शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन ने पिछले एक दशक में हिंद महासागर क्षेत्र पर नियंत्रण पाने की कोशिश की है। चाहे वह ऋण कूटनीति, strings of pearls या बेल्ट एंड रोड पहल के माध्यम से क्यों न हो। हालांकि, भारत के आक्रामक रवैया ने हिंद महासागर में चीन के मंसूबों पर पानी फेर दिया है। चीन अब यह बात समझ चुका है कि, वह हिंद महासागर में भारत की उपस्थिति का मुक़ाबला नहीं कर सकता है। ऐसे में चीन ने अपना ध्यान अटलांटिक महासागर की ओर केंद्रित कर लिया है।
हाल ही में अमेरिकी जनरल टाउनसेंड ने अपने इंटरव्यू में चीन को लेकर चिंताएं व्यक्त की है। टाउनसेंड ने कहा है कि, “चीन अब अटलांटिक महासागर में पांव पसारने की पूरी कोशिश कर रहा है।” अमेरिकी जनरल ने कहा कि, “चीन का खतरा प्रशांत महासागर में तो है ही पर जल्द ही अब अटलांटिक महासागर में भी चीन का खतरा मंडराने वाला है।”
एसोसिएटेड प्रेस के साथ एक इंटरव्यू में अमेरिकी जनरल स्टीफन टाउनसेंड ने कहा कि बीजिंग अफ्रीका के पश्चिमी तट पर पनडुब्बियों या विमान वाहक की मेजबानी करने में सक्षम एक बड़े naval base की स्थापना करना चाहता है। टाउनसेंड ने कहा कि चीन ने मॉरिटानिया से लेकर नामीबिया के दक्षिण तक फैले देशों से संपर्क किया है। अगर देखा जाए तो, इस गतिविधि से चीन अटलांटिक के साथ ही प्रशांत महासागरों में अपनी नौसेना का विस्तार करने में सक्षम होगा।
अमेरिका- अफ्रीका कमांड के नेतृत्व करने वाले जनरल टाउनसेंड ने कहा कि, “चीन एक ऐसी जगह की तलाश कर रहा हैं जहाँ वे अपनी warships की मरम्मत कर सके और फिर से चला सके। यह militarily टकराव में काम आ सकता है।” जनरल ने आगे कहा,” चीन जिबूती में नौसेना का बेस बनाने के बाद अब वो अटलांटिक तट पर नजर टिकाए बैठा है।”
बता दें कि चीन का पहला विदेशी नौसैनिक बेस अफ्रीका के हॉर्न जिबूती में वर्षों पहले बनाया गया था और उसकी क्षमता लगातार बढ़ रहा है। टाउनसेंड ने कहा कि बेस में 2,000 सैन्यकर्मी हैं और सुरक्षा संभालने के लिए सैकड़ों मरीन है।
जनरल टाउनसेंड ने आगे कहा कि, “चीन पहले अफ्रीका के पूर्वी तट तंजानिया में अपना नवल बेस बनाने की तैयारी कर रहा था। हालांकि, अमेरिका को इससे कोई खतरा नहीं था क्योंकि वहां पर हिंद महासागर है। जनरल हिंद महासागर से भारत की और संकेत दे रहे हैं। जनरल की बातों का अर्थ निकाले तो हिंद महासागर में चीन से निपटने में भारत सक्षम है।
अगर हम चीन के इस गतिविधि को देखे तो यह निष्कर्ष निकलता है की चीन हिंद महासागर में भारत की आक्रामक रवैया को देखते हुए अब वो हिंद महासागर से मुंह मोड़ लिया है और अटलांटिक महासागर में अपनी नौसेना बेस बढ़ाने की ओर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
आपको बता दें कि, फरवरी 2021 में इंडियन नेवी ने एक मेगा वॉर गेम को अंजाम दिया था। जिसको Theatre Level Operational Readiness Exercise (TROPEX) का नाम दिया गया था। TROPEX का लक्ष्य था कि हिंद महासागर में शांति और स्थिरता को बढ़ावा देना। इसके अलावा नौसेना के आक्रामक और रक्षा क्षमताओं को मान्य करना था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने हमेशा चीन के आंख में आंख डालकर देखा है। चाहे वो डोकलाम स्टैंडोफ हो या लद्दाख। बता दें कि लद्दाख में चीन के साथ गतिरोध के बीच, भारतीय नौसेना के पूर्वी और पश्चिमी नौसेना कमांड के तहत बड़ी संख्या में जहाजों को हिंद महासागर क्षेत्र में तैनात किया था, ताकि चीन को एक स्पष्ट “संदेश” भेजा जा सके।
बीजिंग को अब यकीन हो गया है कि वह अब हिंद महासागर में कुछ भी नहीं कर सकता है। जिसके कारण चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने अटलांटिक महासागर की ओर अपनी आँखें घुमा ली है। उनका यह कदम इस बात का सबूत है कि बाइडेन प्रशासन chine की गतिविधियों का मुकाबला करने के लिए पर्याप्त नहीं है।