देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी CBI के निदेशक पद के लिए नए शख्स को चुन लिया गया है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया N. V रमन्ना, PM मोदी और विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी की हाई लेवल कमेटी की बैठक के बाद महाराष्ट्र के पूर्व DGP और कई इंटेलिजेंस टीम में काम कर चुके CISF के डीजी सुबोध कुमार जायसवाल को दो साल के लिए अगला CBI निदेशक चुन लिया गया है।
महाराष्ट्र के DGP रहने और इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट सहित आतंकी मामलों की जांच टीम में काम करने के कारण उनका अनुभव काफी विराट है। ऐसे में ये नियुक्ति अगर किन्हीं दो राज्यों के लिए खतरनाक हो सकती है तो वो महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल हैं। जहां पिछले काफी वक्त से भ्रष्टाचार और हिंसा का तांडव चल रहा है। जमीनी नब्ज से वाकिफ होने के चलते सुबोध कुमार जायसवाल CBI की जांच को धार देने में अधिक आसानी होगी।
एक बेहद हाई लेवल मीटिंग के बाद CBI निदेशक के लिए सुबोध कुमार जायसवाल का नाम सामने आया है। अगले दो सालों तक CBI की पूरी बागडोर एक ऐसे शख्स के हाथों में होगी, जिसने महाराष्ट्र के मालेगांव ब्लास्ट से लेकर जाली स्टांप पेपर के भ्रष्टाचार की जांच की है। 1985 बैच के IPS सुबोध कुमार 2008 के मुंबई हमले के दौरान मुंबई के इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट में भी कार्यरत थे।
इसके अलावा उन्होंने महाराष्ट्र के DGP के पद पर भी अपनी सेवाएं दी हैं। ऐसे में उन्हें महाराष्ट्र में काम करने का लंबा अनुभव है। DGP के पद पर रहने के दौरान ही उन्होंने पत्र लिखकर केन्द्र में काम कारने इच्छा जताई थी, जिसके बाद उन्हें सीआईएसएफ का डीजी बनाया गया था।
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CBI के नए निदेशक के तौर पर सुबोध कुमार जायसवाल के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं जिसके चलते उन्हें काबिलियत के आधार पर इतना संवेदनशील पद दिया गया है।
आज स्थिति में सीबीआई की विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहते हैं। ऐसे में कुछ गंभीर केस हैं जो कि भविष्य चर्चा में रहेंगे, जिनमें सबसे ज्यादा परेशानी महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल की ममता सरकार को होगी, क्योंकि सुबोध का अनुभव इनके जांच में रोड़े डालने वाले हथकंडों को कमजोर करेगा, जिससे मुश्किलें ममता बनर्जी और उद्धव ठाकरे की बढ़ेंगी।
इन दोनों राज्यों की बात करें तो पिछले डेढ़ सालों में महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी की सरकार के अंतर्गत जो महत्वपूर्ण केस हल नहीं हो पाए हैं, वो सभी आज की स्थिति में सीबीआई के पास है। अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत का संदेहास्पद निधन, पालघर में हुई संतो की हत्या, मुकेश अंबानी के घर के बाहर विस्फोटक लदी कार का मामला, सचिन वाझे, परमवीर सिंह और पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख का वसूली कांड।
ये सभी वो केस हैं जो कि महाराष्ट्र सरकार से सीधे संबंधित हैं। इन केसों के साथ महाराष्ट्र की प्रतिषठा दांव पर लगी हुई है क्योंकि ये पुलिस की नाकामी और सरकार के ढुलमुल रवैए के कारण अदालतों ने ही सीबीआई को दिए हैं।
कुछ इसी तरह पश्चिम बंगाल में भी नारदा, सारदा घोटले के केस सीबीआई के पास हैं, हाल ही में सीबीआई ने इस केस में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का नाम भी जोड़ दिया है। इसके अलावा विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा के सभी मामले भी सीबीआई के हाथ में आ सकते हैं, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही ममता सरकार से पूछ चुकी है कि हिंसा का पूरा केस सीबीआई को ही क्यों न दे दिया जाए।
ऐसे में भ्रष्टाचार से लेकर आतंकवाद और दंगों तक के मामलों में सुबोध कुमार के पास काम करने का बेहतरीन अनुभव है।
इसीलिए ये कहा जा रहा है कि सुबोध कुमार की नियुक्ति ऐसे वक्त में हुई है जब CBI के सामने कई चुनौतीपूर्ण केस हैं, और यदि ये केस सहज ढंग से हल होते हैं, तो ये कहा जा सकता है कि CBI का स्वर्णिम दौर एक बार फिर लौट आएगा, लेकिन इस पूरे प्रकरण में सबसे ज्यादा दिक्कतें उद्धव ठाकरे और ममता बनर्जी के हिस्से आएंगी।