कोरोना और वैक्सीन की खबरों के बीच अब यह खबर सामने आई है कि माइक्रोसॉफ्ट के सह-संस्थापक बिल गेट्स ने अपने एक NGO की मदद से भारत में आदिवासी बच्चों पर एक वैक्सीन का अनधिकृत ट्रायल किया था।
रिपोर्ट सामने आने के बाद, इस अरबपति के खिलाफ कार्रवाई की मांग होने लगी है और भारत में ‘अरेस्ट बिल गेट्स’ ट्रेंड करने लगा।
रविवार को, भारत की quarterly जर्नल GreatGameIndia ने एक रिपोर्ट में बताया कि बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन (बीएमजीएफ) ने HPV वैक्सीन के परीक्षण के लिए सिएटल स्थित एक गैर-सरकारी संगठन – एनजीओ PATH (Program for Appropriate Technology in Health) को वित्त पोषित किया था, जिसने 2009 में तेलंगाना (तब के आंध्र प्रदेश) के खम्मम में 16,000 से अधिक स्थानीय लड़कियों पर ट्रायल किया था।
इस प्रोजेक्ट में दो प्रकार के HPV वैक्सीन यानी Human Papilloma Virus के वैक्सीन का उपयोग किया गया था। पहला Gardasil जिसे Merck ने बनाया था और Cervarix जिसे GlaxoSmithKline (GSK) ने बनाया था।
रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि वैक्सीन लगाने के दौरान न ही इससे होने वाले खतरे और साइड इफेक्ट्स के बारे में जानकारी दिया गया था और न ही बच्चों या उनके माता-पिता से सहमति ली गयी थी। इस ट्रायल के दौरान यह भी नहीं बताया गया था कि यह वैक्सीन का ट्रायल हो रहा है।
बता दें कि खम्मम को भारत के सबसे गरीब और सबसे कम विकसित ग्रामीण क्षेत्रों में से एक कहा जाता है और यहाँ कई जातीय-जनजातीय समूह बसते हैं। इस प्रोजेक्ट में भर्ती की गई सभी आदिवासी लड़कियां 10-14 वर्ष से कम उम्र की थीं। कम आय वाले परिवारों और मुख्य रूप से आदिवासी पृष्ठभूमि से संबंधित इन लड़कियों को बिना बताये ही बिल गेट्स एनजीओ द्वारा वैक्सीन के डोज लगा दी गई थी। यह जिले में लगभग 16,000 लड़कियों पर ट्रायल किया गया था, जिनमें से कई आदिवासी छात्रों के लिए राज्य सरकार द्वारा संचालित छात्रावासों में रहती थीं। महीनों बाद, कई लड़कियां बीमार पड़ने लगीं और 2010 तक उनमें से पांच की मृत्यु हो गई।
यह मामला 2010 में सामने आया, जब दिल्ली स्थित एनजीओ समा ने पता लगाया कि ट्रायल का लड़कियों पर गंभीर असर हुआ है और कम से कम 120 लड़कियों को मिर्गी के दौरे, गंभीर पेट दर्द, और सिरदर्द जैसे साइड इफ़ेक्ट हुए थे। रिपोर्ट के अनुसार वैक्सीन लगावाने वाली कई लड़कियों द्वारा पेट में दर्द, सिरदर्द, चक्कर आना और थकावट जैसे साइड इफ़ेक्ट दिखने लगा था। वैक्सीन के बाद menstruation का समय से पहले आना, भारी रक्तस्राव और menstrual cramps, अत्यधिक चिड़चिड़ापन और बेचैनी की खबरें आई। रिपोर्ट के अनुसार ऐसे खबर सामने आने के बावजूद NGO के वैक्सीन लगाने वालों ने कोई व्यवस्थित कार्रवाई या निगरानी नहीं की।
भारत में अध्ययनों से संबंधित अनियमितताओं की जांच करने वाली स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर एक standing committee ने 2013 में 30 अगस्त को अपनी रिपोर्ट पेश की थी। समिति ने पाया कि इन अध्ययनों के संचालन के लिए कई मामलों में छात्रावास के वार्डन से सहमति ली गई थी, जो मानदंडों का एक प्रमुख उल्लंघन था। कई अन्य मामलों में, लड़कियों के गरीब और अनपढ़ माता-पिता के अंगूठे के निशान को सहमति फॉर्म पर विधिवत चिपका दिया गया था।
बच्चों को भी बीमारी या वैक्सीन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। बड़ी संख्या में मामलों में संबंधित अधिकारी टीकाकरण वाले बच्चों के लिए अपेक्षित सहमति प्रपत्र प्रस्तुत नहीं कर सके। समिति ने बताया था कि आंध्र प्रदेश में 9,543 [सहमति] फॉर्मों में से 1,948 फॉर्मों में अंगूठे के निशान हैं जबकि हॉस्टल वार्डन ने 2,763 फॉर्मों पर हस्ताक्षर किए हैं।
आदिवासी लड़कियों की मौत को गंभीरता से लेते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) से यह बताने को कहा कि आखिर ट्रायल की अनुमति कैसे दी गई। जस्टिस दीपक मिश्रा और वी गोपाल गौड़ा की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने केंद्र से भारत में एचपीवी वैक्सीन के परीक्षण के लिए लाइसेंस देने से संबंधित प्रासंगिक फाइलें पेश करने को कहा था। अदालत ने केंद्र से संसदीय समिति की रिपोर्ट पर उठाए गए कदमों से उसे अवगत कराने को भी कहा था।
Standing committee ने अपनी जाँच में पाया कि 16 नवंबर, 2006 को PATH और आईसीएमआर के बीच समझौता ज्ञापन (MoU) को परिचालित किया गया था।
स्थायी समिति की रिपोर्ट चौंकाने वाली थी, लेकिन यह और भी महत्वपूर्ण हो गई जब यह उल्लेख किया गया कि अध्ययन बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन (बीएमजीएफ) द्वारा प्रायोजित किया गया था।
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यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि 2002 में, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने, विवादास्पद रूप से, फार्मास्युटिकल क्षेत्र में 205 मिलियन डॉलर मूल्य के स्टॉक खरीदे थे, जिसमें Merck & Co के शेयर शामिल थे जिसने लड़कियों पर वैक्सीन लगाया था। हालाँकि. वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अगस्त 2009 में रिपोर्ट दी थी कि फाउंडेशन ने उस वर्ष के 31 मार्च और 30 जून के बीच मर्क में अपने शेयर बेचे। इसका अर्थ यह हुआ कि 2002 से 2009 यानी वैक्सीन लगाने तक बीएमजीएफ दोहरी भूमिका में थी। एक और चैरिटी का दावा भी और दूसरी और Merck की वैक्सीन की सफलता और उसके व्यवसाय के जरीय लाभ भी। स्पष्ट रूप से बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन इन सभी अपराधों के लिए जिम्मेदार था, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई।
स्टैंडिंग कमिटी द्वारा सुझाए गए उपायों में से किसी भी उपाय को भारत सरकार द्वारा नहीं लागु किया गया। इससे कांग्रेस और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के बीच मिलीभगत की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। कई संस्थानों और व्यक्तियों को PATH जैसे संगठनों से भारी मात्रा में धन उपलब्ध कराया जा रहा था इसी कारण किसी ने बिल गेट्स को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश भी नहीं की। इसलिए भारत सरकार द्वारा डब्ल्यूएचओ, यूनिसेफ या अमेरिकी सरकार को मानवाधिकारों के उल्लंघन की कोई आधिकारिक रिपोर्ट कभी नहीं दी गई, जैसा कि स्थायी समिति ने सिफारिश की थी।