ममता CM है और PM मोदी ने उनके साथ CM जैसा व्यवहार किया, इससे भी ममता बनर्जी को दिक्कत है

ममता बनर्जी का ये विरोध बिल्कुल बचकाना है

गणतंत्र दिवस परेड झांकी

“उल्टा चोर कोतवाल को डांटे” ये कहावत पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर बिल्कुल फिट बैठती है। कोरोना महामारी को लेकर 10 राज्यों के 54 जिलाधिकारियों (DM) और मुख्यमंत्रियों की बैठक में अन्य किसी मुख्यमंत्री को कुछ अजीब नहीं लगा, सिवाय ममता के। ममता का आरोप है कि पीएम की ये मीटिंग पूर्णतः फ्लॉप थी क्योंकि उन्होंने किसी भी सीएम को बोलने नहीं दिया।

इतना ही नहीं पीएम अपनी मीटिंग में सामने सारे मुख्यमंत्रियों को कठपुतली बना देते हैं। ममता की अराजकता का आलम ये था कि उन्होंने अपने राज्य के नार्थ 24 परगना के DM तक को बोलने नहीं दिया। ममता के अनुसार देखें तो पीएम की गलती ये थी कि उन्होंने अन्य सभी मुख्यमंत्रियों की तरह ही ममता व्यवहार किया।

कोरोनावायरस की दूसरी लहर को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस वर्ष मार्च से अब तक कई बैठकें कर चुके हैं। आश्चर्यजनक बात ये है कि ममता बनर्जी एक भी मीटिंग में उपस्थित नहीं थी। वहीं पीएम मोदी ने जब कोरोनावायरस के संक्रमण को लेकर देश के 10 राज्यों के 54 DM के साथ बैठक की तो पहली बार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी अपने राज्य के 9 DM के साथ मौजूद थीं।

प्रधानमंत्री की मीटिंग का मुख्य केन्द्र सभी DM के साथ वार्ता करना था, मुख्यमंत्रियों की उपस्थिति किसी प्रोटोकॉल से ज्यादा नहीं थी, लेकिन ममता बनर्जी ने एक बार फिर अपनी अराजकतावादी राजनीतिक नौटंकियों का सबूत दे दिया।

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ममता बनर्जी ने आरोप लगाया कि पीएम ने उन्हें मीटिंग में बोलने ही नहीं दिया, और न ही अन्य किसी मुख्यमंत्री की जुबान खुली। सभी कठपुतली बने बैठे थे। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा, “बैठक में सभी सीएम को पुतले की तरह से बिठाकर रखा गया, किसी को बोलने का मौका नहीं दिया गया। पीएम मोदी ने ऑक्सीजन और ब्लैक फंगस की समस्या को लेकर कुछ भी नहीं पूछा। पीएम ने वैक्सीन के बारे में भी हमसे कुछ नहीं पूछा। हम इस व्यवहार से अपमानित महसूस कर रहे हैं। यदि राज्यों को बोलने की अनुमति नहीं थी तो उन्हें क्यों बुलाया गया। बोलने की अनुमति नहीं दिए जाने को लेकर सभी मुख्यमंत्रियों को विरोध करना चाहिए।”

ममता बनर्जी का ये विरोध बचकाना लगता है क्योंकि इस बैठक में उन्हें ही नहीं बल्कि किसी भी मुख्यमंत्री को बोलने का वक्त नहीं मिला था, क्योंकि मुख्य बैठक जिलाधिकारियों (DM) के साथ थी‌, लेकिन ड्रामेबाजी में पीएचडी कर चुकी ममता ने इस संवेदनशील अवसर को भी राजनीति का घिनौना अड्डा बना डाला। मीटिंग में शामिल बंगाल के नार्थ 24 परगना के DM को पहले से बोलने के लिए निर्धारित समय दिया गया, लेकिन ममता ने उन्हें बोलने नहीं दिया गया, जो दिखाता है कि ममता अपने आप को सुपर पावर मानती हैं।

उन्होंने पहले ही इस DM मीटिंग का विरोध किया था, और बैठक के बाद तो वे खुलकर सामने भी आ गया।

ममता बनर्जी का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनका DM मीटिंग में अपमान किया है, लेकिन अगर पीएम की मीटिंग के रवैए को देखें तो कहा जा सकता है कि वहां तो किसी भी मुख्यमंत्री को नहीं बोलने दिया गया, तो फिर ममता का ही अपमान कैसे? शायद ममता बनर्जी अपने आप को सबसे ऊपर समझती हैं, और हमेशा ही कुछ अधिक की उम्मीद करती हैं। इसीलिए प्रधानमंत्री ने उनके साथ अन्य मुख्यमंत्रियों की तरह व्यवहार किया, जो उन्हें पसंद नहीं आया और वो भड़क गईं।

ममता बनर्जी को ये समझना होगा कि विधानसभा चुनाव खत्म हो चुके हैं, और उन्हें केन्द्र के सहयोग से ही पांच साल सरकार चलानी है। वहीं कोविड के इस संक्रमण को रोकने में भी केंद्र के साथ मिलकर काम करना होगा। इसलिए अब उन्हें चुनावी कैंपेन के मोड से बाहर आ जाना चाहिए, वरना बंगाल के आम लोगों के लिए उनकी ही मुख्यमंत्री ममता दिक्कतें खड़ी करेंगी।

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