2024 में अगर ममता UPA का PM चेहरा होंगी तो BJP को इसका सबसे बड़ा फायदा मिलेगा

PM मोदी की लोकप्रियता को लोकसभा में टक्कर दे सकेंगी ममता?

भाजपा ने चुनावी प्रतिस्पर्धा में एक के बाद एक करके लगभग सभी विपक्षी दलों को लोकसभा एवं विभिन्न विधानसभा चुनावों में पराजित किया है। लेकिन जब से पश्चिम बंगाल के चुनाव परिणाम घोषित हुए हैं एवं ममता बनर्जी दुबारा सत्ता में वापसी करने में सफल हुई हैं, विपक्षी दलों को यह उम्मीद जाग गई है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को चुनौती दे सकती हैं। किन्तु उनकी यह उम्मीद बस एक ख्याली पुलाव ही लगती है।

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से एक लहर चल रही है, जिससे भाजपा का लगातार देश में विस्तार हो रहा है। हालिया चुनाव में भी भाजपा में असम में अपनी सरकार बचाई और पुडुचेरी में वह पहली बार सरकार बनाने में सफल रही। पश्चिम बंगाल में भी भाजपा का जनाधार बढ़ा है और वह मुख्य विपक्षी दल के रूप में सामने आई है।

किंतु यह भी सत्य है कि भाजपा को प० बंगाल चुनाव में आशातीत सफलता नहीं मिली है।ममता बनर्जी ने बंगाल के चुनावी समर में भाजपा के वेग को सफलतापूर्वक थाम लिया। इसके बाद शिवसेना, NCP, सपा, कांग्रेस के 23 बागी नेता और गांधी परिवार सहित विभिन्न राजनीतिक दलों में उन्हें बधाई संदेश दिया। साथ लिबरल मीडिया ने अपना वही पुराना राग अलापना शुरू कर दिया कि मोदी को टक्कर देने के लिए विपक्ष को एक प्रभावी नेतृत्व मिल गया है।

किन्तु वास्तविकता यह है कि ममता बनर्जी की लोकप्रियता पश्चिम बंगाल के बाहर नगण्य है। उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र आदि किसी बड़े राज्य में ममता का न तो कोई जनाधार है, न ही उनकी लोकप्रियता है। यदि वह UPA की बागडोर संभाल भी लेती हैं तो भी इससे भाजपा को कोई विशेष राजनीतिक नुकसान नहीं होगा।

वैसे भी ममता पहली ऐसी नेता नहीं हैं, जिन्हें विपक्ष का चेहरा बनाने की मांग उठी है। इससे पहले शरद पवार को भी विपक्ष का चेहरा बनाने की बात हो चुकी है। उदाहरण के लिए अभी भाजपा ने महाराष्ट्र में हुए पंढरपुर-मंगलवेड़ा सीट पर हुए उपचुनाव में शिवसेना, NCP, कांग्रेस की संयुक्त शक्ति को अकेले पराजित किया है। अब यदि ममता बनर्जी बतौर UPA चेयरपर्सन यहाँ प्रचार भी करती तो उससे संयुक्त मोर्चा के कैंडिडेट को कोई लाभ होता इसकी उम्मीद न के बराबर है।

अखिल भारतीय स्तर पर ममता से अधिक अपील तो राहुल गांधी की है। हालांकि राहुल की उपस्थिति भाजपा को ही लाभ पहुंचाती है किंतु फिर भी उनकी स्वीकार्यता ममता से अधिक विस्तृत है। एक अच्छा विकल्प अरविंद केजरीवाल हैं, जो लेफ्ट लिबरल जमात के प्रिय भी हैं। ममता न तो अखिल भारतीय स्तर पर वोट बढ़ाएंगी, न राजनीतिक दलों को एकसाथ रख सकेंगी।

इसके अलावा पश्चिम बंगाल में आज हिंदुओं के साथ जैसा अत्याचार हो रहा है उसे देखकर यही लगता है कि ममता का नेतृत्व स्वीकार करने पर विपक्षी दलों को नुकसान ही होगा। ममता बनर्जी की छवि हिन्दू विरोधी नेता की बन चुकी है, उन्होंने पूरा बंगाल चुनाव बंगाली बनाम बाहरी के नाम पर लड़ा है। जब उन्होंने बंगाल में बाहरीयों, विशेषतः उत्तर भारतीयों की उपस्थिति का ही विरोध किया है तो वह किस मुँह से पूरे भारत में विपक्ष की संयुक्त शक्ति का नेतृत्व करेंगी।

विपक्षी नेताओं का अखिल भारतीय मोर्चा, बीरबल की खिचड़ी हो गया है। हर उस चुनाव के बाद, जिसमें भाजपा को पराजय मिलती है, यह हांडी आग पर चढ़ा दी जाती है और खिचड़ी पकने लगती है। 2018 में कर्नाटक चुनाव, 2020 में महाराष्ट्र और अब बंगाल चुनाव के बाद फिर यह खिचड़ी पक रही है। यह सब कुछ दिन चर्चा का हिस्सा रहेगा, फिर किसी अन्य राज्य के चुनाव के भाजपा ने सरकार बना ली तो यह खिचड़ी दुबारा आग से उतार ली जाएगी।

Exit mobile version