देश की राजनीति में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है, और ये बदलाव राजनीतिक दलों या उनके नेताओं के कारण नहीं, बल्कि जनता के कारण हुआ है। 4 राज्य और एक केंद्र शासित प्रदेश के विधानसभा चुनाव नतीजों में भी इस बड़े बदलाव की झलक साफ देखने को मिली है, ये नतीजे बता रहे हैं कि देश की जनता अब पार्टी से ज्यादा नेता को तवज्जो देने लगी है। 4 राज्य और एक केंद्र शासित प्रदेश में जिन दलों की जीत हुई है, उन सभी के पास तगड़ी छवि के नेता हैं। उनकी इसी छवि का फायदा राजनीतिक पार्टियों को मिला। ऐसे में ये कहा जा सकता है कि भविष्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दल इसी फॉर्मूले पर काम करते नजर आएंगे।
4 राज्य और एक केंद्र शासित प्रदेश के विधानसभा चुनाव नतीजों की बात करें तो असम को बीजेपी ने अब अपना गढ़ बना लिया है, क्योंकि उनके पास वहां मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनेवाल सहित कद्दावर नेता हेमंता बिस्वा सरमा का मजबूत नेतृत्व हैं। इसी तरह पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को तीसरी बार बंगाल की जनता ने मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर बिठाया है। यद्यपि ममता के राज में राजनीतिक हिंसा से लेकर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, लेकिन बीजेपी नेता की कमी के कारण ममता को हराने में चूक गई।
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तमिलनाडु में सत्ताधारी एआईएडीएमके में पहले से ही आंतरिक राजनीतिक घमासान जारी थे। ऐसे में 10 साल की सत्ता विरोधी लहर के कारण तमिलनाडु की जनता ने विपक्ष में बैठे डीएमके प्रमुख एम के स्टालिन को मुख्यमंत्री पद पर बैठाने की तैयारी कर ली है क्योंकि स्टालिन केंद्रित इस चुनाव में एआईएडीएमके को हार का सामना करना पड़ा। वहीं, पुडुचेरी में कांग्रेस की सत्ता विरोधी लहर और पूर्व सीएम वी नारायणसामी के नेतृत्व में कमी के कारण जनता ने नए नेतृत्व की आस में बीजेपी गठबंधन पर दांव खेला है। वहीं बात अगर केरल की करें तो लेफ्ट ने इसे मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के नेतृत्व में अपना गढ़ बना लिया है।
2019 के लोकसभा चुनाव में लेफ्ट को धूल चटाने वाले कांग्रेसी गठबंधन को नेतृत्व की कमी के कारण जनता ने नकारा और मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन को पुनः केरल की सत्ता भी दे दी। अब इन 4 राज्य और एक केंद्र शासित प्रदेश के नतीजों को एक तराजू में तौला जाए, तो जो भी राजनीतिक दल जीतें हैं, सभी के पास बेहतरीन नेतृत्व था, और जनता ने ही अब चुनावों को व्यक्ति विशेष पर केन्द्रित कर दिया है। जनता उन्हीं राजनीतिक दलों को चुन रही है, जिसके पास सत्ता पर बिठाने के लिए पहले से ही कोई घोषित मुख्यमंत्री उम्मीदवार होगा।
ऐसे में व्यक्ति विशेष पर केंद्रित हो चुके चुनावों की पद्धति को भी इन राजनीतिक पार्टियों को अच्छे से समझना चाहिए, और चुनाव के पहले ही अपने सर्वोच्च नेता का ऐलान करना चाहिए, क्योंकि जनता उस एक नाम पर ही अपना फैसला सुना रही है। ऐसे में ये माना जा रहा है कि अब राजनीति पार्टियां इस बात मंथन अवश्य करेंगी, क्योंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा है।