गोवा सरकार ने एक अहम निर्णय में हाईकोर्ट का रुख किया है। उन्होंने तहलका के संस्थापक और वामपंथी पत्रकार तरुण तेजपाल को बचकाने आधार पर छोड़े जाने के विरुद्ध अपील दायर की है। तरुण पर अपनी एक सहयोगी के साथ यौन शोषण करने का आरोप है, जिसके पीछे वे कई वर्षों तक जेल में भी थे।
कुछ दिनों पहले न्यायाधीश क्षमा जोशी के नेतृत्व में एडिशनल सेशन्स कोर्ट ने तरुण तेजपाल को अपने ही कर्मचारी का यौन शोषण करने के आरोप में बरी किया। 2013 में तरुण ने अपने सहयोगी का यौन शोषण किया था, जिसके पीछे बौद्धिक क्षेत्र से लेकर गोवा की राजनीति में भी कोहराम मच गया था। ये इसलिए भी काफी हैरानी भरा था क्योंकि तरुण तेजपाल महिलाओं के अधिकार को लेकर काफी मुखर हुआ करते थे।
लेकिन जिन आधारों पर तरुण को ‘निर्दोष’ सिद्ध किया गया, उन्हें सुनकर और पढ़कर किसी का भी खून खौल सकता है। गोवा पुलिस ने अपनी ओर से तरुण तेजपाल को दोषी सिद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, लेकिन सेशन्स कोर्ट के अनुसार गोवा पुलिस ने ही मूल घटना की CCTV फुटेज के साथ छेड़छाड़ की थी, जिसके कारण तरुण तेजपाल के विरुद्ध कोई मामला नहीं बनता। एडिशनल सेशन्स कोर्ट ने तरुण तेजपाल को संदेह के लाभ के आधार पर बरी कर दिया और कहा कि जांच के दौरान गोवा पुलिस ने सबूतों को नष्ट किया और सही साक्ष्यों को पेश नहीं किया। इसके बाद गोवा सरकार ने पीड़ित महिला को इंसाफ दिलाने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
जज क्षमा जोशी ने अप्रत्यक्ष तौर पर पीड़िता को ही दोषी ठहराने का प्रयास किया, क्योंकि कोर्ट के निर्णय के अनुसार पीड़ित पीड़िताओं जैसा व्यवहार ही नहीं कर रही थी। कोर्ट ने उस तर्क को भी खारिज कर दिया जिसमें ये कहा गया था कि यौन उत्पीड़न की घटना के बाद पीड़िता दहशत में थी। इतना ही नहीं, तरुण की सहयोगी संपादिका शोमा गांगुली सहित कई वामपंथी पत्रकारों ने तरुण का बचाव करने के पीछे पीड़िता के चरित्र पर भी सवाल उठाने का प्रयास किया।
ऐसे में गोवा सरकार ने इस पक्षपातपूर्ण निर्णय के विरुद्ध हाईकोर्ट में चुनौती देकर न सिर्फ एक उचित निर्णय लिया है, बल्कि एक स्पष्ट संदेश भी भेजा है – अन्याय के विरुद्ध प्रमोद सावंत की सरकार चुप नहीं बैठेगी।