अस्पतालों में स्टाफ़ की कमी को देखते हुए सरकार को मेडिकल के अंतिम वर्ष के छात्रों को देना चाहिए मौका

सरकार को सोचने की जरूरत है

अस्पतालों

वुहान वायरस के दूसरे लहर के कारण देशभर में चिंता की लहर उमड़ पड़ी है। चार लाख से ज्यादा नए मामले दर्ज हो रहे हैं तो वहीं लगभग 3 लाख लोग स्वस्थ भी हो रहे हैं। हालांकि, इस कष्टकारी समय में अस्पतालों के लिए चिंता काफी बढ़ चुकी है, क्योंकि न तो बेड पर्याप्त पड़ रहे हैं और न ही स्टाफ पर्याप्त पड़ रहे हैं।

इसके लिए कुछ व्यापक सुधार करने की आवश्यकता है, जिससे न सिर्फ यह समस्या सुलझ सकती है, अपितु अस्पतालों पर वर्तमान बोझ भी काफी हद तक कम हो सकता है। ज़ी न्यूज के विश्लेषणात्मक शो ‘डीएनए’ के अंश अनुसार, “अभी भारत में हर दिन कोरोना वायरस से तीन लाख से ज्यादा मरीज संक्रमित हो रहे हैं, लेकिन एक अनुमान के मुताबिक, हर एक मरीज पर कम से कम पांच मरीज ऐसे हैं, जो संक्रमित तो हैं, लेकिन उन्होंने अपना टेस्ट नहीं कराया। इस हिसाब से देखें तो अनुमान लगाया जा सकात है कि भारत में हर दिन 15 लाख लोग संक्रमण का शिकार हो रहे हैं। अब अगर ये मान लें कि इनमें से 5 प्रतिशत मरीजों को अस्पतालों में आईसीयू (ICU Beds) की जरूरत है तो ये संख्या हो जाएगी 75 हजार”।

तो इस समस्या से निपटने का उपाय क्या है? ज़ी न्यूज के विश्लेषण के अनुसार, “अगर इस समस्या को हल करना है तो सरकार को 5 लाख नए आईसीयू बेड देश के अस्पतालों में बढ़ाने होंगे, लेकिन यहां समझने वाली एक बात ये भी है कि अस्पतालों में मरीजों का इलाज बेड्स नहीं करते बल्कि, डॉक्टर करते हैं और उनकी अच्छी देखभाल के लिए पर्याप्त नर्सिंग स्टाफ की जरूरत होती है, जिनकी संख्या हमारे देश में काफी कम है”।

इस समय सरकारी अस्पतालों में 76 प्रतिशत स्वास्थ्य कर्मियों की कमी है और यदि स्थिति जल्द नहीं सुधरी, तो यह संकट आने वाले दिनों में और गहरा सकता है। इस समय हमें अस्पतालों में बेड्स के साथ डॉक्टरों की ज्यादा जरूरत है, लेकिन इस कमी को कैसे पूरा किया जाए। इसके लिए हम फाइनल ईयर के विद्यार्थियों की सहायता ले सकते हैं।

लेकिन यह कैसे संभव हैं? डीएनए के रिपोर्ट के अनुसार, “इस समय देश में 25 हजार डॉक्टर ऐसे हैं, जो मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर चुके हैं और उन्हें अपने फाइनल एग्जाम की प्रतीक्षा है। अगर सरकार इन सभी डॉक्टरों का कोरोना काल में बिना परीक्षा के प्रैक्टिस करने का मौका देती है तो इससे अस्पतालों पर दबाव कम हो सकता है। इसके साथ ही डॉक्टरों की कमी भी कुछ हद तक पूरी हो सकती है”।

इसके अलावा भारत में 1 लाख 30 हजार डॉक्टर ऐसे हैं, जो MBBS की पढ़ाई पूरी कर चुके हैं और अब पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए नीट की परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। इस समय हमारे देश में पोस्ट ग्रेजुएशन की 35 हजार सीटें ही हैं, यानी इनमें से लगभग 1 लाख छात्रों को सीट ही नहीं मिलेगी। ऐसे में सरकार इन छात्रों से कोविड काल में एक साल की ट्रेनिंग करवा सकती है और इस ट्रेनिंग के बदले उन्हें NEET में अलग से ग्रेड मार्क्स दे सकती है, जिससे इस संकट के समय में देश को अनेकों डॉक्टर्स मिल सकते हैं। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि अगर केंद्र सरकार इन विचारों पर काम करे तो न केवल वुहान वायरस की दूसरी लहर से सफलतापूर्वक निपटा जा सकता है, बल्कि देश को नए डॉक्टर्स की एक सशक्त फौज दी जा सकती है।

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