इजराइल और फिलिस्तीन के बीच चल रहे युद्ध के दौरान दो दिन पूर्व केरल की रहने वाली सौम्या संतोष की फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास के राकेट हमले में मृत्यु हो गई थी। उनकी मृत्यु के बाद केरल में उन्हें श्रद्धांजलि देने के मुद्दे पर विवाद हो गया है, क्योंकि सत्ताधारी कम्युनिस्ट और मुख्य विपक्षी कांग्रेस की ओर से हमला करने वाले इस्लामिक आतंकी संगठन के विरुद्ध एक शब्द नहीं बोला गया है।
उल्टे मुख्यमंत्री पी विजयन और पूर्व मुख्यमंत्री और केरल कांग्रेस के दिग्गज नेता ओमान चांडी ने अपनी फेसबुक पोस्ट में सुधार भी कर दिया, जिसमें उन्होंने हमास को अतिवादी संगठन कहा था।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा ने केरल में कट्टरपंथी इस्लामिक ताकतों के बढ़ते वर्चस्व को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की है। भाजपा नेता शोभा सुरेंद्र ने ट्वीट किया कि केरल में हालात इतने बिगड़ गए हैं कि दोनों नेताओं (विजयन व चांडी) को एक मलयाली की मृत्यु पर संवेदना प्रकट करती हुई अपनी पोस्ट को सुधारना पड़ा क्योंकि वो लोग मजहबी कट्टरपंथियों से भयभीत हैं।
भाजपा की ओर से यह आरोप लगाया गया है कि मुख्यमंत्री पी विजयन ने अपने मूल फेसबुक पोस्ट से बाद में एक पैराग्राफ हटा दिया क्योंकि उन्होंने उस पैराग्राफ में हमास को अतिवादी संगठन कह दिया था।
प्रसिद्ध भाजपा नेता के सुदर्शन ने इस मामले में दोनों दलों पर कड़ा प्रहार किया है। उन्होंने सवाल उठाया कि लेफ्ट और कांग्रेस एक मलयाली औरत की हमास हमले में मृत्यु पर क्यों चुप हैं, क्या उनका हमास से कोई व्यक्तिगत संबंध है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का व्यवहार देखकर इंदिरा गांधी के समय भारत और फिलिस्तीन के सम्बंध की याद ताजा हो गई।
उन्होंने इंदिरा गांधी और फिलिस्तीनी नेता यासिर अराफात की फोटो भी अपलोड की। गौरतलब है कि इसी विवाद के बीच कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो ने इजराइल फिलिस्तीन के संघर्ष को ‛इजराइल का फिलिस्तीन पर हमला’ कहकर संबोधित किया है।
पोलित ब्यूरो ने अपने बयान में कहा है “इजराइल उन फिलिस्तीनियों पर हमला कर रहा है, जो इजराइल के द्वारा शेख जर्राह में बलपूर्वक मुस्लिमों को हटाकर यहूदियों को बसाने के इजराइल के प्रयासों का विरोध कर रहे थे, इजराइल पूर्वी येरुशलम के पूर्ण आधिपत्य की ओर बढ़ रहा है।”
स्पष्ट है कि पोलित ब्यूरो को मामले की पूरी जानकारी नहीं है या वह राजनीतिक स्वार्थों के लिए झूठ फैलाकर, कट्टरपंथियों की वाहवाही लूटना चाहता है। कम्युनिस्ट पार्टी केरल के कट्टरपंथी मुसलमानों को खुश करने के लिए इजराइल को आक्रामक और फिलिस्तीन को मासूम दिखाना चाहती है। वामपंथियों द्वारा कमोबेश यही प्रचार पूरे देश में हो रहा है।
ऐतिहासिक रूप से इजराइल फिलिस्तीन का झगड़ा भारत पाकिस्तान जैसा ही है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार पैगम्बर मुहम्मद उड़ने वाले घोड़े जैसे आसमानी जानवर बुर्राक पर बैठकर, अपनी मृत्यु से एक रात पूर्व मक्का से इजराइल के टेम्पल माउंट आ गए थे। बाद में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इजराइल पर हमला करके यहूदियों को यहाँ से भगा दिया और टेम्पल माउंट पर कब्जा करके अल अश्क़ मस्जिद बना दी।
इजराइल और फिलिस्तीन के बीच वर्तमान झगड़ा शेख जर्राह की 35 एकड़ भूमि के लिए शुरू हुआ है। यह जमीन 1885 में कुछ यहूदियों द्वारा मुसलमानों से खरीदी गई थी। किन्तु 1948 में अरब देशों ने इजराइल पर हमला करके इसे जीत लिया और यहाँ मुस्लिम आबादी बसा दी। 1967 में छः दिन चले अरब इजराइल के युद्ध में ये इलाका दुबारा इजराइली कब्जे में आ गया।
तब से अब तक इस जमीन पर कब्जे के लिए कोर्ट में एक केस चल रहा था जिसमें अंततः यहूदी पक्ष को जीत मिली। किंतु फिलिस्तीनी मुस्लिमों ने इस जमीन को खाली करने से मना कर दिया। उन्होंने इसके विरुद्ध आंदोलन किया और इजराइली सुरक्षा बलों पर पथराव किया। कुछ उपद्रवी अल अश्क़ मस्जिद में घुस गए और वहाँ से पथराव शुरू कर दिया। जिसके बाद इजराइली सुरक्षा बलों को बलपूर्वक वहाँ प्रवेश करना पड़ा और उपद्रवियों को भगाना पड़ा।
अपने मुस्लिम समर्थकों को खुश करने के लिए पोलित ब्यूरो और कांग्रेस इजराइल को दोषी ठहरा रहे हैं, जबकि विवाद शुरू फिलिस्तीनी पक्ष से हुआ। यहाँ तक कि सैन्य संघर्ष भी हमास के रॉकेट हमलों के बाद शुरू हुआ। इजराइल पर हमास रोजाना करीब एक हजार से अधिक रॉकेट दाग रहा है, ऐसे में इजराइल के पास पूरा अधिकार है कि वह आत्मरक्षा के लिए हमास का मुंहतोड़ जवाब दे।
कांग्रेस और कम्युनिस्ट इतने नीचे गिर गए हैं कि उन्हें इसका भी ध्यान नहीं है कि वह जिस इजराइल का विरोध कर रहे हैं उसने आधिकारिक बयान में यह कहा है कि वह मृतक सौम्या संतोष के परिवार का पूरा ध्यान रखेंगे। जो देश केरल की बेटी के साथ खड़ा है, उसका समर्थन करने के बजाए पी विजयन और ओमान चांडी उन तत्वों को समर्थन दे रहे हैं जिन्होंने हमला करके सौम्य संतोष की हत्या की।
लेफ्ट और कांग्रेस को मुस्लिम वोटबैंक की नाराजगी का सामना न करना पड़े इसके लिए इनकी ओर से सौम्य संतोष के हत्यारे, हमास के आतंकियों की आलोचना करना तो दूर उनका नाम तक लेना उचित नहीं समझा गया।