टिकरी और सिंघु गांवों के निवासियों की दुखद कहानी, Media को इसमें दिलचस्पी नहीं

नकली किसानों ने असली परेशानी दे रखी है!

टिकरी और सिंघू बॉर्डर

दिल्ली की सीमाओं ( टिकरी और सिंघु बॉर्डर) पर चल रहे किसान आंदोलन को 6 महीने हो चुके हैं। इस दौरान लोगों ने तथाकथित किसानों की अराजकता और मनमानी के अलावा अनेकों दिक्कतें बर्दाश्त की हैं। यहां तक कि देश में कोरोनावायरस की दूसरी लहर के लिए किसान आंदोलन को एक बड़ी वजह माना जा रहा है।

वहीं कुछ दिन पहले ही किसानों ने आंदोलन को तेज करने की बात कही थी, लेकिन अब किसानों की इन हरकतों के कारण टिकरी और सिंघु बॉर्डर के आसपास के ग्रामीण नागरिक आक्रोशित हैं। उन्होंने आंदोलन के कारण होने वाली दिक्कतों के लिए इन तथाकथित किसानों को जिम्मेदार ठहरा दिया है, और इनके कारण ही कोरोना के संक्रमण की बात भी कही है।

देश में एक तरफ जहां कोरोनावायरस की दूसरी लहर के कारण मौतों का आंकड़ा बढ़ रहा है तो दूसरी ओर तथाकथित किसानों ने एक बार फिर अपने अराजक आंदोलन को तेज करने की बात की हैं। इसको लेकर टिकरी और सिंघु बॉर्डर के आस-पास के ग्रामीण नागरिकों ने आक्रोश जाहिर किया है। गांव के नागरिकों को कोरोना वायरस के फैलने के डर सता रहा है।

इस मामले में एक शख्स ने बताया कि आंदोलन में बैठे लोग गांवों में घूमते हैं, और इससे कोरोना के संक्रमण की रफ्तार तेज हो सकती है, क्योंकि गांव में पहले ही कोरोना के काफी मरीज हो चुके हैं।

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इतना ही नहीं ग्रामीणों ने बताया है कि गांवों की सड़कों पर पूरे दिन ट्राफिक रहता है, क्योंकि हाइवे बंद होने के कारण गांव की गलियों के जरिए ही लोग आंदोलन स्थल को पार करते हैं। जिससे गांव की गलियां तक जाम रहती हैं। वहीं हाईवे के इसी जाम के कारण लोगों को शहरी इलाकों से जरूरी सामान लाने के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, और आपातकालीन स्थिति में ये आंदोलन सबसे बड़ी बाधा बनता है।

वहीं एक किसान ने आरोप लगाया कि टिकरी और सिंघु बॉर्डर पर बैठे हुए लोग कोई किसान नहीं हैं। इन्हें राजनेताओं का समर्थन प्राप्त है, और वहीं से पैसा मिलता है, जो दिखाता है कि इसे कुछ खास राजनीतिक दलों द्वारा प्रायोजित किया गया है।

वहीं टिकरी बॉर्डर की तरह ही सिंघू बार्डर के लोग भी इन आंदोलनकारियों की आलोचना कर रहे हैं और मांग कर रहे हैं कि जल्द से जल्द ये तथाकथित किसान आंदोलन खत्म किया जाए। इन ग्रामीणों को दवा से लेकर सामान्य जरूरतों के लिए संघर्ष करना पड़ता है।

साथ ही ट्रैफिक के कारण घरों के सामने ही गलियों में जाम के कारण ट्रक तक खड़े रहते हैं। एक ताज्जुब की बात तो ये भी है कि ये सारी दिक्कतें मुख्य धारा की मीडिया को दिखाई नहीं दे रहा है।

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मुख्यधारा की मीडिया कवरेज में हमेशा ही किसानों के आंदोलन में गर्मी और सर्दी के प्रकोप का जिक्र होता है। तथाकथित अराजकतावादी लोगों की मनमानी को कुछ इस तरह से पेश किया जाता है जैसे सारी गलती सरकार की ही है।

जबकि हकीकत ये है कि टिकरी और सिंघु बॉर्डर पर बैठे किसान तो इस पूरी नौटंकी से खुश हैं लेकिन असल दिक्कतें इस क्षेत्र के आसपास के ग्रामीण नागरिकों को है। इसीलिए ये लोग अब इस आंदोलन को राजनेताओं द्वारा प्रायोजित बता इसे खत्म करने की मांग कर रहे हैं।

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