जब से कोरोना की शुरुआत हुई है तब से देश भर के कई अस्पतालों में fire safety norms की धज्जियाँ उड़ गई है

यह Fire Safety की फेलीयर नहीं है तो क्या है?

पूरा देश कोरोना से जूझ रहा है। दिन प्रतिदिन कोरोना के मामले बढ़ते जा रहे हैं, हालाँकि साथ में रिकवरी रेट भी बेहतर हो रही है। परन्तु कोरोना के साथ एक और मामला बढ़ता जा रहा है और यह मामला है अस्पतालों में आग लगने की घटना। जब से कोरोना की शुरुआत हुई है तब से देश भर के कई अस्पतालों में fire safety के फेल होने और उस कारण मरीजों की मौत की खबर सामने आई है।

पिछले सप्ताह ही गुजरात के भरूच में कोविड अस्पताल में भीषण आग लग गई। रिपोर्ट के अनुसार इस हादसे में 18 लोगों की मौत हो गई, जिसमें से 16 मरीज थे और 2 अस्पताल के स्टाफ। भरूच के पटेल वेलफेयर अस्पताल में रात करीब 12.30 बजे यह हादसा हुआ।

हालाँकि घटना की जानकारी मिलते ही फायर ब्रिगेड की गाड़ियां मौके पर आग बुझाने पहुंची। यहां पटेल वेलफेयर अस्पताल में कोरोना मरीजों के लिए कोविड केयर सेंटर बनाया गया था। इस आग का कारण आईसीयू में शॉर्ट सर्किट बताया जा रहा है। यह कोई पहला मामला नहीं है। ऐसे कई मामले देखने को मिले खास कर महाराष्ट्र में।

नासिक के जाकिर हुसैन अस्पताल में ऑक्सीजन लीकेज की वजह से अभी 22 कोरोना मरीजों की मौत का मामला ठंडा नहीं हुआ था कि मुंबई के विरार स्थित विजय वल्लभ अस्पताल में आग लग गई। 23 अप्रैल को हुए इस हादसे में 14 कोरोना मरीजों की मौत हो गयी है। फायर डिपार्टमेंट के मुताबिक, अस्पताल के आईसीयू में 17 मरीजों का इलाज चल रहा था, सुबह 3.15 में शार्ट सर्किट से आग लगी, जिसमें 14 मरीजों की जलकर जान चली गयी। यह Fire safety की फेलीयर नहीं है तो क्या है?

इसी तरह 28 अप्रैल को महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई से सटे मुंब्रा इलाके में स्थित प्राइम अस्पताल में आग लगने की वजह से 4 लोगों की मौत हो गई थी। सूचना के अनुसार, ये एक नॉन-कोविड अस्पताल था। फायर ब्रिगेड की टीम ने कुल 20 मरीजों को रेस्क्यू किया, जिनमें से 6 मरीज आईसीयू में थे।

हालाँकि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने इस घटना में मारे गए लोगों के परिजनों को 5 लाख रुपये का मुआवजा और जख्मी हुए लोगों को 1 लाख रुपये का मुआवजा देने का ऐलान किया है। परन्तु राज्य सरकार अस्पतालों में Fire Safety के सख्त कानून क्यों नहीं बना सकती?

यही नहीं मार्च के अंत में मुंबई के ड्रीम्स मॉल में स्थित COVID अस्पताल में आग लगने की वजह से 11 लोगों की मौत हो गई थी। उसके बाद 10 अप्रैल को नागपुर के एक अस्पताल में आग लगने की वजह से 4 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 2 मरीज काफी ज्यादा गंभीर थे।

जनवरी में भंडारा जिला अस्पताल में आग लगने की वजह से 10 बच्चों की जान चली गई थी। उससे पहले साल 2020 में उल्हासनगर जिला के COVID-19 अस्पताल में आग लगी थी।

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आजतक की रिपोर्ट के अनुसार, “पिछले चार महीने में महाराष्ट्र का यह चौथा अस्पताल जो कि हादसे का शिकार हुआ है। इस तरह से इन चारों अस्पतालों में हुए हादसे के चलते 59 लोग की मौत हुई है।”

इसी तरह कानपुर के LPS Institute of Cardiology में भी 28 मार्च को आग लगने की खबर सामने आई थी जिसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जाँच का आदेश दिया था।
पिछले वर्ष 5 अगस्त को भी गुजरात के अहमदाबाद के एक अस्पताल में भीषण आग लगने से कम से कम 8 लोगों की मौत हो गई थी। यह आग श्रेय अस्पताल की चौथी मंजिल पर आईसीयू में लगी थी, जो अहमदाबाद के नवरंगपुरा इलाके में स्थित है।

इन उदाहरणों से यह स्पष्ट है कि या तो अस्पताल कोरोना के चक्कर में Fire safety को भूल जा रहे हैं या सिर्फ राज्य सरकार की अक्षमता के कारण ये अस्पताल बिना किसी Fire Safety के ही काम कर रहे थे। अब केंद्र सरकार को इस मामले पर संज्ञान लेते हुए तुरंत कोई एक्शन लेना चाहिए जिससे इसे रोका जा सके।

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