“आयात से लेकर उत्पादन तक”, NITI आयोग के जरिये केंद्र ने वैक्सीन से जुड़े राज्यों के सभी सवालों का उत्तर दिया

Vaccine को लेकर फैलाए जा रहे थे, ये Common Myths

NITI आयोग वैक्सीन मिथ

जब से देश में कोरोना के खिलाफ लड़ाई में वैक्सीनेशन शुरू हुआ है तब से ही विपक्ष लगातार सरकार के खिलाफ मिथ फैला रहा है। कभी वैक्सीन के खिलाफ लोगों में डर फैला कर तो कभी वैक्सीन की प्रमाणिकता पर सवाल उठा कर। इसी झूठ के खिलाफ केंद्र सरकार ने नीति आयोग के जरीय वैक्सीनेशन प्रक्रिया पर ‘Myths and Facts on India’s Vaccination Process’ शीर्षक से एक डॉक्यूमेंट जारी किया है।

सरकार ने इस डॉक्यूमेंट में 7 बिंदुओं में वैक्सीन को लेकर उठाए जा रहे सवालों का जवाब दिया और फैलाये जा रहे मिथ का पर्दाफाश किया। नीति आयोग ने कहा है कि वैक्सीनेशन को लेकर ‘तोड़े-मोड़े बयान, आधे सच और सफेद झूठों ने इस संकट के मैनेजमेंट को लेकर कई मिथ पैदा हो गए हैं।’ नीति आयोग के मेंबर और नेशनल एक्सपोर्ट ग्रुप ऑन वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन फॉर कोविड-19 के चेयरमैन डॉ विनोद ने सभी मिथकों को दूर करते हुए तथ्यों को बताया। ‌

इस डॉक्यूमेंट में सरकार ने बताया कि सबसे पहले यह मिथ फैलाया जा रहा है केंद्र विदेशों से पर्याप्त वैक्सीन नहीं खरीद रहा। इसके जवाब में कहा गया है कि सरकार 2020 के मध्य से ही वैक्सीन इंपोर्ट करने की कोशिशों में लगी हुई है। फाइज़र, मॉडर्ना और J&J से कई राउंड की बातचीत हुई है।

सप्लाई के लिए सहयोग देने की बात कही गई है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैक्सीन खरीदने में फर्क है। डॉ पॉल ने बताया कि यह वैक्सीन ग्लोबल सप्लाई के लिए लिमिटेड हैं और इन वैक्सीन को बनाने वाली कंपनियों के पास अपनी-अपनी प्राथमिकताएं हैं। जैसे ही Pfizer सप्लाई के लिए मौजूद होगा वैसे ही भारतीय सरकार इसे इंपोर्ट करने की कोशिश करेगी। फिलहाल रूस की Sputnik वैक्सीन के ट्रायल को आगे बढ़ाया जा रहा है और अभी तक इस वैक्सीन के दो ट्रैंच्स को भेजा गया है।

दूसरा मिथ यह फैलाया जा रहा है कि सरकार विदेशों में उपलब्ध वैक्सीन्स को मंजूरी नहीं दे रही। इस पर आयोग का कहना है कि केंद्र सरकार ने अप्रैल से भारत में ऐसी वैक्सीन्स की एंट्री आसान कर दी है जिन्हें यूएस के एफडीए, ईएमए, यूके के एमएचआरए और जापान के पीएमडीए और डब्ल्यूएचओ की इमरजेंसी यूज लिस्टिंग की मंजूरी मिली हो। उन्होंने बताया कि फॉरेन मैन्युफैक्चरर द्वारा वैक्सीन को मंजूरी देने के लिए भेजे गए एक भी एप्लीकेशन ड्रग्स कंट्रोलर के पास पेंडिंग नहीं है।

तीसरा मिथ यह फैलाया जा रहा है कि केंद्र घरेलू स्तर पर टीकों का उत्पादन बढ़ाने के लिए पर्याप्त कोशिशें नहीं कर रहा। इस पर नीति आयोग ने इस आरोप के जवाब में कहा है कि केंद्र सरकार 2020 की शुरुआत से टीका उत्पादन को लिए अधिक से अधिक कंपनियों को सक्षम बनाने पर काम कर रहा है।

फिलहाल केवल 1 भारतीय कंपनी (भारत बायोटेक) है जिसके पास आईपी है। भारतीय सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि तीन अन्य कंपनियां Covaxin का उत्पादन करेंगे, इसके साथ उन्होंने भारत बायोटेक के प्लांट को भी 1 से 4 कर दिया है। भारत बायोटेक द्वारा बनाई जा रही Covaxin के उत्पादन को अक्टूबर के महीने में एक करोड़ प्रतिमाह से 10 करोड़ प्रतिमाह कर दिया गया है।

इसके साथ 3 PSUs भी दिसंबर के महीने से करीब चार करोड़ डोसेज का उत्पादन करेंगी। भारतीय सरकार के प्रोत्साहन के वजह से सिरम इंस्टीट्यूट भी अब वैक्सीन के उत्पादन को 6।5 करोड़ प्रतिमाह से 11।0 करोड़ प्रतिमाह बढ़ाने की तैयारी कर रही है।‌ स्पुतनिक का निर्माण डॉ रेड्डीज के अंडर में 6 कंपनियां करेंगी। द्वारा किया जाएगा।

केंद्र सरकार कोविड सुरक्षा स्कीम के तहत फंडिंग से जायडस कैडिला, बायोई के साथ-साथ जेनोवा के अपने-अपने स्वदेशी टीकों के लिए बढ़ावा दे रही है।

चौथा मिथ यह फैलाया जा रहा है कि भारत की केंद्र सरकार अनिवार्य लाइसेंसिंग लागू करना चाहिए। डॉ पॉल ने बताया कि अनिवार्य लाइसेंसिंग एक सही सुझाव नहीं है क्योंकि फार्मूला महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि पार्टनरशिप, ह्यूमन रिसोर्सेज की ट्रेनिंग, फ्रॉम मैटेरियल्स की‌ सोर्सिंग और उच्च स्तर वाले बायो-सेफ्टी लैब्स महत्वपूर्ण हैं।

अनिवार्य लाइसेंसिंग से एक कदम आगे बढ़ते हुए सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि भारत बायोटेक और तीन अन्य कंपनियां Covaxin के उत्पादन में आ गया है। स्पुतनिक के लिए भी ऐसा किया जा रहा है।

आयोग ने उदाहरण देते हुए बताया कि लाइसेंसिंग इसलिए जरूरी नहीं है कि मॉडर्ना ने अक्टूबर 2020 में कहा था कि वह अपनी वैक्सीन बनाने वाली किसी भी कंपनी पर मुकदमा नहीं करेगी, लेकिन फिर भी एक कंपनी ने ऐसा नहीं किया है, जिससे पता चलता है कि लाइसेंसिंग सबसे कम समस्या है। अगर वैक्सीन बनाना इतना आसान होता, तो विकसित दुनिया में भी वैक्सीन की खुराक की इतनी कमी क्यों होती?

पांचवा झूठ यह फैलाया जा रहा है कि केंद्र सरकार ने राज्यों पर जिम्मेदारी सौंपकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है। इस पर डॉ पॉल ने बताया कि केंद्र सरकार के ऊपर वैक्सीन के लिए फंड देने से लेकर उनके उत्पादन को बढ़ाने तक काफी जिम्मेदारियां हैं। सरकार यह कोशिश कर रही है कि खरीदी गई वैक्सीन को हर एक राज्यों के लोगों तक फ्री में पहुंचाया जाए।

यह सब बातें सभी राज्यों को अच्छे से पता है। इसके साथ केंद्र सरकार यह कोशिश कर रही है कि राज्य सरकार अब स्वयं वैक्सीन खरीद सकें। स्वास्थ्य राज्य का विषय है और सरकार ने राज्यों के अनुरोध पर अपनी वैक्सीन पॉलिसी को और उदार किया था।

छठा मिथ यह फैलाया जा रहा है कि केंद्र राज्यों को पर्याप्त वैक्सीन नहीं दे रहा है। नीति आयोग ने कहा कि कि सरकार सबकी सहमति से बने दिशा-निर्देशों के अनुसार पारदर्शी तरीके से पर्याप्त टीके दे रही है। निकट भविष्य में वैक्सीन की उपलब्धता बढ़ने वाली है और बहुत अधिक आपूर्ति संभव होगी। केंद्र सरकार राज्य सरकारों के साथ-साथ निजी अस्पतालों को भी 25% – 25% के अनुपात में टीके दे रही है।

आयोग ने स्पष्ट कहा कि कुछ नेता हैं जिन्हें यह सबकुछ अच्छे से पता है लेकिन वो टीवी पर बैठकर लोगों में डर फैलाते हैं और यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है।

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18 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए टीकाकरण और टीके की उपलब्धता के संबंध में बहुत सारे सवाल उठाए गए थे सरकार ने स्पष्ट किया कि छोटे बच्चों के टीकाकरण के संबंध में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कोई दिशा-निर्देश नहीं हैं। केंद्र सरकार का कहना है कि बच्चों के लिए टीका सुरक्षित है और भारत में बच्चों पर टीके का परीक्षण जल्द ही शुरू होगा। सरकार ने कड़े शब्दों में कहा कि व्हाट्सएप सूचनाओं के दबाव में बच्चों का टीकाकरण शुरू नहीं होगा

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