देश की विपक्षी पार्टियों की एक आदत रही है कि जैसे ही किसी राज्य में बीजेपी विरोधी किसी नेता की जीत होती है, तो समूचा विपक्ष उस नेता के पीछे खड़े होकर मोदी से मुकाबला करने की उम्मीद करने लगता है और पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की जीत के बाद ये खेमेबाजी शुरू हो गई है। कांग्रेस के असंतुष्ट 23 नेताओं से लेकर एनसीपी प्रमुख शरद पवार तक ये कोशिश करने लगे हैं कि ममता बनर्जी को यूपीए अध्यक्ष बनाया जाए और फिर उनके नेतृत्व में बीजेपी के सर्वोच्च नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुकाबला किया जाए।
राज्यों में कोई भी जीते लेकिन केन्द्रीय विपक्षी नेतृत्व की जिम्मेदारी यूपीए अध्यक्ष के तौर पर सोनिया गांधी ही संभालती रही हैं, लेकिन अब स्थिति बदलने लगी है, क्योंकि बंगाल में ममता की जीत ने यूपीए को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अब पीएम मोदी का मुकाबला करने के लिए ममता बनर्जी को आगे किया जाए। इस मुद्दे पर सबसे दिलचस्प बात ये है कि कांग्रेस के बग़ावती 23 नेताओं के साथ ही कांग्रेस गांधी परिवार भी सहमत हो सकता है।
कांग्रेस के बग़ावती नेताओं के ममता बनर्जी के साथ राजनीति रिश्ते प्रगाढ़ रहे हैं। राजीव गांधी के दौर में यूथ कांग्रेस से जुड़ीं ममता के साथ कई नेता शामिल थे और वही नेता आज कांग्रेस में नेतृत्व में कमी पर सवाल उठाने के साथ ही आमूलचूल परिवर्तन की बात कर रहे हैं। दूसरी ओर गांधी परिवार भी ममता को यूपीए अध्यक्ष बनाने की सोच रहा है। राहुल गांधी का ममता बनर्जी की जीत पर ‘बेगानी शादी में दीवाने अब्दुल्ला’ की तरह नाचना भी इसका प्रतीक है कि ममता बनर्जी को राहुल गांधी ही जनपथ में यूपीए के सर्वोच्च नेता का पद दे सकते हैं।
इसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि कांग्रेस लगातार चुनाव हार रही है और आत्मचिंतन पार्टी में खत्म हो चुका है, जिसके चलते वरिष्ठ नेता बगावत करने लगे हैं। ऐसे में कांग्रेस किसी भी कीमत पर ये नहीं चाहती कि कांग्रेस गांधी परिवार से अलग हो। ऐसे में गांधी परिवार बग़ावती नेताओं के सामने ये शर्त रख सकता है कि ममता को यूपीए अध्यक्ष बनाया जाएगा लेकिन बदले में राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष का पद मिले। कांग्रेस ममता को यूपीए की कमान देकर अपनी फूट को खत्म करने की कोशिश कर रही है।
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कांग्रेस की तरह ही एनसीपी प्रमुख शरद पवार और डीएमके प्रमुख एम के स्टालिन जैसे नेता भी ममता के पक्ष में बैटिंग कर चुके हैं जो दिखाता है कि अब महागठबंधन की नई बयार ममता के नेतृत्व में चलाई जाएगी। इसके पीछे जहां विपक्षी पार्टियों का मुख्य उद्देश्य मोदी बनाम ममता की लड़ाई को मजबूत करना है वहीं कांग्रेस का उद्देश्य बगावती नेताओं से शर्त के जरिए राहुल गांधी को स्थायी तौर पर स्थापित करने का है।
ममता को यूपीए अध्यक्ष बनाने के साथ विपक्ष मोदी बनाम ममता की रूपरेखा तो तैयार कर चुका है, लेकिन सवाल ये है कि क्या ये एक जुट रह पाएंगे, क्योंकि इससे पहले जितने भी गठबंधन बने सब चुनावों के ठीक पहले धुआं हो गए।