तुर्की के विदेश मंत्री, पाकिस्तान के पीएम और कतर के राजा, पुन: आये सऊदी की शरण में

सऊदी के बिना नहीं चलेगा इन देशों का काम

सऊदी अरब

सऊदी अरब मुस्लिम जगत की एकमात्र सुपरपॉवर है, यह तथ्य एक सर्वविदित है। ईरान, तुर्की, कतर जैसे देश समय-समय पर सऊदी के प्रभुत्व को चुनौती देने का प्रयास भले करें, लेकिन यह सत्य है कि आज भी सऊदी अरब ही मुस्लिम जगत का सबसे शक्तिशाली देश और प्रवक्ता है। पिछले कुछ समय में सऊदी से अपने संबंध खराब करने के बाद, अब तुर्की, पाकिस्तान और कतर ने पुनः सऊदी की शरण ले ली है।

कतर के शेख तमीम बिन हामिद अल थानी सोमवार सऊदी अरब की राजधानी जेद्दा पहुंचे। तीन वर्ष तक चले सऊदी-कतर टकराव के बाद यह शेख तमीम की पहली सऊदी यात्रा थी। सऊदी के राजकुमार मुहम्मद बिन सलमान ने उनका स्वागत किया और दोनों ने विभिन्न मुद्दों पर आपसी सहयोग को लेकर चर्चा की।

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वहीं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान 9 मई को सऊदी पहुंचे। इमरान तीन दिवसीय दौरे पर सऊदी गए हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का यह दौरा बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दौरा पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर बदले गए स्टैंड के बाद हुआ है।

बता दें कि सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच टकराव का मुख्य कारण यही था कि सऊदी अरब ने धारा 370 हटाए जाने के मुद्दे पर पाकिस्तान की ओर से चलाए जा रहे प्रोपोगंडा को समर्थन नहीं दिया था। सऊदी अरब ने इस मुद्दे पर भारत का साथ दिया था जिसके बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने यह कह दिया था कि पाकिस्तान मुस्लिम मुमालिक में सऊदी से अलग गुट बनाने का समर्थन करता है।

पाकिस्तान ने सीधे सऊदी के वर्चस्व को चुनौती दे दी थी। इसके बाद सऊदी अरब ने पाकिस्तान के विरुद्ध कई आर्थिक कार्रवाईयां कीं, जिससे अंततः पाकिस्तान ने समझौते का रास्ता अपनाया। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के हालिया दौरे से ठीक दो दिन पहले पाकिस्तान के विदेश मंत्री का यह बयान सामने आया की धारा 370 भारत का आंतरिक मामला है।

लेकिन कतर और पाकिस्तान के अतिरिक्त तुर्की के विदेश मंत्री ने भी सऊदी की यात्रा की है। तुर्की और सऊदी के बीच जमाल खाशगोई की हत्या के बाद से ही तनाव चल रहा था हालांकि तनाव के मूल में मुस्लिम जगत का एकमात्र प्रवक्ता बनने के लिए दोनों देशों के बीच चल रही प्रतिस्पर्धा ही थी।

सऊदी अरब और तुर्की के बीच संबंधों के सुधरने का कारण सम्भवतः अमेरिकी राजनीति में आया बदलाव है। बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के कारण दोनों देशों को अपने समीकरण नए सिरे से साधने पड़ रहे हैं। बाइडेन प्रशासन इस समय रूस को वैश्विक स्तर पर अलग थलग करने का प्रयास कर रहा है, ऐसे में तुर्की द्वारा S 400 खरीदने को लेकर अमेरिका और तुर्की के बीच तनाव और बढ़ गया है।
हाल में ही अमेरिका ने आर्मेनियन नरसंहार को स्वीकार करके तुर्की को कूटनीतिक झटका दिया था। सम्भवतः यही कारण है कि तुर्की भी सऊदी के साथ रिश्ते बेहतर करने को उत्सुक है।

मक्का-मदीना के कारण तो सऊदी मुस्लिम जगत के केंद्र में है ही, किन्तु उसकी शक्ति का वास्तविक कारण उसकी मजबूत अर्थव्यवस्था है। तेल के व्यापार से सऊदी अरब ने अकूत संपत्ति हासिल की है और अब सऊदी इस धन का उपयोग करके अपनी अर्थव्यवस्था को तेल आधारित अर्थव्यवस्था के बजाए और विस्तृत बनाना चाहता है। प्रिंस सलमान की विजन 2030 योजना एक महत्वाकांक्षी योजना है, जो पूरे क्षेत्र के आर्थिक ढांचे को बदल सकती है।

वर्तमान समय में प्रिंस बिन सलमान ने आधुनिकीकरण पर जैसा जोर दिया है, उसे देखकर कोई भी यह समझ सकता है कि सऊदी आने वाले समय में पश्चिम एशिया के आर्थिक विकास में सबसे बड़े खिलाड़ी के रूप में उभरेगा। ऐसे में कतर, पाकिस्तान और तुर्की, कोई भी सऊदी अरब से संबंध खराब करके नहीं चलना चाहता।

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