R&D क्षेत्र में भारत का प्रदर्शन चिंताजनक था, पिछले 365 दिनों में भारतीय संस्थाओं ने जबरदस्त काम किया है

इससे भारत को मिली है बड़ी कामयाबी

ICMR

EurAsian Times

भारत को लेकर वैश्विक स्तर पर एक धारणा बनाकर रखी गई है कि यहां रिसर्च ऑर्गनाइजेशन ने कोई खास प्रगति नहीं की है, जिसके चलते भारत आज भी पिछड़ा है। इसके इतर कोरोना काल में विश्व की भारत के प्रति सभी नकारात्मक धारणाएं ध्वस्त हो गई हैं‌। पिछले एक साल में DRDO से लेकर ICMR, IIT और ISRO ने कोरोना से जंग लड़ने में जो विशेष भूमिका निभाई है, वो इस बात क प्रमाण है कि अब भारत का रिसर्च और प्रौद्योगिकी विभाग पहले की तरह ढुलमुल नहीं रहा है। बल्कि साल भर में ही यह अभूतपूर्व प्रगति कर चुका है। वहीं अब इंडियन इंस्टीट्यूट  ऑफ साइंस (IISc) ने भी वैक्सीन बनाने का एलान कर दिया है।

हम सभी ने देखा है कि पूरी दुनिया में अगर कुछ चंद देशों के पास कोरोना की वैक्सीन है, तो उसमें भारत का नाम भी शामिल है। स्वदेशी कंपनी भारत बायोटेक की कोवैक्सीन तो सभी तरह के वेरिएंट से लड़ने में भी कारगर मानी गई है। वहीं अब इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc )की तरफ से भी ये दावा किया गया है कि वो कोरोना से लड़ाई के लिए एक महत्वपूर्ण वैक्सीन पर काम कर रहे हैं जो कि अभी तक की वैक्सीनों से भी अधिक कारगर होगी।

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इस मामले में अब IISc के निदेशक प्रो. रंगराजन में ने बताया है कि “IISc के वैज्ञानिकों द्वारा कोरोना से निपटने के लिए विभिन्न शोध किए जा रहे हैं, जिसमें किफायती व प्रभावी ऑक्सीजन कंसंट्रेटर से लेकर कोरोना की सबसे कारगर वैक्सीन भी शामिल हैं।” खास बात ये है कि इसे 30 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान पर भी रखा जा सकता है। वहीं प्रोफेसर ने बताया है कि “इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc )के द्वारा बनाए गए ऑक्सीजन कंंसंट्रेटर्स चीन के मुकाबले 50 फीसदी अधिक बेहतर हैं।”

IISc के निदेशक की बातों पर गौर करें तो ये कहा जा सकता है कि लगातार तकनीक और रिसर्च के जरिए कोरोना से लड़ाई में इनका योगदान महत्वपूर्ण है। ऐसा नहीं है कि IISc केवल अकेला है, बल्कि कोरोना काल ने तो भारत के प्रति लोगों की धारणा को ही बदल दिया है। भारतीय संस्थान ICMR प्रतिदिन नए-नए रिसर्च के जरिए कोरोना से खतरों और उसकी काट करने वाली चीजों के बारे में जानकारी देता है। इतना ही नहीं ICMR ने भारत बायोटेक के साथ मिलकर दुनिया की सबसे प्रभावी कोरोना की कोवैक्सीन विकसित की है। वहीं आईआईटी कानपुर का भी रिसर्च क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

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इससे इतर हमेशा ही विवादों में रहने वाले DRDO को लेकर सवाल उठने लगे थे कि अब इसे बंद करना ही बेहतर होगा लेकिन डीआरडीओ की कोरोनाकाल की मदद देश के लिए मील का पत्थर साबित हुई है। देश के अलग-अलग राज्यों में आपातकालीन कोविड हॉस्पिटल बनाने और ऑक्सीजन की पूर्ति के लिए ऑक्सीजन प्लांट लगाने में DRDO ने बेहतरीन काम किया है, जिसके लिए उसकी लगातार सराहना की जा रही है। इसके अलावा इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन यानी इसरो ने कोरोना काल में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहे मरीजों के लिए तीन विशेष तरह के वेंटिलेटर विकसित किए हैं, ये सभी भारत कोरोना के इलाज में सफल साबित हो रहे हैं।

भले ही भारत में वैक्सीन निजी संस्थाओं ने बनाई हो, लेकिन उन्हें भारत सरकार की तरफ से पूरा समर्थन और सहयोग मिला है। वहीं सार्वजानिक क्षेत्र के रिसर्च संस्थान भी इन कंपनियों पर पड़ रहे अतिरिक्त बोझ को कम करने के लिए वैक्सीन बनाने पर तेजी के साथ काम कर रहे हैं ऐसे में भारत के रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन के हुए कायापलट को लेकर यह कहा जाने लगा है कि जो विभाग पिछले 70 सालों में ढुलमुल नीतियों के कारण विवादों में रहते थे वह सभी विभाग पिछले 1 साल में कोरोनावायरस आपदा को अवसर में बदल चुके हैं। इन सभी की कार्यशैली का केवल भारत ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर लोहा माना जा रहा है जिसने भारत की विज्ञान और प्रौद्योगिकी से संबंधित छवि को संवार दिया है।

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