वामपंथियों की सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को रोकने की साजिश हुई नकाम, दिल्ली HC ने खारिज की याचिका

याचिकाकर्ता पर कोर्ट ने लगाया 1 लाख रुपये का जुर्माना!

सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक बार फिर से साबित कर दिया है कि कोर्ट दलील और सबूतों के आधार पर चलता है न कि ट्विटर ट्रेंड पर और न ही वामपंथियों के भावनाओं पर। दरअसल बात यह है कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को एक याचिका खारिज कर दी, जिसमें कोविड -19 महामारी के दौरान सेंट्रल विस्टा एवेन्यू के सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में हो रहे निर्माण पर रोक लगाने की मांग की गई थी। साथ ही में याचिकाकर्ता पर 1 लाख रुपये की जुर्माना भी लगाया है।

मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने कहा कि, “सेंट्रल विस्टा एवेन्यू के सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का काम एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक काम का हिस्सा है।” अदालत ने कहा कि, “सेंट्रल विस्टा एवेन्यू पुनर्विकास के निर्माण को अलग-थलग करके नहीं देखा जा सकता है। इसका मतलब यह कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट राष्ट्रहित के लिए है और उस पर रोक नहीं लगाया जा सकता है।”

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याचिकाकार्तों की दलील यह भी थी कि प्रोजेक्ट से जुड़े लोग कोरोना का शिकार हो सकते है। इस पर कोर्ट ने कहा कि, “चूंकि परियोजना में काम करने वाले कर्मचारी साइट पर रह रहे हैं, इसलिए सेंट्रल विस्टा एवेन्यू पुनर्विकास परियोजना के काम को स्थगित करने के निर्देश को जारी करने का कोई सवाल ही नहीं है।” इतना ही नहीं कोर्ट ने DDMA द्वारा दी गई अनुमति का भी हवाला दिया।

दिल्ली हाईकोर्ट ने आगे कहा कि, “सेंट्रल एवेन्यू का काम नवंबर से पहले पूरा किया जाना है। काम समयबद्ध कार्यक्रम के भीतर पूरा किया जाना चाहिए। एक बार जब कार्यकर्ता साइट पर रह रहे हैं और उन्हे सभी सुविधाएं प्रदान की गई है। इसके साथ ही साइट पर कोविड ​​​​-19 प्रोटोकॉल का पालन किया जाता है। इसलिए अदालत के पास परियोजना को रोकने का कोई कारण नहीं है।”

इतना ही नहीं अदालत ने याचिकाकर्ताओं पर जुर्माना लगाते हुए कहा, “यह याचिकाकर्ता द्वारा प्रेरित याचिका है और यह वास्तविक जनहित याचिका नहीं है।” इसका मतलब यह है कि यह ड्रामा या याचिका राष्ट्रहित नहीं बल्कि निजी एजेंडा चलाने के लिए किया गया था।

बता दें कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर रोक लगाने की मुहिम तो पूरा लेफ्ट लिबरल ब्रिगेड ने चलाई थी, परंतु दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका देने वाले दो लोग है- अन्ना मल्होत्रा, और इतिहासकार और वृत्तचित्र फिल्म निर्माता सोहेल हाशमी।

केंद्र सरकार ने याचिका के जवाब में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि इस तरह के प्रयास परियोजना की शुरुआत से ही किसी न किसी बहाने से और किसी न किसी नाम से चल रहे हैं। केंद्र सरकार ने आगे कहा कि DDMA ने 19 अप्रैल को कर्फ्यू के दौरान, जिस साइट पर मजदूर रह रहे है वहां, निर्माण गतिविधियों की अनुमति दे दी है।

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आपको बता दें कि इससे पहले भी वामपंथियों ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के परियोजना में अड़चन डालने की कोशिश की थी। तब लेफ्ट लिबरल्स ने पर्यावरण संरक्षण का झंडा लेकर आए थे और उस वक्त भी सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अच्छे से लताड़ लगाई थी। इसका मतलब यह है कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को पटरी से उतारने की यह चाल वामपंथियों की यह दूसरी चाल थी, जो कि फिर से नाकाम हुईं।

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