देश में कोविड -19 की दूसरी लहर के बाद, कई राज्यों को ऑक्सीजन, ICU बैड्स और रेमेडीसविर आदि दवाओं की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि, ज्यादातर राज्य इन समस्याओं से निपटने और स्थिति को स्थिर करने के प्रयास में लगे हैं, परंतु दिल्ली अभी भी ऑक्सीजन की गंभीर कमी का सामना कर रही है और केजरीवाल अभी भी आरोप प्रत्यारोप का खेल खेल रहे हैं। हाई कोर्ट से डांट के बावजूद केजरीवाल सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है। दिल्ली सरकार के इसी रुख पर बीजेपी के प्रवक्ता गौरव भाटिया ने एक प्रोग्राम के दौरान खरी खोटी सुनाई।
गौरव भाटिया ने कहा, “जो हमारी पहल हुई है, ऑक्सीजन एक्सप्रेस इससे 1125 मीट्रिक टन ऑक्सीजन पहुंचाया गया है। ऐसी और भी ऑक्सीजन एक्सप्रेस दिल्ली समेत कई राज्यों में ऑक्सीजन पहुंचाई जाएगी। दुख तब होता है जब इस पर राजनीति होती है।“
भाटिया ने कहा, “ऑक्सीजन कोई हवा में नहीं छोड़ दी जाती है। राज्य का सब्जेक्ट होता है हेल्थ। मेरे हाथ में दिल्ली और राजस्थान सरकार को लगी फटकारें हैं। इनके पास टैंक्स नहीं थे। हमारे पास जो भी टैंक थे उपलब्ध करवाए। दिल्ली को 25 बड़े ऑक्सीजन सिलेंडर दिए गए हैं। यह सही है कि लोगों को मतलब नहीं है कि लापरवाही किससे हुई। लोगों को परिजनों की जान से मतलब है।’
राघव चड्ढा का नाम लेते हुए भाटिया ने कहा, “हाई कोर्ट ने कहा था कि लॉलीपॉप मत दीजिए ये बताइए कि आप ऑक्सीजन कैसे लेंगे।” इस पर राघव चड्ढा ने जवाब देते हुए कहा, “यह आपदा हिंदुस्तान पर आई है, मानवता पर आई है। इसे इस नजर से न देखा जाए कि किस सरकार की कमी है। कोई भी सरकार इतनी बड़ी त्रासदी से निपटने के लिए तैयार नहीं थी।”
यह सच है कि कोई सरकार इस बड़ी त्रासदी से निपटने के लिए तैयार नहीं थी, लेकिन जिस तरह से केजरीवाल सरकार ने अपनी अक्षमता का परिचय दिया है वह आने वाले समय में एक उदाहरण के तौर पर पेश किया जाएगा।
हैरानी की बात ये है की जब दिल्ली में ऑक्सीजन की खपत की तुलना मुंबई से होती है तो, ऐसा प्रतीत होता है कि दिल्ली में ऑक्सीजन की खपत उतने सक्रिय मामलों के बावजूद मुंबई की खपत से दोगुना है।
उदाहरण के लिए, 20 अप्रैल को, मुंबई में 84,743 कोरिया के सक्रिय मामले थे, जो पिछले 15 दिनों में सबसे अधिक था और शहर में ऑक्सीजन की खपत 245 मीट्रिक टन थी। वहीं 3 मई को दिल्ली में 89,592 सक्रिय मामले थे, लेकिन उस दिन इसकी ऑक्सीजन की मांग 976 मीट्रिक टन, जो कि मुंबई की खपत से चार गुना अधिक थी। जबकि उस दिन देश की राजधानी में 433 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की खपत हुई, जो मुंबई की खपत का दोगुना था। अब इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कहां गड़बड़ हो रही है।
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दिल्ली सरकार का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा अपर्याप्त आवंटन और आपूर्ति के कारण उसे ऑक्सीजन की कमी का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन सच यह है कि ऑक्सीजन संकट केजरीवाल सरकार की अपनी विफलताओं के कारण हुआ है। दिल्ली सरकार के पास न तो ऑक्सीजन logistics का कोई प्रबंध था और न ही अस्पतालों को ऑक्सीजन आवंटन की कोई योजना।
दिल्ली में एक सप्ताह पहले तक अस्पतालों के लिए ऑक्सीजन की दैनिक आवंटन की कोई योजना नहीं थी। इससे पहले, अस्पतालों का ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ताओं के साथ अनुबंध था। लेकिन, यह व्यवस्था oxygen की मांग में अचानक उछाल के बाद ठप पड़ गई। जिससे oxygen की भारी कमी होने लगी और यह पता लगाना कठिन हो गया कि ऑक्सीजन जा कहा रहा है।
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यह 29 अप्रैल को ही था, जब संकट अपने चरम पर था, कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली के प्रत्येक अस्पताल द्वारा ऑक्सीजन की मात्रा निर्धारित करने का आदेश जारी किया। यह आदेश उच्च न्यायालय के निर्देशों के बाद भी आया। बता दें कि सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट ने केजरीवाल सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था, “oxygen सिलेंडर लाखों रुपए में बेचे जा रहे हैं। यह गिद्धों की तरह बर्ताव करने का समय नहीं है। आपका [दिल्ली सरकार का] रवैया गैर जिम्मेदाराना है। oxygen की कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ आपके पास कार्रवाई करने की शक्तियां हैं। सिलेंडर (ऑक्सीजन) का कारोबार पूरी तरह गड़बड़ है। कालाबाजारी की सूचनाएं सामने आ रही है। आप दिल्ली में सरकार चला रहे हैं। हालात सुधारने की जिम्मेदारी भी आपकी है।”
यह हैरानी की बात है कि दिल्ली में per capita ऑक्सीजन की सप्लाई सबसे अधिक है, यही नहीं केंद्र सरकार द्वारा oxygen दिया जा रहा है, DRDO ने ऑक्सीजन प्लांट लगाया है, विदेश से भी oxygen की मांग की गयी है परन्तु फिर भी oxygen की कमी है। लोगों को ऑक्सीजन मिलने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में गौरव भाटिया का केजरीवाल सरकार पर यह आरोप जायज है कि आखिर दिल्ली को मिलने वाला ऑक्सीजन जा कहा रहा है?