जिसकी उम्मीद थी वही हुआ! असम के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही हिमंता बिस्वा सरमा एक्शन मोड में आ गए। सोमवार को असम के मुख्यमंत्री के रूप में अपनी पहली मीडिया ब्रीफिंग में, हिमंता बिस्वा सरमा ने विद्रोही समूह यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) के स्वयंभू “कमांडर-इन-चीफ” परेश बरुआ से शांति के लिए आगे आने के लिए अपील की। कई दशकों से असम ULFA के आतंक से आतंकित रहा था, पर अब लगता है कि मुख्यमंत्री हिमंता के पास उनके लिए विशेष प्लान है।
सरमा ने कहा, “उल्फा के साथ बातचीत Two way Street है। परेश बरुआ को आगे आना होगा। इसी तरह भी हमें उनके पास जाना होगा। यदि दोनों पक्षों में इच्छाशक्ति है तो बातचीत मुश्किल नहीं होगी।“
उन्होंने कहा कि, ” केंद्र के विभिन्न विद्रोही समूहों के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद Bodoland Territorial Region और Karbi Anglong में शांति लौट आई।” यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है केंद्र के साथ इन विद्रोही समूहों के साथ बातचीत के मुख्य वास्तुकार हिमंता ही थे।
उन्होंने कहा कि, “पिछले पांच वर्षों में (भाजपा सरकार के तहत), लोगों ने असम में शांति और विकास की प्रक्रिया देखी। बोडो क्षेत्रों और कार्बी आंगलोंग में शांति लौट आई। अब हमारा प्रयास शेष विद्रोही समूहों को वार्ता की मेज पर लाने के लिए होगा। राज्य में अब होगी स्थायी शांति की स्थापना।“
शांति प्रक्रिया में शामिल होने के लिए बरुआ और अन्य उल्फा सदस्यों से अपील करते हुए उन्होंने कहा कि हत्याएं और अपहरण समस्याओं का समाधान नहीं करेंगे। वह आशावादी है कि सरकार अगले पांच साल के भीतर उन सभी समूहों को जिन्होंने अभी भी हथियार उठा रखा है, उन्हें मुख्यधारा में लाने में सक्षम होगी।
सरमा ने कहा कि उनकी सरकार की पहली प्राथमिकता कोविड महामारी को शामिल करना होगा, जिसमें कहा गया है कि राज्य में स्थिति चिंताजनक है।
राज्य मंत्रिमंडल की पहली बैठक मंगलवार को होगी और सीएम ने कहा कि सरकार उन सभी चुनाव पूर्व वादों को पूरा करने की कोशिश करेगी, जिनमें असम को बाढ़ मुक्त बनाना शामिल है।
बता दें कि परेश बरुआ की अगुवाई वाले उल्फा गुट ने पिछले कुछ महीनों में कम से कम दो बड़े अपहरण किए हैं। 1979 में एक संप्रभु असम बनाने के उद्देश्य से गठित, यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असोम (उल्फा) असम में सबसे बड़ा उग्रवादी संगठन है, जो कि सशस्त्र संघर्ष के साथ अपने स्वदेशी लोगों के लिए एक स्वतंत्र राज्य स्थापित करने की मांग कर रहा है। तब से यह संगठन अपने आतंक, अपहरण और हत्या के दम पर लोगों के बीच में डर फैला रहा है।
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हालांकि, 1990 में भारत सरकार ने आतंकवादी खतरे का हवाला देते हुए प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन संगठन ने अपना ‘सैन्य’ और ‘राजनीतिक’ विंग भी बनाया है, जिसमें परेश बरुआ सैन्य विंग में ‘कमांडर-इन-चीफ’ थे। प्रतिबंधित उल्फा ने 1990 के दशक की शुरुआत में अपहरण को उद्योग बना दिया था। चरमपंथी संगठन ने भय का इस्तेमाल व्यापारिक घरानों और चाय बागानों से पैसा निकालने के लिए किया और संबंधित कंपनियों पर दबाव डालने के लिए कर्मचारियों का अपहरण भी कर लेते थे। 1990 में उल्फा ने ब्रिटेन के व्यवसायी लॉर्ड स्वराज पॉल के भाई सुरेंद्र पॉल की हत्या कर दी थी। 1991 में हितेश्वर सैकिया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार की शुरुआत में उल्फा ने अपने गिरफ्तार कैडरों को सुरक्षित छुड़ाने के लिए एक सोवियत इंजीनियर Sergei Gretchenko सहित 14 लोगों का अपहरण कर लिया था। राज्य सरकार को गुप्त बातचीत करनी पड़ी और उनमें से कुछ लोगों को छोड़ना पड़ा। हालाँकि, बाद में भागने की कोशिश करते हुए Gretchenko को मार दिया गया था। इसी तरह 1994 में उल्फा के सदस्यों ने कथित रूप से असम प्रशासन में टैक्स के तत्कालीन आयुक्त Hemram Keot का अपहरण कर लिया था।
उल्फा के पूर्व अध्यक्ष अरबिंद राजखोवा के नेतृत्व में एक गुट 2011 में शांति प्रक्रिया में शामिल हो गया, लेकिन बरुआ जिन्होंने अपने गुट का नाम बदलकर उल्फा (स्वतंत्र) रखा है, ने आज तक वार्ता के लिए हामी नहीं भरी है।
एक समय था जब असम के गरीब लोगों के एक वर्ग ने उल्फा का समर्थन किया था। तब असम के पत्रकारों और संपादकों के एक वर्ग ने भी उनके तथाकथित “कारण” का समर्थन किया था और उनकी अवैध और आपराधिक गतिविधियों का महिमामंडन किया था। अतीत में स्वघोषित बुद्धिजीवियों के एक वर्ग ने भी उनका समर्थन किया था। हालाँकि, उनमें से अधिकतर अप्रासंगिक हो गए हैं लेकिन अभी भी इन अपराधियों की प्रशंसा और समर्थन करना जारी रखते हैं।
यह एक तथ्य है कि उल्फा के अधिकांश सदस्य संगठन छोड़ कर वापस लौट चुके हैं, लेकिन उनमें से कुछ अभी भी हैं जो दहशत फ़ैलाने की कोशिश कर रहे हैं। उनका एकमात्र उद्देश्य अपहरण और जबरन वसूली के माध्यम से पैसा कमाना है। इसी वर्ष कुछ दिनों पहले ही इस संगठन ने Quippo Oil and Gas Infrastructure Limited के दो कर्मचारियों का अपहरण कर लिया था और 20 करोड़ फिरौती की मांग की थी। यानी एक बार फिर से यह संगठन फन उठाने की कोशिश में जुटा है, परन्तु अब असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा हैं जिन्हें बातचीत की भाषा के साथ-साथ कड़ाई की भी भाषा आती है। यही कारण है कि उन्होंने अपने कार्यकाल के पहले दिन ही बातचीत के लिए आगे आने को कहा है। अगर ऐसा नहीं होता है तो अपराध को जड़ से मिटाने की दूसरी भाषा भी उन्हें बखूबी आती है।