बंगाल चुनाव से सीख – मुसलमानों में एकजुटता, वामपंथियों और कोरोना की दूसरी लहर के कारण फिर से बनी तृणमूल की सरकार

मुसलमानों की एकजुटता ने दिलाई TMC को तीसरी जीत

TMC

बंगाल चुनाव के शुरुआती रुझान सामने आने लगे हैं। हालांकि, अभी भी काउंटिंग का काफी हिस्सा बाकी है, लेकिन वर्तमान सीटों का अंतर बताता है कि TMC बड़ी आसानी से विजय प्राप्त कर लेगी। भाजपा ने बहुत ही अच्छा प्रदर्शन किया है। उन्होंने तीन सीट से लगभग तिहाई के आंकड़े तक का सफर तय किया है, लेकिन इसके बाद भी परिणाम भाजपा नेतृत्व की आशा ने अनुरूप नहीं रहे हैं।

कुल आठ चरणों में हुए चुनावों में प्रत्येक चरण में दोनों पक्षों में कांटे की टक्कर हुई है। इसी कारण लगभग 65 प्रतिशत विधानसभा में अभी भी अंतर बहुत कम है। हालांकि, 102 मुस्लिम बाहुल्य वाली विधानसभा सीटों पर TMC ने एकतरफा जीत दर्ज की है। अंतिम चरण में कुल 36 सीटों पर मतदान हुए थे, लेकिन उसमें से 11 मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर TMC को एकतरफा जीत मिली है।

भाजपा तो पहले ही इन सीटों पर लड़ाई में नहीं थी, लेकिन कांग्रेस और वाममोर्चा को भी TMC की अपेक्षा न के बराबर वोट मिले हैं। मुर्शिदाबाद जो वाममोर्चा का गढ़ रहा है, वहाँ भी TMC का ही दबदबा है।

बिहार चुनाव में हमने देखा था कि ओवैसी की उपस्थिति से चुनावों पर बड़ा प्रभाव पड़ा था क्योंकि उनकी पार्टी AIMIM ने सीमांचल के मुस्लिम इलाकों में RJD को नुकसान पहुंचाया था। इसका असर यह हुआ कि राजद बहुमत के से थोड़ा दूर रह गई। तब इसपर चर्चा करते हुए मीडिया में इस बात को बड़ा मुद्दा बनाया गया था कि भाजपा को सत्ता तक पहुंचाने में मुस्लिम वोट के बंटने का बड़ा योगदान है। सम्भवतः पश्चिम बंगाल के मुसलमानों ने बिहार चुनावों को देखकर अपनी राजनीतिक तैयारी की जिससे भाजपा को नुकसान हुआ है।

मुस्लिम वोटबैंक की अपेक्षा हिन्दू वोट बंटा है।इसमें एक बड़ा कारण ममता बनर्जी की विभाजनकारी राजनीति का सफल होना है। उन्होंने भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा से लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी को बाहर से आया हुआ बताकर, बंगाली बनाम बाहरी की राजनीति की, जो खासी सफल रही है। बंगाली भद्रलोक भाजपा के समर्थन में पूरी तरह से नहीं खड़ा हुआ है।

इसके अतिरिक्त ममता बनर्जी द्वारा अपने पैर की चोट को मुद्दा बनाना और अंतिम चरण तक आते-आते कोरोना का असर फैलना, इन दोनों कारणों ने भी चुनाव पर थोड़ा बहुत असर डाला है। संभवतः कोरोना को लेकर केंद्र के खिलाफ चलाए गए प्रचार ने भी पढ़े लिखे बंगाली समाज के वोट को बांटने में बड़ी भूमिका निभाई है।

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