मायावती ने केजरीवाल पर किया हमला, प्रवासी मजदूर संकट नहीं संभाल पाए

राज्य सरकारें अपनी कमियाँ छिपाने के लिए नाटकबाजी कर रही हैं

पिछले वर्ष लॉकडाउन लगने के बाद बड़ी संख्या में मजदूरों का दिल्ली, महाराष्ट्र जैसे राज्यों से उत्तर प्रदेश और बिहार की ओर पलायन हुआ था। जहाँ एक ओर तेलंगाना और उड़ीसा जैसे राज्यों ने मजदूरों की वापसी के लिए सुरक्षा के समुचित इंतजाम किये थे वहीं दिल्ली और महाराष्ट्र सरकारों ने वहां काम कर रहे मजदूरों को उनके हाल पर छोड़ दिया था।ऐसा ही प्रकरण इस वर्ष भी सामने आया है जब केजरीवाल सरकार ने बिना बंदोबस्त के अचानक लॉकडाउन घोषित कर दिया जिससे फिर एक बार भारी संख्या में मजदूरों का पलायन होने लगा। जिसके बाद बसपा सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने दोनों सरकारों को जमकर लताड़ा है।

मायावती ने ट्वीट करते हुए लिखा है “केवल हाथ जोड़कर दिल्ली के सीएम का यह कहना कि दिल्ली से लोग पलायन न करें, यही नाटक कोरोना के दौरान् पहले भी किया गया था। यह सब अब महाराष्ट्र, हरियाणा व पंजाब आदि राज्यों में भी देखने के लिए मिल रहा है। अब पंजाब में लुधियाना से भी लोग काफी पलायन कर रहे हैं, यह अति-दुःखद है।”

मायावती ने आगे लिखा “यदि यहाँ कि राज्य सरकारें इनमें विश्वास पैदा करके इनकी जरूरतों को समय से पूरा कर देतीं तो फिर ये लोग पलायन नहीं करते और अब यहाँ कि राज्य सरकारें इस मामले में अपनी कमियों को छिपाने हेतु किस्म-किस्म की नाटकबाजी कर रही हैं, यह किसी से छिपा नहीं है।“

केजरीवाल सरकार ने ऐसा ही व्यवहार पिछले वर्ष भी दिखाया था। इससे उत्तर प्रदेश और दिल्ली के बॉर्डर पर हालत ऐसे बिगड़े की लाखों की संख्या में मजदूर अचानक दिल्ली बॉर्डर पर आने लगे। हालांकि तब योगी सरकार ने परिस्थिति को संभाल लिया था और तुरंत बड़ी संख्या में आइसोलेशन सेंटर बनवाकर मजदूरों को उसमें रखा गया था।

किन्तु इस बार हालात बहुत दूसरे हैं क्यूंकि इस बार कोरोना का फैलाव पिछले वर्ष की अपेक्षा बहुत अधिक होने के बाद दिल्ली सरकार ने लॉकडाउन घोषित किया है, साथ ही उत्तर भारत में ब्रिटिश वेरिएंट फैला है जिसकी फैलाव की गति पिछले वर्ष के वेरिएंट से 80 प्रतिशत अधिक है।ऐसे में मायावती का बयान इस ओर भी इशारा करता है की दिल्ली, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों की लापरवाही का परिणाम उत्तर प्रदेश को न भोगना पड़े।

राज्य सरकारों के व्यवहार और जिम्मेदारी में कितना अंतर है यह तेलंगाना, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश की तुलना दिल्ली, महाराष्ट्र आदि से करने पर साफ़ दिखता है। पिछले साल जब मजदूरों का पलायन हो रहा था तो दिल्ली और महाराष्ट्र सरकार ने उनके भोजन तक की व्यवस्था नहीं की थी। जबकि उड़ीसा और तेलंगाना सरकार ने मजदूरों को रोककर रखा, उनके भोजन की व्यवस्था की और केंद्र तथा सम्बंधित राज्यों से बात करके एवं ट्रेन आदि की समुचित व्यवस्था करके उन्हें घर भेजा।

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इसी प्रकार जब बिहार सरकार ने मजदूरों की तत्काल वापसी से मना कर दिया था और उन्हें उत्तर प्रदेश में ही रोकने का आग्रह किया था तब उत्तर प्रदेश सरकार ने भी बिहार जाने वाले मजदूरों के रहने और भोजन की व्यवस्था की थी। देखा जाए तो इन सभी लोगों के मुफ्त भोजन की व्यवस्था तो केंद्र ने ही थी लेकिन तेलंगाना, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश ने इनके रहने की व्यवस्था की और उन्हें भरोसा दिलाया। जबकि ऐसा कोई प्रयास महाराष्ट्र या दिल्ली की ओर से न तो पिछले वर्ष हुआ न इस वर्ष, बल्कि अब तो पंजाब और हरियाणा भी इस लिस्ट में जुड़ गए हैं।

पिछले वर्ष तो केजरीवाल ने अपने स्वभाव के अनुरूप नीचता दिखाते हुए पहले यह प्रचारित किया की वह बिहार लौट रहे मजदूरों का खर्च वहन कर रहे हैं और बाद में पुरे खर्च का हिसाब बिहार सरकार को भेजकर उनसे भुगतान की मांग कर दी।

वास्तविकता यह है की कोरोना में कई राज्य सरकारें संकीर्ण मानसिकता अपनाए हुए हैं। अपनी पार्टी और अपने प्रदेश के लोगों की ही सुरक्षा उनकी प्राथमिकता है। जमीनी काम छोड़कर मीडिया को मुफ्त वैक्सीन का लालच देकर, चैनलों पर विज्ञापन चलवाकर एवं पेपर में इश्तिहार निकलवाकर अपनी छवि चमकाई जा रही है।

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