है। भारत में भी कई राज्य ऐसे है जो जनता को लुभाने के लिए बिना कुछ सोचे समझे लाखों करोड़ों रुपये लुटा देते है, और जब राजकोष पर नजर जाती है, तो काफी देर हो चुकी होती है। हालांकि, शायद तमिल नाडु के सीएम स्टालिन को यह बात समझ में नहीं आती है।

बता दें कि हाल ही में तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव संपन्न हुआ है। उसके बाद नई सरकार ने राज्य की कमान अपने हाथों में ली है। राज्य के नए मुख्यमंत्री MK स्टालिन ने लोगों को कोरोना महामारी के दौरान होने वाले नुकसान को कम करने के लिए सीधे नकद राहत की घोषणा की है। सरकार ने घोषणा की है कि, प्रत्येक राशन कार्डधारक को मदद करने के लिए सरकार 4,000 रुपये प्रदान करेगी।

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सरकार के आधिकारिक बयान में कहा गया है कि, “मुख्यमंत्री ने 2,07,67,000 राशन कार्डधारकों को मदद पहुंचाने के लिए मई से में 2,000 रुपये की पहली किस्त प्रदान करने के आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं। इस योजना की कुल लागत 4,153.69 करोड़ रुपये होगी।”

इसके अलावा MK स्टालिन ने कई और समाजवादी योजनाओं का ऐलान किया है। जैसे कि- राज्य की महिलाओं को टाउन बसों में मुफ्त यात्रा की अनुमति देने का भी आदेश दिया है। इस योजना की कुल लागत 1200 करोड़ रुपए होगी।

आपको बता दें कि तमिलनाडु की इससे पहले की AIADMK सरकार ने यह साफ किया था कि केंद्र सरकार के टीकाकरण अभियान से राज्यों पर अधिक वित्तीय बोझ पड़ेगा और साथ ही केंद्र से वैक्सीन के डोज की आपूर्ति का आग्रह भी किया था।

तमिलनाडु की पिछली सरकार ने यह साफ संदेश दे दिया था कि, राज्य सरकार के पास अब टीकाकरण के लिए राशि नहीं है। इसके बावजूद MK स्टालिन ने शपथ ग्रहण करते ही जनता को लुभाने के freebies बांटना शुरू कर दिया।

सवाल यह उठता है कि, मुफ्त में बस यात्रा जरूरी है या टीकाकरण? मुफ्त में 4,000 प्रतिमाह देना जरूरी है या 300-400 रुपये की वैक्सीन। बता दें कि, तमिलनाडु में प्रतिदिन 25,000 से ज्यादा नए कोरोना के मामले सामने आ रहा है, ऐसे में उनकी जान बचाना ज्यादा जरूरी है या उन्हें नकद 4,000 रुपये देना?

हम ऐसा नहीं कह रहे है कि जरूरतमंदों को मदद करना गलत है। लेकिन यह जरूर कह रहे हैं कि यह तरीका गलत है। राज्य सरकार जब समाजवाद के रास्ते पर चलती है तो उसे राज्य के खर्च से निपटने के लिए कर्ज लेने की जरूरत आन पड़ती है। बता दें कि तमिलनाडु राज्य पर फिलहाल करीब 5 करोड़ का कर्ज है। एक बात और गौर करने वाली है कि तमिलनाडु की अर्थव्यवस्था भारत में दूसरे नंबर पर है, फिर भी राज्य कर्ज में डूबा है।

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ऐसे समाजवाद का क्या फायदा, जिससे बड़े पैमाने पर राज्य का ही नुकसान हो। खैर, जिस मुख्यमंत्री का नाम ही रूसी कम्युनिस्ट नेता Stalin से प्रेरित हो, उससे पूंजीवाद की उम्मीद करना नादानी होगी। पर, हां राज्य की मुख्यमंत्री होने के नाते उनके लिए अपनी जनता की जान बचानी प्राथमिकता होनी चाहिए।

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