Allopathy पश्चिम की देन है, पर ये आयुर्वेद से घृणा करते हैं, इन्हें घृणा आयुर्वेद से नहीं, आयुर्वेद की हिन्दू जड़ों से है

ये हिन्दू को श्रेष्ठ कैसे मानें?

धन्वंतरि आयुर्वेद patanjali

PC: Jaipur Stuff

विश्व की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति अगर कोई है, तो बेशक आयुर्वेद ही है। भगवान विष्णु के अवतार माने जाने धन्वंतरि जिन्हें चिकित्सा जगत का देवता माना जाता है। इसके विपरीत पाश्चात्य संस्कृति द्वारा अपनाई गई एलोपैथी की चिकित्सा पद्धति की हमेशा ही आयुर्वेद के साथ तुलना कर आयुर्वेद को छोटा दिखाने की कोशिश की जाती रही हैं। यद्यपि आयुर्वेद का योगदान भारतीय संस्कृति में एलोपैथी से कहीं अधिक है। फिर भी आयुर्वेद को हीनता की दृष्टि से देखना और इनसे संबंधित डॉक्टरों का अपमान करना एलोपैथी चिकित्सकों का , स्वभाव बन गया है, जिसके खिलाफ आवाज उठाने की आवश्यकता है।

पिछले तीन चार दिनों में योग गुरु स्वामी रामदेव के एक बयान को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा इतना ज्यादा तूल दिया गया है, कि आयुर्वेद से घृणा करने वाले वामपंथी भी रामदेव के सहारे आयुर्वेद के प्रति अपनी कुंठा व्यक्त कर रहे हैं। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि कोरोना काल में एलोपैथी के जरिए महामारी की इस जंग को सहज ढंग से लड़ा जा रहा है, परंतु इस दौरान लोग अपनी इम्मयुनटी बढ़ाने के लिए आयुर्वेदिक नुस्खे अपनाकर भी ठीक हो रहे हैं। यही कारण है कि भारत में मृत्यु दर अन्य देशों की तुलना में बहुत ही कम है। ऐसे में ये कहना अपमान जनक होगा कि आयुर्वेद कहीं से भी एलोपैथी से कमतर या व्यर्थ है, क्योंकि धन्वंतरि द्वारा सृजित आयुर्वेद का डंका विश्व में उस वक्त से है, जब एलोपैथी का कोई अस्तित्व तक नहीं था। इसके बावजूद सारी दिक्कत केवल इस बात से है कि आयुर्वेद की उत्पत्ति के साथ हिंदुत्व जुड़ाव है।

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धन्वंतरि जहां भारतीय संस्कृति के चिकित्सा जगत के देवता हैं तो इसी संस्कृति में दूसरी शताब्दी में आई चरक संहिता का नाम भी मुख्य है। इसके अंतर्गत मानव शरीर के अनेकों रोगों और उनके रोकथाम सहित चिकित्सा की पद्धति मौजूद हैं। वहीं आयुर्वेद में एक नाम महर्षि सुश्रुत का भी है जिन्हें शल्य चिकित्सा का जनक माना जाता है। इनको लेकर मान्यता है कि ,आज की एलोपैथी तकनीकों से इतर सुश्रुत ने 2,500 वर्ष पहले ही प्लास्टिक सर्जरी कर ली थी।

धन्वंतरि द्वारा सृजित आयुर्वेद के ही एक अंग के रूप में विख्यात योग को भी एक विशेष सम्मान प्राप्त है, जिसके लिए महर्षि पतंजलि का विशेष योगदान रहा है। इससे आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धति को एक विशेष बल मिला। आयुर्वेद को लेकर सबसे बड़ा फायदा ये है कि इसके इलाज़ में कोई नकारात्मक परिणाम नहीं दिखते हैं, जो इसे चिकित्सा की सर्वोत्तम पद्धति का दर्जा प्रदान करते हैं, लेकिन आज के वक्त में आयुर्वेद को लेकर अनेकों भ्रम फैलाए जा रहे हैं।

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रामदेव के एक बयान के बाद आईएमए से लेकर वैश्विक स्तर तक के डॉक्टर रामदेव को लताड़ने के साथ ही आयुर्वेद के प्रति अपनी घृणा का प्रदर्शन कर रहे हैं। रामदेव के बयानों को छोड़ भी दें तो भी हमने देखा है कि किस तरह आयुर्वेद के प्रति एलोपैथी के डाक्टरों के मन में शंका रहती है। वैज्ञानिक प्रमाणों और रिसर्च का हवाला देकर एलोपैथी की दुकान चलाने वाले ये लोग आए दिन कभी योग की निराधार आलोचना करते हैं, तो कभी आयुर्वेद की। आयुर्वेदिक दवाओं को  व्यर्थ बताने के साथ ही उनके डॉक्टरों के प्रति इनकी हीन भावना किसी से छिपी नहीं है।

एलोपैथी के प्रचारक जहां एक तरफ आयुर्वेद को छोटा बताकर अपनी लकीर बड़ी करने का दंभ भरते हैं, तो दूसरी ओर भारत सरकार आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए एक अलग आयुष मंत्रालय चला रही है। इसके अंतर्गत आयुर्वेद के फायदों को अधिकतम लोगों तक पहुंचाने और रोगों को जड़ से खत्म करने का अभियान चल रहा है। धन्वंतरि द्वारा सृजित आयुर्वेद की खासियत ये भी है कि ये न केवल मरीज़ की पीड़ा का समाधान ढूंढता है, बल्कि उस रोग को जड़ से खत्म करने की क्षमता रखता है, जबकि एलोपैथी केवल लक्षणों के आधार पर काम करती है। यही कारण है कि विदेशों में अब योग से लेकर आयुर्वेद तक की लोकप्रियता बढ़ रही है।

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एलोपैथी दवाइयां बनाने वाली कंपनियों तक ने आयुर्वेद में इस्तेमाल होने वाली दवाओं का प्रयोग किया। पाश्चात्य संस्कृति में योग के प्रति लोगों का रुझान बढ़ना भी भारतीय पुरातन चिकित्सा पद्धति के विस्तार का ही प्रतीक है, क्योंकि ये पीढ़ी दर पीढ़ी अधिक मजबूत हुई है। इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाकर इसे खत्म करने की खूब कोशिशें की गईं, पर ये असंभव था, क्योंकि आयुर्वेद के परिणाम सार्थक ही रहे हैं।

आयुर्वेद बनाम एलोपैथी की बहस में आयुर्वेद को बेकार और दकियानूसी दिखाने की कोशिशें की जा रही हैं, जो कि आलोचनात्मक है, क्योंकि आयुर्वेद भारत में हम तब से अपना रहे हैं, जब पाश्चत्य संस्कृति के एलोपैथी का कोई अस्तित्व नहीं था। इसका मतलब ये नहीं कि एलोपैथी कारगर नहीं है, बस आशय सिर्फ इतना है कि आयुर्वेद को एलोपैथी की मौजूदगी में नकारा नहीं जा सकता, है क्योंकि आज भी जब किसी रोग को जड़ से खत्म करना होता है तो आयुर्वेद गेम चेंजर साबित होता है, और एलोपैथी पीछे रह जाता है।

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