किसान आंदोलन ने भारत में Second Wave फैलाई, अब यही मनमानी Third Wave के खतरे को बढ़ाएगी

इस बेवजह के भ्रमित जनाक्रोश से भारत में बज सकती है खतरे की घंटी

किसान आंदोलन वुहान वायरस

कृषि कानून के विरोध में पंजाब और हरियाणा के आढ़तियों ने जो उपद्रव मचा रखा है, उसके लिए प्रत्यक्ष समर्थन भले ही कम हो रहा हो, परंतु इन आढ़तियों से देश को होने वाले अनेक खतरे अभी कम नहीं हुए हैं। सुरक्षा के लिहाज से खतरे तो अलग बात है, परंतु अब जिस प्रकार से आढ़ती अपने अतार्किक किसान आंदोलन को वुहान वायरस के बढ़ते खतरे के बीच भी जारी रखने को आमादा है, उससे अब तीसरी लहर के कारण होने वाले नुकसान के बढ़ने का भी खतरा साफ दिखाई दे रहा है।

लेकिन यह कैसे संभव है? कुम्भ मेले को कोविड की दूसरी लहर के लिए दोषी ठहराना तो बस बहाना था, असल में वामपंथियों को आढ़तियों को दूसरी लहर के लिए दोषी ठहराए जाने से जो बचाना था। इसमें कोई दो राय नहीं है कि वुहान वायरस की दूसरी लहर दो कारणों से भारत के लिए भयानक सिद्ध हुई। एक तो थी महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, पंजाब और दिल्ली जैसे क्षेत्रों की प्रशासनिक लापरवाही, जिसके कारण जिस महामारी को समय रहते नियंत्रित किया जा सकता है, उसने कई हजार लोगों की जान ले ली।

परंतु वुहान वायरस की दूसरी लहर के विकराल रूप धारण करने के पीछे दूसरा सबसे बड़ा कारण है ‘किसान आंदोलन’ के नाम पर दिल्ली पंजाब और दिल्ली हरियाणा बॉर्डर के पास उपद्रव मचा रहे आढ़ती। इन्होंने शुरू में ही कह दिया था कि हमें कोरोना वायरस भी अपने प्रदर्शन से नहीं डिगा सकता। आंदोलन के शुरुआत से ही उपद्रवियों और दंगाइयों का सोशल डिस्टेंसिंग से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था।

लेकिन किसान आंदोलन वुहान वायरस के लिए जिम्मेदार कैसे हुआ? दरअसल इस उपद्रव में कई ऐसे प्रदर्शनकारी भी शामिल हुए, जो यूके से नाता रखते थे, और जहां दिसंबर – फरवरी के बीच वुहान वायरस की दूसरी लहर भी आई थी। यह लोग भारी संख्या में इकट्ठा भी हुए, और इन्होंने गाँव-गाँव जाकर वुहान वायरस भी फैलाया

लेकिन इन्ही आढ़तियों की जिद के कारण वुहान वायरस की दूसरी लहर ने पंजाब और दिल्ली में विकराल रूप धारण कर लिया, जिसके कारण आसपास के राज्य भी इसके असर से अछूते नहीं रहे। लेकिन इसके बावजूद इन उपद्रवियों की हिमाकत तो देखिए, 26 मई को काला दिवस’ के रूप में ये उपद्रवी हजारों की संख्या में फिर सिंघू और टिकरी बॉर्डर पर उपद्रव के लिए इकट्ठा होने जा रहे हैं। किसानों के लिए हितकारी कानून को हटाने की अपनी जिद के चलते यदि इनके कारण तीसरी लहर से उत्तर भारत को कोई नुकसान हो, तो किसी को कोई हैरानी नहीं होगी।

इस किसान आंदोलन के उपद्रव से निपटने के लिए सरकार क्या कर रही है? हालांकि प्रशासन ने दिल्ली पुलिस की ओर से दिल्ली की सीमाओं पर ही इन उपद्रवियों को रोके रखा है, लेकिन इतना काफी नहीं है।

अब समय आ चुका है कि इस उपद्रव का जड़ से विनाश किया जाए, और इन आढ़तियों को ऐसा सबक सिखाया जाए कि वे दोबारा कानून के विरोध के नाम पर देश के आमजनों को नुकसान पहुंचाने और उपद्रव फैलाने से पहले हजार बार सोचें। कुछ नहीं तो वे यूपी से ही सीख ले सकते हैं, जहां CAA के विरोध के नाम पर उपद्रव करने वाले दंगाइयों को योगी प्रशासन ने छठी का दूध याद दिला दिया।

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