Lancet ने PM मोदी को कोविड- 19 के लिए दोषी ठहराया, लेकिन सलाह देने से पहले Lancet सच्चाई जान लेता तो बेहतर होता

Lancet ने फिर दिखाई अपनी औकात

NITI आयोग वैक्सीन मिथ

सूरज पश्चिम से उग सकता है, रेगिस्तान में जंगल हो सकते हैं, एक बार को चीन में लोकतंत्र आ सकता है, पर कुछ पश्चिमी संस्थाएँ भारत के लिए अपनी घृणा और नस्लभेदी व्यवहार छोड़ दे, ये लगभग असंभव है। कुछ ऐसा ही एक बार फिर अंग्रेज़ी मेडिकल मैगजीन Lancet ने किया है, जहां उसने कोविड- 19 की दूसरी लहर के लिए स्पष्ट तौर पर मोदी सरकार को दोषी ठहराने का प्रयास किया है।

अपने लेख में The Lancet ने भारत में उमड़े वुहान वायरस की दूसरी लहर का पूरा ठीकरा मोदी सरकार पर फोड़ने का प्रयास है। इस लेख के एक एक शब्द को पढ़ने से आपको पता चलेगा कि वुहान वायरस पर कवरेज तो बहाना है, असल में मोदी सरकार निशाना है।

इस लेख के अंश अनुसार, “भारत को वुहान वायरस के संक्रमण को फैलने से हर हाल में रोकना होगा। इसके लिए उचित टीकाकरण के साथ साथ सरकार को सच्चाई सामने लानी होगी, और एक राष्ट्रीय लॉकडाउन लगाना होगा।”

हमें नहीं पता था कि The Lancet राहुल गांधी के नोट्स भी कॉपी करता है। शायद इस मैगजीन को आभास नहीं है कि भारत के की राज्यों में आंशिक या फिर पूर्ण रूप से लॉकडाउन पहले से ही लागू है। लेकिन स्वयं चिकित्सीय विशेषज्ञ भी इस बात से पूरी तरह से सहमत नहीं है कि लॉकडाउन से वायरस के संक्रमण दर पर काबू पाया जा सकता है।

तो इसका मोदी सरकार की आलोचना या भारत को नीचा दिखाने से क्या संबंध है? दरअसल द Lancet ने अपने लेख में कई ऐसे सोर्स का इस्तेमाल किया है, जिनके पास अपनी दलीलों के लिए कोई ठोस प्रमाण नहीं है। बावजूद इसके द Lancet छाती ठोंक के दावा कर रही है कि मोदी सरकार अपनी जिम्मेदारियों से नहीं भाग सकती – Source: IHME

इस लेख में पीएम की चुनावी रैलियों के बारे में उल्लेख है, कुम्भ मेले के बारे में भी उल्लेख है, परंतु महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों की लापरवाहियों के बारे में दूर दूर तक कोई उल्लेख या बातचीत नहीं की गई है। इसके अलावा जिस प्रकार से अनू भूयान जैसे वामपंथी एवं ब्लूमबर्ग, न्यू यॉर्क टाइम्स जैसे वामपंथी पोर्टल्स के भ्रामक लेखों का हवाला दिया गया है, उससे स्पष्ट पता चलता है कि यह पोर्टल भारत की स्थिति को लेकर वास्तव में कितना चिंतित है।

ब्लूमबर्ग के लेख के अनुसार भारत के टीकाकरण अभियान का दायरा बढ़ाने से राज्य की हालत और खराब होगी। वहीं दूसरी तरफ न्यू यॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में इस बात पर अधिक ध्यान केंद्रित था कि कैसे फेक न्यूज पर नियंत्रण के नाम पर मोदी सरकार वुहान वायरस की सच्चाई दुनिया से छुपा रही है, जो कि सरासर झूठ है।

लेकिन यह पहली बार नहीं है जब द Lancet ने भारत के विरुद्ध केवल वैचारिक अनबन के कारण उसे अपमानित करने का प्रयास किया हो। पिछले वर्ष जब भारत HCQ के परिप्रेक्ष्य में दुनिया के लिए संकटमोचक बन रहा था, तब इसी मैगजीन ने भारत के विरुद्ध दुष्प्रचार करते हुए डबल्यूएचओ को भारत की गतिविधियों पर नियंत्रण लगाने के लिए भी उकसाया था।

बता दें कि मई 2020 में WHO ने HCQ के क्लिनिकल परीक्षण पर अस्थायी रोक लगा दी थी। WHO ने यह निर्णय मशहूर ऑनलाइन मेडिकल जर्नल The Lancet में प्रकाशित एक अध्ययन के बाद लिया था जिसमें यह पाया गया था कि HCQ दवा के उपयोग से मौत का खतरा 34 प्रतिशत और गंभीर heart arrhythmias का खतरा 137 प्रतिशत बढ़ जाता है।

लेकिन द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार द Lancet ने जिस अमेरिकी कंपनी के डाटा का इस्तेमाल अपने शोध के लिए किया था उसके कर्मचारियों को बेहद कम या न के बराबर वैज्ञानिक ट्रेनिंग थी। इसके साथ ही यह भी खुलासा हुआ है कि इस कंपनी के कुछ कर्मचारी science fiction writer और adult-content model हैं।

इस विवादित कंपनी के डेटाबेस को द लांसेट और न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन जैसे दुनिया की दो सबसे प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित अध्ययनों में इस्तेमाल में किया गया है। जैसे ही The Lancet के HCQ के शोध पर सवाल उठने लगे वैसे ही इस जर्नल ने जांच के आदेश दिये थे।

ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि द Lancet ने एक बार फिर अपना भारत विरोधी स्वरूप जगजाहिर किया है, जो मोदी विरोध के नाम पर भारत पर कीचड़ उछालने से पहले एक बार भी नहीं सोचेगा। हालांकि तब भी इस मैगजीन ने मुंह की खाई थी और इस बार भी वह मुंह की ही खाएगी, क्योंकि चंद वामपंथी बुद्धिजीवियों को छोड़कर कोई भी उसकी खोखली दलीलों को सर आँखों पर नहीं रखेगा।

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