यदि आप अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में टीकाकरण को लेकर मुसलमानों के ‘आक्रोश’ और ‘आनाकानी’ को लेकर चकित हैं, तो शायद आपने पूर्वोत्तर के दर्शन नहीं किए हैं। यहाँ पर वैक्सीन को लेकर ईसाई मिशनरी द्वारा अलग-अलग प्रकार की अफवाहें फैलाई जा रही है, विशेषकर नागालैन्ड और मेघालय जैसे राज्यों में।
कहीं पर वैक्सीन को ‘शैतान का प्रतीक’ बताया जा रहा है, तो कहीं पर वैक्सीन के जरिए ‘ईसाइयों की आबादी को नियंत्रित’ करने की अफवाहें फैलाई जा रही हैं। स्थिति इतनी बेकार है कि स्क्रॉल जैसे वामपंथी वेबसाइट तक को इसे रिपोर्ट करना पड़ रहा है। स्क्रॉल की रिपोर्ट के अनुसार, “राज्य की Immunization officer रितु थुर ने बताया कि किस प्रकार से कई ईसाई गुट वैक्सीन के विरुद्ध तरह तरह की भ्रांतियाँ फैलाते थे। कोई कहता था कि वैक्सीन शैतान का प्रतीक है, तो कोई कहता था कि वैक्सीन लगवाने से अजीब प्रकार की बीमारियाँ होंगी। आज भले ही लोग भर भर के वैक्सीन लगवा रहे हों, परंतु कुछ महीनों पहले तक ऐसी स्थिति नहीं थी”।
हालांकि, इस रिपोर्ट में स्क्रॉल ने ईसाई मिशनरियों को बचाने का पूरा प्रयास किया, किन्तु सच को कहां तक दबाया जा सकता है? लेकिन बात केवल यहीं तक सीमित नहीं रही। ईस्ट मोजो नामक न्यूज पोर्टल ने भी नागालैन्ड और मेघालय जैसे राज्यों में वैक्सीन को लेकर हो रहे विरोध पर प्रकाश डाला। इसके अलावा ईस्ट मोजो ने ये भी बताया कि नागालैन्ड में कैसे एक चर्च द्वारा 5 दिन तक एक कैंप लगाया गया, जिसके पश्चात कई लोगों में कोविड संक्रमण पाया गया।
ऐसे में ये अनुमान लगाना गलत नहीं होगा कि नागालैंड और मेघालय समेत पूरे पूर्वोत्तर में वैक्सीन को लेकर थोड़ी असमंजस है, जिसमें यदि प्रत्यक्ष रूप से नहीं तो अप्रत्यक्ष रूप से ईसाई मिशनरी जिम्मेदार रहे हैं। यदि ऐसा नहीं होता, तो पूर्वोत्तर में असम और त्रिपुरा को छोड़कर बाकी पूर्वोत्तर टीकाकरण के लिए इतना उत्सुक क्यों नहीं है। राज्य प्रशासन के साथ साथ केंद्र प्रशासन को भी इसके विरुद्ध कड़ी से कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।