आजतक के वरिष्ठ पत्रकार रोहित सरदाना का शुक्रवार को हृदयघात से निधन हो गया। वे कोरोना से भी लड़ रहे थे और नॉएडा के एक अस्पताल में भर्ती थे। जब से उनके असामयिक निधन की खबर आई, राजनीतिक गलियारे से लेकर आम आदमी तक सभी ने शोक संवेदना व्यक्त की।
हालाँकि एक वर्ग ऐसा भी रहा जो इस खबर से खुशियाँ मना रहा था। यह वर्ग था इस्लामिस्टो का, जिसमे कुछ तो पत्रकार और ब्लू टिक वाले थे। यही नहीं लेफ्ट ब्रिगेड के भी कुछ लोग थे जिन्होंने रोहित की मौत की खबर को अपने प्रोपोगेंडे के लिए इस्तेमाल किया।
रोहित की मौत पर खुशी मनाने वालों में सर्जिल उस्मानी सबसे पहले था। यह न्यूज़लांड्री के लिए लेख लिख चुका है। उसने ट्वीट करते हुए रोहित को ‘pathological liar’ और ‘genocide enabler’ कहा और कहा कि रोहित सरदाना को एक पत्रकार के रूप में याद नहीं किया जाएगा। यही नहीं इस पोस्ट के बाद उसने अपनी बात को जस्टिफाई करने के लिए थ्रेड भी लिखा और कहा कि जब कोई फासिस्ट मरता है तो दुखी होने की जरुरत नहीं।
वहीं मोहम्मद इबरार नामक व्यक्ति जिसके ट्विटर प्रोफाइल के अनुसार वह टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए एक संवाददाता हैं, उसने ट्वीट किया, “मौत से अपराध क्षमा नहीं होते हैं।” उसने आगे लिखा कि रोहित की मौत उनके से “कुकर्म” पर पर्दा नहीं डाला जाना चाहिए।
अलवर से अपने आप को कांग्रेस पार्टी के यूथ आइकन करने वाले इम्तियाज हुसैन ने अपने ट्विटर प्रोफाइल पर ख़ुशी जताते हुए लिखा, “देर है अंधेर नहीं RIP रोहित सरदाना।“
फरवरी 2020 में दिल्ली को दहलाने वाले हिंदू विरोधी दंगों के अभियुक्तों में से एक, सफ़ुरा ज़ारगर भी उन इस्लामवादियों में से एक थी जो आजतक के पत्रकार से नफरत को जग जाहिर करने से खुद को नहीं रोक पाई।
उसने लिखा, “यह गोदी मीडिया के लिए एक ट्रेलर है। आपकी मौत का भी तमाशा बना दिया जायेगा। यह वह है जो आपने अपने लिए चुना है। आपके पास अपने आप को दोषी ठहराने के अलावा कोई चारा नहीं है।“ यह विडम्बना ही है कि ऐसी मानसिकता वाली सफुरा को दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा मानवीय आधार पर जमानत दी गई थी जिसके बाद से वे जेल से बाहर है।
शेखर गुप्ता के द प्रिंट में स्तंभकार ज़ैनब सिकंदर ने बाकी की तुलना में चालाकी से ट्वीट किया और रोहित का नाम लिए बिना लिखा कि, “गोदी मीडिया पर ‘लानत’ है, आपको अपने कर्मों की सजा अवश्य मिलेगी, भगवान की लाठी में आवाज नहीं होती।”
BrumbyOz नामक एक इस्लामिस्ट अकाउंट जिसे ट्विटर के लिबरल वर्गों फॉलो किया जाता उसने भी कुछ इसी तरह का ट्वीट किया।
@deepsealioness नाम के ब्लू टिक वाले यूजर ने भी उनकी मृत्यु का जश्न मना रहे लोगों का समर्थन किया।
वहीँ इंडियन एक्सप्रेस की पत्रकार अन्या शंकर ने भी रोहित सरदाना के लिए अपनी नफरत जाहिर करते हुए ट्वीट किया कि अब पर शोक संवेदना के संदेशों के साथ White Washing शुरू हो चुका है।
इसी तरह कई इस्लामिस्टो ने भारतीय राष्ट्रवादियों और सामान्य रूप से हिंदुओं के लिए अपनी घृणा का नग्न प्रदर्शन करने के बाद, अपने बचाव के लिए रोहित के कथित ‘इस्लामोफोबिया’ के पीछे छुपने की कोशिश की। किसी किसी ने तो रोहित सरदाना की तुलना एडॉल्फ हिटलर भी कर दी थी।
Every death of fascist,their enablers should not be mourned. Muslims are not reacting to #RohitSardana's death & it's okay, we have a valid reason. Why you want us to show dignity to a man who were hounding Muslims since years & was a big player in spreading Islamophobia,my foot.
— Fatima Zohra Khan (@Fatima_Z0hra) April 30, 2021
https://twitter.com/BanjaraThoughts/status/1388177773999517699?s=20
*Hitler dies in today's India*
Some liberals: A life full of dreams and ambitions tragically cut short. Whatever he did, he did well. Since his policies did not lead to my murder, I will call them 'difference of opinion' and bask in the warm glow of my own virtue— Yashee (@yasheesingh) April 30, 2021
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रोहित के लिए यह नफरत इतनी थी कि उनके विकिपीडिया पेज को भी बदल दिया गया। उनके विकिपीडिया पेज को शुक्रवार को कम से कम 500 बार बदला गया है, और इस्लामवादियों ने वहां उनके खिलाफ जहर उगला। कभी उन्हें modism से पीड़ित बताया गया तो कभी चड्ढी संघी, गौमूत्र पीने वाला संघी’ और ’पेड भक्त’ भी कहा गया।
हालाँकि इन इस्लामिस्टो को यह याद रखना चाहिए कि रोहित सरदाना की विरासत आगे बढती रहेगी। वह भले ही शारीरिक रूप से अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी पत्रकारिता ने राष्ट्रवादियों की एक पूरी पीढ़ी को प्रेरित किया है।
इसलिए, इन इस्लामिस्टो को अपनी खुशियों पर लगाम लगानी चाहिए। टीम TFI रोहित सरदाना आत्मा को को सद्गति के लिए प्रार्थना करती है ॐ शांति।