चीन में बने बाकी सामानों की तरह वैक्सीन पर भरोसा करना भी मूर्खता ही है। यह बात सिद्ध करने के लिए कई उदाहरण इस समय दुनिया के सामने आए हैं। UAE, बहरीन, सेशल्स जैसे देशों ने, चीन की वैक्सीन डिप्लोमेसी में फंसकर, अपनी बड़ी आबादी को चीन में बनी चीनी वैक्सीन लगाई। किन्तु अब तक ये देश ‛हर्ड इम्युनिटी’ का स्तर नहीं छू सके हैं, नतीजा वैक्सीनेशन के बावजूद इन देशों में लोग कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं।
वैक्सीन डिप्लोमेसी के शुरुआती दौर में चीन को कोई विशेष सफलता नहीं मिली थी। लेकिन जब अन्य वैक्सीन निर्माता देश, इस प्रतिस्पर्धा में पिछड़ गए तो चीन को दुबारा अपनी वैक्सीन बेचने का मौका मिल गया। भारत में दूसरी लहर के आते ही, वैक्सीन निर्यात पर रोक लगा दी गई, इसका सबसे अधिक लाभ चीन को मिला।
हमने अभी तक पांच देशों- UAE, बहरीन, चिली, पेरू, सेशल्स में चीनी वैक्सीन को असफल होते देखा है। सेशल्स और UAE ने तो अपनी आबादी के बड़े हिस्से को चीनी वैक्सीन लगाई है, किन्तु इसका कोई लाभ नहीं हुआ है। UAE और बहरीन ने सिनोवैक की खरीद की थी और यहाँ एक बड़ी आबादी को वैक्सीन की दोनों डोज लग चुकी है।
UAE ने अपनी 51.4 प्रतिशत आबादी को वैक्सीन लगा ली है, जबकि 38.8 प्रतिशत लोगों को दोनों डोज लग चुकी है। इसके बाद भी वहाँ एक दिन में 1700 मामले सामने आए हैं, जो UAE की आबादी के लिहाज से, एक बड़ी संख्या हैं।
यही कारण है कि दो डोज लगाने के बाद भी, मार्च में खबर आई की UAE अपनी एक छोटी आबादी को तीसरी डोज लगाने जा रहा है। UAE ने यह फैसला चीनी वैक्सीन की दो डोज की असफलता के बाद किया हो, संभावना है कि UAE प्रशासन छोटी आबादी पर तीसरे डोज को लेकर इस उम्मीद से परीक्षण कर रहा हो कि तीसरे डोज के बाद लोगों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाए।
UAE के इस कदम के कुछ ही समय बाद बहरीन ने भी उसका अनुसरण करते हुए अपने यहाँ तीसरा डोज लगवाने की शुरुआत की है।
सेशल्स में हालात और भी खराब हैं। सेशल्स हिन्द महासागर में, स्थित एक टापू देश है, जो पूर्वी अफ्रीका का भाग है। यहाँ की आबादी एक लाख से कम है। सेशल्स दुनिया में आबादी के अनुपात में सबसे अधिक वैक्सीन लगाने वाला देश है। इस देश को चीन द्वारा बड़ी संख्या में वैक्सीन इसलिए उपलब्ध करवाई गई क्योंकि सेशल्स भारत का रणनीतिक साझेदार है। भारत इसे वैक्सीन उपलब्ध करवाने में असफल रहा इसलिए चीन को मौका मिल गया।
किन्तु सेशल्स के लिए चीनी वैक्सीन दुर्भाग्य लेकर आई है। सेशल्स ने अपनी 60% आबादी को वैक्सीन लगाने के बाद जैसे ही लॉकडाउन में ढील दी, वहाँ कोरोना के मामले तेजी से बढ़ने लगे। सेशल्स में एक दिन में 1900 मामले सामने आए हैं, जो एक लाख से कम की आबादी के लिहाज से बड़ी संख्या है। सेशल्स को दुबारा आवागमन संबंधित प्रतिबंध लगाना पड़ा है।
चिली की बात करें तो यहाँ स्थिति और भी बदतर हुई है। इस दक्षिण अमरीकी देश ने अपनी 37.4 प्रतिशत आबादी को दोनों डोज एवं 44.8 प्रतिशत आबादी को एक डोज लगा ली है। चिली ने भी सिनोवैक का इस्तेमाल किया है।
जब चिली ने अपने देश में दिसम्बर में वैक्सीनेशन शुरू किया था तो वहाँ रोजाना लगभग दो हजार मामले सामने आते थे। मार्च तक यह आंकड़ा 7000 तक पहुंच गया। अप्रैल मई में चिली में रोजाना लगभग 5000 मामले सामने आ रहे हैं। इसे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि चीनी वैक्सीन ने कितना अच्छा प्रदर्शन किया है।
पेरू में चीनी वैक्सीन लगवाने की इतनी जल्दबाजी थी कि सरकारी अधिकारियों ने ट्रायल के दौरान ही वैक्सीन लगवाना शुरू कर दिया था। अक्टूबर 2020 में पेरू से यह खबर आई थी कि सरकारी अधिकारी वैक्सीन ट्रायल के लिए चुने गए वालेंटियर लोगों की जगह, खुद को ही वैक्सीन लगवा रहे हैं। पेरू ने चीनी कंपनी सिनोफार्मा की वैक्सीन इस्तेमाल की थी।
चिली के राष्ट्रपति Martín Vizcarra पर भी आरोप लगा की उन्होंने भी वैक्सीन लगवाई है। 26 अप्रैल को खबर आई कि राष्ट्रपति अपनी पत्नी सहित कोरोना पॉजिटिव हो गए हैं। चीनी वैक्सीन ने पेरू के राष्ट्रपति की चीनी वायरस से रक्षा नहीं की।
कहा जा सकता है कि चीनी वैक्सीन ने चीनी वायरस पर कोई कार्रवाई नहीं की, आखिर दोनों हैं तो जिनपिंग के ही प्रोडक्ट। बहरहाल इन देशों का हाल देखकर दुनिया के अन्य देशों को सीख लेनी चाहिए, जिससे वह चीनी डेब ट्रैप की तरह, चीन के वैक्सीन ट्रैप में न फंसे। सत्य यह है कि भारत के अतिरिक्त कोई भी देश पूरी दुनिया को बड़ी संख्या में भरोसेमंद वैक्सीन नहीं उपलब्ध करवा सकता।
भारत जितनी जल्दी दूसरी लहर से बाहर आएगा और अपनी बड़ी आबादी को वैक्सीन लगाकर, ‛हर्ड इम्युनिटी’ का स्तर पा लेगा, उतनी जल्दी दुनिया को प्रभावी वैक्सीन मिलनी शुरू हो जाएगी।