अफवाहों का असर कितना बुरा हो सकता हैं, ये बात अब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में हुए मौतों के तांडव के जरिए समझी जा सकती है। पिछले एक महीने से लेकर अब तक AMU के करीब 38 सेवारत और सेवानिवृत्त Professors की कोरोनावायरस के कारण मृत्यु हो चुकी है, जिसको लेकर कहा गया कि AMU में एक और ख़तरनाक स्ट्रेन आ गया है, जबकि ये फेक न्यूज थी, क्योंकि इन सभी की मृत्यु वैक्सिनेशन न कराने के कारण हुई थी। इन सभी ने वैक्सीन के दुष्प्रभावों को लेकर फैलाई जा रहीं अफवाहों पर विश्वास कर लिया और वैक्सीन को न कह दिया, जिसके बाद ये सभी कोरोना की मौत मर गए।
देश में जब कोरोनावायरस की दोनों वैक्सीन लगना शुरू हुईं थीं, तभी से वैक्सीन की प्रभाविकता और साइड इफेक्ट्स को लेकर अफवाहें फैलाईं जा रही थी। इसमें अफवाह ये थीं कि वैक्सीन लगाने से भी कोरोनावायरस हो सकता हैं। इतना ही नहीं वैक्सीन से नपुंसकता और मृत्यु होने तक के साइड इफेक्ट्स के बारे में अफवाहें फैलाईं गईं थी जो कि लोगों को भयभीत कर रही थी, और इसके चलते देश में वैक्सीनेशन की रफ्तार आज भी धीमी है।
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मुख्यधारा की वामपंथी मोदी विरोधी मीडिया से लेकर राजनीतिक दलों द्वारा फैलाई गईं इन्हीं अफ़वाहों के बहकावे में आकर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) जैसी देश की प्रतिष्ठित संस्था के Professors ने उम्र की सीमा में कोरोना होने के बावजूद वैक्सीन नहीं लगवाई और बिना वैक्सिनेशन ही रहना उचित सहज समझा। इन Professors का यही अंधविश्वास इन्हें सबसे ज्यादा भारी पड़ा और शायद इसी के चलते इतने सारे लोगों की मृत्यु एक साथ हुई है।
Tfi आपको पहले ही बता चुका है कि कैसे इन AMU के Professors की मौतों के जरिए प्रोपेगैंडा चलाने की कोशिश की गई और वैक्सीन तक पर सवाल खड़े किए गए, लेकिन जब जांच में रिपोर्ट सामने आई तो चौंकाने वाली बात यही थी कि किसी ने वैक्सीन ही नहीं लगवाई थी। वहीं इस खुलासे के बाद उन लोगों के मुंह पर भी ताले लग गए, जो AMU में कोऱोना के नए स्ट्रेन का दंभ भर रहे थे, क्योंकि सारा किया-धरा वैक्सीन का नहीं बल्कि अफवाहों का था।
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ऐसे में AMU के Professors की मौत के जिम्मेदार वो ही लोग हैं जिन्होंने देश में कोरोनावायरस की वैक्सीन को लेकर अफवाहें फैलाईं, जिस पर विश्वास करके AMU के शिक्षित Professors भी भ्रमित हो गए और इतनी बड़ी संख्या में AMU से मौतों की ख़बर आई।