पिछले कई दिनों से उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में गंगा किनारे शवों को दफनाने पर लगातार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को निशाना बनाया जा रहा है। कांग्रेस तथा लेफ्ट ब्रिगेड के पत्रकार लगातार गिद्दों की तरह शवों की तस्वीरों को पोस्ट कर रहे हैं जिससे योगी सरकार को बदनाम किया जा सके। सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लिबरल मीडिया ने इन तस्वीरों को जगह दी है। अब दैनिक जागरण ने एक रिपोर्ट कर इस झूठ का पर्दाफाश किया है और बताया है कि यह कोई नयी तस्वीर नहीं है बल्कि यह 2018 की तस्वीर है उस रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि शवों को रेती में दफनाने की परंपरा है।
दैनिक जागरण की रिपोर्ट के अनुसार, प्रयागराज के श्रृंगवेरपुर घाट पर 2018 में दफनाए गए शवों की अधिकांश तस्वीरों को इंटरनेट मीडिया पर वायरल करके उसको कोरोना वायरस संक्रमण से हुई मौत से जोड़ा जा रहा है। 2018 में कोरोना संक्रमण कोई नामोनिशान ही नहीं था, बावजूद इसके प्रोपोगेंडे को फैलाया जा रहा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि तीर्थराज प्रयाग में पीढिय़ों से कई हिंदू परिवारों में शवों को गंगा नदी के तीरे रेती में दफनाने की परंपरा है और यह दशकों पुरानी परंपरा है।
कोरोना नहीं था, फिर भी तीन साल पहले ऐसी ही थी गंगा किनारे की तस्वीर pic.twitter.com/ld5ZtHGmEv
— Yogi Adityanath Office (@myogioffice) May 26, 2021
यानी दफनाए गए शवों की ताजा तस्वीरों को कोरोना में हुई मौतों से जोड़कर इंटरनेट मीडिया में हो-हल्ला मचाया जा रहा है। दैनिक जागरण के पास 18 मार्च, 2018 की श्रृंगवेरपुर घाट पर दफनाए गए शवों की ऐसी ही तस्वीर है, जो तब और अब के हालात में एक जैसी ही दिखती है।
रिपोर्ट के अनुसार फाफामऊ के साथ ही श्रृंगवेरपुर में ऐसे हजारों शव दफन किये जाते हैं। इन शवों में से अधिकतर शव सफेद दाग, कुष्ठ रोग, सर्पदंश सहित अकाल मौतों से जुड़े होते हैं। आजकल यहां पर दफन कई वर्ष पुराने शव को दिखाकर उसको कोरोना वायरस संक्रमण से हुई मौत से जोड़ा जा रहा है। कई पत्रकार भी सोशल मीडिया पर ऐसी ही शवों की फोटो को वायरल कर सनसनी फैला रहे हैं।
दैनिक जागरण ने इस फोटो के जरिये बताया कि यह तस्वीर 18 मार्च 2018 की है, जब कुंभ 2019 के क्रम में तीर्थराज प्रयाग के श्रृंगवेरपुर का कायाकल्प हो रहा था। दैनिक जागरण के फोटो जर्नलिस्ट मुकेश कनौजिया ने इसे अपने कैमरे में कैद किया था उस समय न कोरोना जैसी आपदा थी और न शवों को दफन करने की कोई मजबूरी। यह माना जाता है कि यह परंपरा जो यहां कई हिंदू परिवारों में पुरखों से चली आ रही है। सफेद दाग, कुष्ठ रोग, सर्पदंश सहित अकाल मौतों से जुड़े हुए शवों को गंगा नदी की निर्मलता के लिहाज से उचित नहीं है।
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अब के हालात को समझने के लिए जागरण प्रयागराज के संपादकीय प्रभारी राकेश पांडेय के साथ श्याम मिश्रा, पंकज तिवारी, अफजल अंसारी और फोटो जर्नलिस्ट मुकेश श्रृंगवेरपुर सहित गंगा किनारे के करीब एक दर्जन गांवों में पहुंचे। 70 किलोमीटर से अधिक की यात्रा में टीम ने अंतिम संस्कार के लिए शव लेकर आए लोगों, गांव के बुजुर्गो से लेकर घाट के पंडा समाज तक से बात की। रिपोर्ट के अनुसार, जिलाधिकारी, प्रयागराज भानुचंद्र गोस्वामी ने कहा कि, “प्रयागराज के श्रृंगवेरपुर और फाफामऊ घाट पर हिंदू परिवारों में शव दफन करने की परंपरा अरसे से हैं। हमें परंपरा को भी ठेस नहीं पहुंचानी है न ही नदी पर्यावरण की अनदेखी करनी है। यानी स्पष्ट है कि शवों को गंगा किनारे रेती में दफ़नाने की परंपरा कोई नयी नहीं है। हालाँकि जैसे गिद्ध शवों के पास मंडराने लगते हैं वैसे ही कुछ पत्रकार योगी सरकार पर लांछन लगाने के लिए इस क्षेत्र के इस परंपरा पर सनसनी फैला कर अपना फायदा उठा रहे हैं। नए तथ्य सामने आने के बाद कोविड से हुई मौतों के कारण शवों को दफ़नाने से जुड़ी थ्योरी अब खारिज हो चुकी है।