चीन को बर्बाद करने वाला बॉम्ब खुद चीनी नागरिक फोड़ेंगे, वो समझ चुके हैं कि अब बहुत हो गया

कोई विदेशी मिसाइल नहीं, चीनी नागरिकों का आक्रोश बर्बाद करेगा चीन को!

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी

Chinese President Xi Jinping listens to French Minister for Foreign Affairs Jean-Marc Ayrault during their meeting in Beijing on October 31, 2016. / AFP PHOTO / FRED DUFOUR

चीन आज वैश्विक ताकत बनने का दम भरता है और दुनिया को अपनी सैन्य शक्ति से भयभीत करने की कोशिश करता है। अपने पड़ोसियों के साथ टकराव और ताइवान पर आक्रमण की आए दिन धमकी देना, चीनी विदेश नीति का मुख्य अवयव है। ताइवान के मुद्दे पर चीन और अमेरिका के बीच टकराव बढ़ता जा रहा है। वहीं, भारत के साथ भी, गलवान घाटी की घटना के कारण और भारत के ब्लैक टॉप ऑपरेशन के बाद, चीन का सैन्य टकराव होत-होते बचा।

अपनी मूर्खतापूर्ण विदेश नीति के कारण चीन का अन्य देशों के साथ टकराव इतना बढ़ गया है कि उसको अपनी सेना के आधुनिकीकरण के लिए भारी मात्रा में पैसा खर्च करना पड़ रहा है, लेकिन यह तथ्य बहुत कम लोग जानते हैं कि चीन अपनी आंतरिक सुरक्षा पर अपनी सेना से भी अधिक खर्च करता है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को जितना भय भारत या अमेरिका की सेना का है, उससे अधिक डर अपने यहाँ हो रहे आंतरिक विरोध से है। चीन में पिछले एक दशक में, जब से जिनपिंग चीनी कम्युनिस्ट पार्टी में सबसे बड़े नेता बनकर उभरे हैं, वहां लगातार आतंरिक विरोध बढ़ रहा है।

अब तक यही माना जाता था कि चीन बड़ी आसानी से शिनजियांग, हांगकांग, इनर मंगोलिया, तिब्बत आदि कब्जाए हुए इलाकों में उठने वाली विरोध की आवाज को कुचल देता था, किन्तु यह सत्य नहीं है। चीन ने 2019 में अपनी आंतरिक सुरक्षा पर 216 बिलियन डॉलर खर्च किए थे। यह राशि चीनी सेना पर खर्च की गई राशि से 26 मिलियन अधिक थी। इतना ही नहीं, चीन एक दशक पूर्व तक इसका एक तिहाई हिस्सा ही आंतरिक सुरक्षा पर खर्च करता था। आंतरिक सुरक्षा पर होने वाला खर्च तीन गुना बढ़ जाना यह दिखाता है कि चीन में पिछले एक दशक में विरोध की शक्ति भी बढ़ी है।

कम्युनिस्ट सरकार अपने लोगों के सर्विलांस पर, पुलिस पर और सिविल सैन्य दस्तों पर अपनी सेना से भी अधिक पैसा खर्च करती है। इसका कारण भी स्पष्ट है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी शिनजियांग और तिब्बत जैसे इलाकों में बायो वारफेयर का इस्तेमाल कर रही है। उइगर मुसलमानों पर लैब रैट की तरह प्रयोग हो रहे हैं। चीनी वैज्ञानिक तिब्बत के लोगों की जेनेटिक्स की जानकारी जुटा रहे हैं, जिससे वह मेनलैंड चाइना के लोगों में जेनेटिक बदलाव करके उन्हें तिब्बत के पठार में बसा सकें। हांगकांग में किस प्रकार आंदोलन कुचला गया यह जगजाहिर है।

साथ ही जिनपिंग की नीतियों के कारण देश आर्थिक पतन की ओर बढ़ रहा है। चीन का स्थिर आर्थिक विकास एक महत्वपूर्ण कारण था, जिसके चलते लोग चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की तानाशाही को झेल रहे थे, लेकिन अब जबकि जिनपिंग की महत्वाकांक्षी विदेश नीति ने चीन को आर्थिक रूप से ग्लोबल सप्लाई चेन से पृथक करना शुरू किया है, तो लोगों का आक्रोश भी बढ़ने लगा है।

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आज चीन के कई प्रमुख सेक्टर संघर्ष कर रहे हैं। बैंकिंग व्यवस्था चरमरा गई है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियों की आलोचना करने पर उद्योगपतियों के विरुद्ध कार्रवाई हो रही है। जिनपिंग द्वारा अपनी महत्वाकांक्षी योजना, BRI प्रोजेक्ट पर भी जो धन लगाया गया, उसका चीनी उद्योग और मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को कोई विशेष लाभ नहीं हुआ है। चीन द्वारा बांटे गए लोन के पैसे डूब रहे हैं। अफ्रीका के देशों, पाकिस्तान आदि जगहों से कोई लाभ मिलेगा, इसकी गुंजाइश न के बराबर है।

उल्टे डेब ट्रैप ने चीनी कंपनियों का विदेशों में व्यापार करना दूभर कर दिया है। चीनी कंपनी निवेशकों के पैसे नहीं लौटा पा रहीं, जिससे नए निवेश मिलने की संभावना भी नगण्य हो रही है। ऐसे में आर्थिक तंगी की ओर जाता देश कितने दिनों तक जिनपिंग चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की तानाशाही झेलेगा यह देखने लायक होगा।

सत्य यह है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी भी यह बात बहुत बेहतर ढंग से समझती है कि उसे खतरा अमेरिका या भारत से नहीं, बल्कि उसके अपने लोगों से है। चीन की आक्रामक विदेश नीति का असल कारण ही यही है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी लोगों का ध्यान आंतरिक मामलों से हटाना चाहती है। कोरोना के दौरान जैसे अमानवीय तरीके अपनाए गए, राजनीतिक नेतृत्व द्वारा अपनी जिम्मेदारी से जिस प्रकार पल्ला झाड़ा गया उससे आंतरिक आक्रोश और बढ़ा है, इस सब में चीन आर्थिक विपन्नता की ओर भी जा रहा है। ऐसे समय में चीन में आंतरिक विद्रोह बढ़ सकते हैं। यह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं होगी कि कम्युनिस्ट शासन का अंत वहाँ के आम नागरिक ही कर दें।

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