फेसबुक के मनमाने रवैये को लेकर पहले ही वैश्विक स्तर पर चर्चा शुरू हो चुकी है। न सिर्फ फेसबुक, बल्कि ट्विटर, गूगल आदि सभी बिग टेक जाइंट के अलोकतांत्रिक और तानाशाहीपूर्ण रवैये पर दुनिया का ध्यान तब गया जब डोनाल्ड ट्रम्प के विरुद्ध कार्रवाई की गई। यह कार्रवाई तथाकथित रूप से अनुशासनात्मक थी और ट्रम्प द्वारा इन सोशल मीडिया प्लेटफार्म के मानकों का उल्लंघन करने के कारण हुई थी। हालांकि सत्य यह है कि ट्रम्प के विचार पूरे लेफ्ट ईकोसिस्टम के लिए खतरा बन गए थे, जिसके कारण उनको चुप करवाने की नीयत से यह कारर्वाई की गयी थी।
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ट्रम्प को फेसबुक पर बैन किए लगभग 6 महीने होने वाले हैं। ऐसे में फेसबुक पर दबाव है कि वह उनके पेज पर लगा प्रतिबंध हटाए। किन्तु फेसबुक ने ऐसा न करके ट्रम्प पर आजीवन प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। इस फैसले के खिलाफ फेसबुक के ओवरसाइट बोर्ड के सह-प्रमुख ( co-chair ) माइकल मैककोनेल ने अपनी नाराजगी व्यक्त की है।
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मैककोनेल ने फॉक्सन्यूज को दिए इंटरव्यू में कहा है कि “हमने उन्हें
अपने नियमों को ठीक करने के लिए थोड़ा समय दिया है।” उन्होंने कहा “ “उन्हें थोड़ा समय चाहिए क्योंकि वह ( और उनके नियम ) बेतरतीब हैं। वह पारदर्शी नहीं हैं। वह स्पष्ट नहीं हैं। वह आंतरिक रूप से असंगत हैं। इसलिए हमने सिफारिशों की एक श्रृंखला सुझाई है जिससे वह अपने नियमों को अधिक स्पष्ट और संगत बना सकें।
बता दें कि ओवरसाइट बोर्ड फेसबुक द्वारा बनाई गई एक स्वतंत्र संस्था है। इसे बनाने का उद्देश्य फेसबुक की पारदर्शिता बढ़ाना था। यह बोर्ड एक तरह से फेसबुक का सुप्रीम कोर्ट है। इस बोर्ड के पास फेसबुक से जुड़े मामले, पुनर्निरीक्षण के लिए जाते हैं। बोर्ड यह देखता है कि फेसबुक द्वारा की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई कितनी सही है।
उन्होंने कहा कि ट्रम्प पर किसी अन्य Facebook यूजर की तरह कार्रवाई की गई थी, जो कि तर्क संगत है। ट्रम्प पर नियमों के उल्लंघन को लेकर की गयी कार्रवाई गलत नहीं है, किंतु उन्हें आजीवन प्रतिबंधित रखना गलत है।
अपने साक्षात्कार में मैककोनेल ने कहा “श्रीमान ट्रम्प भी किसी अन्य फेसबुक यूजर की तरह ही फेसबुक के सामान्य नियमों से बंधे हैं, और ओवरसाइट बोर्ड का मानना है कि उन्होंने ( निमय का ) उल्लंघन किया और इसलिए फेसबुक द्वारा उन्हें हटाया जाना उचित था।”
किंतु उन्होंने यह भी कहा कि Facebook अनन्तकाल तक ट्रम्प पर प्रतिबंध नहीं लगा सकता। उन्होंने कहा “हमारा कहना है कि, उनके (फेसबुक) द्वारा उन्हें (ट्रम्प) अनिश्चित समय तक हटाया जाना, उचित नहीं है।, उन्होंने इसके लिए कोई ठोस कारण नहीं दिया है, यह उनके नियम का हिस्सा भी नहीं है, यह गलत है।”
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वास्तविकता यह है कि ट्रम्प पर हुई कार्रवाई पूर्णतः बदले की भावना से हुई थी। ट्रम्प ने अपने कार्यकाल में फेसबुक जैसे बड़े सोशल मीडिया प्लेटफार्म को कानून के दायरे में लाने और उनकी जवाबदेही तय करने के लिए प्रयास किए थे। इसलिए जैसे ही ट्रम्प चुनाव हारे, फेसबुक ने उन्हें अपने प्लेटफार्म से निकाल दिया। फेसबुक ने इसका कारण ट्रम्प द्वारा ‘अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर भ्रम फैलाना’ बताया था।
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हालांकि ट्रम्प तो चुनाव के तत्काल बाद से वही सब लिख रहे थे, लेकिन फेसबुक ने उनपर कोई कार्रवाई नहीं की। कार्रवाई तब हुई जब कैपिटल हिल में हिंसा हुई और पूरे लेफ्ट इकोसिस्टम ने इसके लिए ट्रम्प को जिम्मेदार बताया। जब फेसबुक ने यह समझ लिया कि ट्रम्प राजनीतिक रूप से अब काफी हद तक कमजोर हैं और उनकी पार्टी भी उनके साथ खड़ी नहीं हो रही, तब उनपर कार्रवाई की गयी।
रही बात हेटस्पीच की तो ट्रम्प अपने कार्यालय की समाप्ति के पूर्व तो और भी आक्रामक फेसबुक पोस्ट करते थे, किन्तु उनके राष्ट्रपति रहते फेसबुक की हिम्मत नहीं हुई कि ट्रम्प को यह बताए कि ट्रम्प कैसे कम्युनिटी गाइडलाइन का उल्लंघन कर रहे हैं। न ही फेसबुक ने उन्हें कभी चेतावनी जारी की।
सबसे बड़ी बात यह है कि Facebook अपने किसी भी अन्य यूजर को बिना चेतावनी ससपेंड नहीं करता है, तो ट्रम्प पर सीधे कार्रवाई क्यों हुई। फिर कार्रवाई हुई तो भी उसे अनिश्चित अवधि तक कैसे बढ़ाया जा सकता है। यह सभी बातें बताती हैं कि Facebook अपने रवैये में कितना तानाशाह है।