पंचायत चुनाव के आधार पर असेंबली चुनावों का विश्लेषण, बंगाल की जीत में लिबरल पगला गए हैं

UP में पंचायत चुनाव का Result, आगे का भविष्य नहीं तय करेगा

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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद से देश की लिबरल मीडिया अथवा कथित चुनाव विश्लेषक उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी के विरुद्ध हवा का अनुमान लगा रहे हैं।

दरअसल, हाल ही में उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों के नतीजे सामने आए हैं, जिसमें बताया जा रहा है कि सपा समर्थित प्रत्याशियों ने ज्यादा सीट लाए है। लिबरल मीडिया यह भी दावा कर रही है कि बीजेपी, अयोध्या, बनारस जैसी जगहों से भी हार गई है, अर्थात योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता कम हो रही है। हालांकि, लोकप्रियता कम होने का कारण लिबरलो ने अपने-अपने एजेंडे के हिसाब से बताया है।

आपको बता दें कि राज्यों के पंचायत चुनावों में राजनीतिक दलों का कोई खास लेना देना नहीं है। पंचायत चुनाव केवल और केवल और प्रत्याशी के चेहरे पर निर्भर करता है। अगर प्रत्याशी लोकप्रिय है या क्षेत्र में उसका दबदबा है तो वह चुनाव जीत जाता है। चाहे वह प्रत्याशी बीजेपी, कांग्रेस या सपा किसी भी पार्टी का समर्थित क्यों न हो कोई फर्क नहीं पड़ता। बता दें कि मतदाताओं को यह भी नहीं ज्ञात होता है कि उनका पसंदीदा प्रत्याशी किस पार्टी से समर्थित है। वो बस प्रत्याशी का चेहरा देखते हैं।

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ऐसे में अगर कोई पत्रकार या चुनाव विश्लेषक पंचायत चुनावों को पार्टी से जोड़कर देखता है, तो उसको राजनीति का ‘र’ भी नहीं आता है और उसे टीवी स्टूडियो और ट्विटर पर जनता को गुमराह करने के अलावा और कुछ नहीं आता है।  कथित पत्रकार और लिबरल्स पंचायत चुनावों को लेकर अपने एजेंडे के मुताबिक अलग-अलग तर्क दे रहे हैं। जैसे कि- किसान आंदोलन का प्रभाव, योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता, या फिर कोरोना संक्रमण को नियंत्रित में रखने की नाकामी।

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उदाहरण के लिए बता दूं कि द प्रिंट ने बताया है कि, “योगी सरकार कोरोना महामारी को नियंत्रित में रखने में विफल रही जिस वजह से मोदी योगी की ध्रुवीकरण की राजनीति चल नहीं पाई।” प्रशांत भूषण ने कहा कि, “पंचायत चुनावों के नतीजे बताते है कि, योगी सरकार का काउंटडाउन चालू हो चुका है।” योगेंद्र यादव ने कहा कि, “किसान आंदोलन का प्रभाव पंचायत चुनावों में साफ साफ दिख रहा है। प्रशांत कनौजिया ने तो दो कदम आगे निकल कर, योगी आदित्यनाथ के लिए गोरखधाम मंदिर में कमरा का बंदोबस्त करने में लग गए।”

खैर, अब समझ आ रहा है कि सालों से ऐसे लिबरल्स की चुनावी विश्लेषण फेल क्यों हो रही थी। दिल्ली – NCR में बैठे मीडिया को देश की जमीनी हकीकत के बारे में कोई आइडिया नहीं है। जानकारी के लिए बता दूं कि 2015 पंचायत चुनावों में बसपा समर्थित उम्मीदवारों की जीत हुई थी और 2017 राज्य विधानसभा चुनाव में बसपा ने सिर्फ 19 सीटों पर जीत दर्ज की थी।

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