हाल ही में यास नामक साइक्लोन ने पश्चिम बंगाल और ओड़ीशा में काफी उत्पात मचाया। जिस समय भारत किसी तरह कोरोना के दुष्प्रभावों से उभर रहा है, उस समय इस तूफान ने काफी नुकसान किया है। लेकिन जहां एक तरफ ओड़ीशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक जैसे लोग हैं, जिन्होंने केंद्र को कहा है कि उन्हे अत्यधिक चिंता करने की आवश्यकता नहीं है और वे खुद इसे संभाल लेंगे, तो वहीं बंगाल ने निकृष्टता की सभी सीमाएँ लांघ दी है।
हाल ही में केंद्र सरकार ने बंगाल के प्रमुख सचिव की नियुक्ति पुनः केंद्र सरकार के पेंशन एवं लोक कल्याण मंत्रालय में करने का प्रस्ताव रखा है। ये एक प्रस्ताव कम, और ममता बनर्जी की घमंडी बंगाल सरकार के लिए सख्त संदेश अधिक है – यदि अब भी नहीं सुधरी, तो ममता का घमंड आगे चलकर उसे बहुत भारी पड़ने वाला है।
हाल ही में साइक्लोन यास को लेकर पीड़ित राज्यों और उनके मुख्यमंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री की एक बैठक थी। इस बैठक में प्रमुख तौर पर ओड़ीशा और बंगाल के मुख्यमंत्रियों को शामिल होना था। लेकिन अपने घमंड में ममता बनर्जी ने 30 मिनट तक प्रधानमंत्री और उनके अफसरों को इंतज़ार कराया, और बस कुछ फ़ाइलें देकर वह निकल पड़ी।
ये अपमान कम, देश के प्रधानमंत्री को एक निकृष्ट और अकर्मण्य प्रशासक की खुली चुनौती अधिक है कि, मैं तो कुछ भी कर सकती हूँ, तुम क्या कर लोगे? हालांकि ममता से शिष्टाचार की आशा करना बेमानी है, लेकिन जो कल उसने किया, उसके लिए किसी प्रकार की निंदा कम ही पड़ेगी।
ये काफी अजीब बात है कि, जिस व्यक्ति को 212 से अधिक विधानसभा सीट मिली हो, वह ऐसे असहजता और बदतमीजी से बात करे, मानो उसकी सरकार कभी भी गिर सकती हो। ये स्पष्ट दिखाता है कि ममता बनर्जी वास्तव में कितनी असहज है, क्योंकि उन्हें अब भी भय है कि कहीं केंद्र सरकार उनकी सरकार न बर्खास्त कर दे। लेकिन इस असहजता में वह केंद्र सरकार पर जितना कीचड़ उछाल रही है और असामाजिक तत्वों को जितना वह बढ़ावा दे रही है, वह स्पष्ट तौर पर पीएम मोदी और केंद्र सरकार के धैर्य की परीक्षा ले रही हैं, और ये उचित नहीं है।
विश्वास न हो तो महबूबा मुफ्ती से ही पूछ लीजिए। 2015 में जब कश्मीर में भाजपा ने सभी को चौंकाते हुए 28 सीट प्राप्त की थी, तो अब्दुल्ला – गांधी गठजोड़ को दूर रखने के लिए PDP ने भाजपा के साथ मिलकर गठबंधन सरकार बनाई थी। लेकिन जब मुफ्ती मोहम्मद सईद का इंतकाल हो गया, और महबूबा मुफ्ती को सत्ता सौंपी गई, तो वह खुलेआम आतंकियों को बढ़ावा देने लगी, पत्थरबाज़ों को केंद्र सरकार की कार्रवाई से बचाने का प्रयास करती रही।
लेकिन जब कठुआ कांड में बिना किसी ठोस सबूत के सनातन धर्म को इसके पीछे दोषी ठहराने का प्रयास किया गया, तो न केवल भाजपा, बल्कि केंद्र सरकार के भी सब्र का बांध टूट गया, और पहले कश्मीर पर राष्ट्रपति शासन लगाया गया, और इसके बाद आतंकवाद को नष्ट करने में रोड़ा बन रही अनुच्छेद 370 को भी जड़ से उखाड़कर फेंक दिया गया।
ऐसे में ममता बनर्जी को स्मरण रहना चाहिए कि वह कोई सर्वशक्तिशाली तानाशाह नहीं है, जिनके एक इशारे पर पूरा देश उनकी उंगलियों पर नाचेगा। ममता बनर्जी को सबक सिखाना बेहद आवश्यक है, और केंद्र सरकार ने बंगाल सचिव को वापिस बुलाकर स्पष्ट संदेश दिया है – अब भी समय है, सुधर जाएँ, अन्यथा आने वाले दिन ममता सरकार के लिए बेहद कष्टकारी होंगे।