फ्रांस दुनिया के उन चंद देशों में शामिल है, जो भारत के साथ हर स्थिति, हर संकट में उसके खड़ा रहा है, चाहे वो कोई भी स्थिति हो। अभी ईयू के वर्चुअल सम्मेलन में भारत के समर्थन में फ्रांस न सिर्फ खुलकर सामने आया, बल्कि उसने दुनिया को स्पष्ट संदेश भी दिया– भारत को किसी भी देश के उपदेश की आवश्यकता नहीं।
फ्रांस का यह कदम भारत के प्रति अपनी प्रतिबद्धता सिद्ध करने के साथ साथ कुछ देशों, विशेषकर जर्मनी के लिए चेतावनी समान है – भारत को हल्के में लेने की भूल नहीं करे। हाल ही में भारत और यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बीच एक वर्चुअल सम्मेलन हुआ, जिसमें फ्रांस और जर्मनी के राष्ट्राध्यक्ष भी शामिल थे।
इसमें भारत के वैक्सीन आपूर्ति को लेकर कई सवाल उठे, और भारत की प्रतिबद्धता पर भी सवाल उठाने का प्रयास किया गया। इसी बीच फ्रेंच राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने भारत विरोधियों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि भारत को किसी देश के उपदेश की आवश्यकता नहीं।
द स्टेट्समैन की रिपोर्ट के अनुसार, फ्रेंच राष्ट्रपति ने कहा, ‘भारत को वैक्सीन आपूर्ति के मायने में दुनिया के किसी भी देश का उपदेश लेने की कोई आवश्यकता नहीं। हम सभी जानते हैं भारत की इस समय क्या स्थिति है और उसने मानवता के आधार पर कितने देशों की सहायता की है।’ इस वर्चुअल में मैक्रोन के अलावा ईयू की अध्यक्ष उर्सला वॉन डर लेयेन और जर्मनी की प्रधानमंत्री एंजेला मरकेल सहित यूरोप के कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष एवं दिग्गज कूटनीतिज्ञ भी शामिल थे।
इसके अलावा उन्होंने अमेरिका जैसे देशों को अन्य देशों को मिलने वाली वैक्सीन या वैक्सीन को निर्मित करने वाली तकनीक की आपूर्ति ब्लॉक करने के लिए भी आड़े हाथों लिया। मैक्रोन के अनुसार, ‘विकसित देशों की सर्वप्रथम जिम्मेदारी होनी चाहिए कि गरीब और पिछड़े देशों के साथ अपनी तकनीक और संसाधन साझा करें। अब तक भारत ‘वैक्सीन मैत्री’ के अंतर्गत 95 से अधिक देशों को साढ़े 6 करोड़ से अधिक वैक्सीन निर्यात कर चुका है।
लेकिन मैक्रों का यह बयान सबसे अधिक जर्मनी पर केंद्रित था, जो पिछले कई दिनों से भारत को आँखें दिखा रहा है। जर्मनी यूरोपीय संघ का वर्तमान अध्यक्ष है, और वह भारत के साथ मधुर व्यापारिक एवं कूटनीतिक संबंध का भी पक्षधर है। लेकिन सत्ता छोड़ते छोड़ते एंजेला मर्केल भारत के साथ कुछ ज्यादा ही हेकड़ी दिखा रही हैं।
उदाहरण के लिए अभी हाल ही में जर्मनी ने भारत को वैक्सीन निर्माण के आईपी पेटेंट अधिकार में ढील दिए जाने का विरोध किया है। जर्मनी की सरकार का कहना है कि यह प्रस्ताव कई समस्याओं को जन्म देगा। जर्मनी के मुताबिक यदि निजी कंपनियों के लाभ ही खत्म कर दिए जाएंगे तो वह भविष्य में ऐसे शोध कार्य में रुचि नहीं लेंगे। जर्मनी की सरकार का तर्क है कि बौद्धिक संपदा की सुरक्षा का कानून अनुसंधान के क्षेत्र में नए नए अन्वेषण का अवसर देता है।
साथ ही जर्मन सरकार का कहना है कि वैक्सीन का पेटेंट दे भी दिया जाता है तो भी गरीब देश इस वैक्सीन की नकल बनाने में सक्षम नहीं होंगे। यही हेकड़ी कुछ हफ्तों पहले अमेरिका ने भी दिखाने का प्रयास किया था, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय दबाव में बाइडन प्रशासन को झुकना पड़ा और आज वह भारत की वैक्सीन तकनीक में सहायता करने को बाध्य है। ऐसे ही अब फ्रांस ने खुलेआम भारत के पक्ष में अपनी बात रख यूरोप के कई देशों, विशेषकर जर्मनी को एक कड़ा संदेश दिया है – भारत से पंगा नहीं लेने का।