‘केंद्र को करना चाहिए वैक्सीन की खरीद’, केंद्र से 714 करोड़ की छूट के बाद भी हेमंत सोरेन ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है

कोरोना महामारी में भी हेमंत सोरेन खेल रहे हैं आरोप- प्रत्यारोप का खेल

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन Photo

आज जब देश में कोरोना महामारी ने कोहराम मचा के रखा है तो ऐसे में विपक्षी दलों को केंद्र सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहिए, लेकिन वह केंद्र सरकार के साथ आरोप- प्रत्यारोप का खेल रही हैं। इस कड़ी फिलहाल में झारखंड के मुख्यमंत्री सबसे आगे हैं। हाल ही में दिए गए अपने इंटरव्यू में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा है कि,”केंद्र सरकार न उन्हें काम करने दे रही है और न ही खुद काम कर रही है।”

दरअसल, द संडे एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में हेमंत सोरेन ने कहा, “यह एक राष्ट्रीय महामारी है या कोई राज्य-केंद्रित समस्या? केंद्र ने स्थिति संभालने की पूरी जिम्मेदारी न तो हमें दी और न ही खुद ठीक से संभाली। हम दवाओं का आयात नहीं कर सकते, क्योंकि केंद्र से इजाजत नहीं मिली है।”

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बता दें कि मुख्यमंत्री का यह आरोप तथ्यों से कोसों दूर है, क्योंकि भारत के संविधान के 7 वें शेड्यूल के आर्टिकल 246 में राज्यों और केंद्र के बीच की जिम्मेदारी सन् 1950 में ही तय कर दिया गया था।

मुख्यमंत्री सोरेन ने अपनी जिम्मेदारियों से खुद को बचाते हुए कहा कि, “केंद्र ने प्रबंधन से जुड़ें लगभग हर अहम मुद्दे का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया है, फिर चाहे वो ऑक्सीजन का आवंटन हो, मेडिकल इक्विपमेंट का आवंटन हो या वैक्सीन का।”

झारखंड मुख्यमंत्री का यह भी आरोप बेबुनियाद है, क्योंकि राज्यों की कमी के कारण लगातार बढ़ते ऑक्सीजन मांग के चलते केंद्र को आगे आकर ऑक्सीजन आपूर्ति की जिम्मेदारी अपने सर लेनी पड़ी थी।

इंटरव्यू में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य की अर्थव्यवस्था का चित्र रखते हुए कहा कि, “झारखंड को अपने लोगों के टीकाकरण के लिए 3.5 करोड़ से 4 करोड़ डोजों की जरूरत थी, लेकिन हमें अब तक 40 लाख डोज मिली है। हमारा तो वैक्सीन खरीदने में दिवाला निकल जाएगा। राज्यों को इस वक्त वैक्सीन के लिए भी अपने ऊपर छोड़ दिया गया है। हम इसका प्रबंधन कैसे करेंगे। आखिर क्यों केंद्र सरकार झारखंड की तुलना महाराष्ट्र और तमिलनाडु से कर रही है, जबकि हमारा बजट काफी कम है।”

आपको बता दें कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने झारखंड की अर्थव्यवस्था को खाई में धकेल दिया है और आज स्थिति यह है कि राज्य के पास बिजली की आपूर्ति के लिए भी पैसे नहीं है। ऐसे में भारत सरकार ने दामोदर घाटी निगम के बिजली बिल के बकाए की 714 करोड़ की तीसरी किस्त झारखंड के खाते से नहीं काटी है। मना जा रहा है कि कोरोना काल में किसी भी राज्य को इतनी बड़ी आर्थिक राहत नहीं मिली है।

हाल ही में जब वुहान वायरस को लेकर पीएम नरेंद्र मोदी ने हर राज्य के मुख्यमंत्री से राज्य का हाल पूछने के लिए वर्चुअल मीटिंग का आयोजन किया गया था। तब मीटिंग के बाद सोरेन ने ट्वीट किया कि,”आज आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने फोन किया। उन्होंने सिर्फ अपने मन की बात की। बेहतर होता यदि वो काम की बात करते और काम की बात सुनते।”

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मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस आपदा काल में दिखा दिया है कि वे किस प्रकार के मुख्यमंत्री है। वह ऐसे मुख्यमंत्री है जिसके आने के बाद झारखंड में नक्सल गतिविधि निरंतर बढ़ रही है। राज्य की अर्थव्यवस्था हर रोज नीचे गिरते हुए नजर आ रही है। राज्य की स्वास्थ्य प्रणाली के बारे में क्या ही कहना! ऐसे में जो मुख्यमंत्री हर पैमाने पर विफल साबित हुआ हो, उसके पास अपनी गलती छुपाने के लिए आरोप – प्रत्यारोप के सिवा और कोई दूसरा चारा बचता भी नहीं है।

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