“10 करोड़ किसानों को रोजगार क्या तुम दोगे?”, डेयरी उद्योग विरोधी PETA को AMUL ने लगाई लताड़

PETA- अपने पशु-प्रेम की आड़ में भारत के डेयरी फार्म को बर्बाद करना चाहती है ये विदेशी संस्था!

vegan Milk peta

Mpnews.live

हिपोक्रेसी का पर्याय बन चुकी संस्था PETA एक बार फिर से विवादों में है। इस बार इस संस्था ने AMUL से पंगा लिया और उम्मीद के मुताबिक मुहं की खानी पड़ी। PETA ने अमूल को पत्र लिख कर vegan Milk के उत्पादन के लिए कहा था, लेकिन अमूल ने ऐसा जवाब दिया है कि PETA की बोलती ही बंद हो गयी।

दरअसल, पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) इंडिया ने 26 मई को कहा था कि, “अमूल अपने उत्पादों के उत्पादन के लिए ‘plant-milk’ (vegan Milk ) बनाना शुरू कर सकता है।” एनजीओ ने दावा किया था कि भारतीय किसानों को शाकाहारी भोजन से काफी फायदा होगा।

PETA के इस मांग पर अमूल के प्रबंध निदेशक आर एस सोढ़ी ने ट्वीट कर कहा कि, “क्या PETA वाले 10 करोड़ डेयरी किसानों (70% भूमिहीन) को आजीविका देंगे, क्या वे (PETA) उनके बच्चों की स्कूल फीस का भुगतान करेंगे .. कितने लोग कारखाने में लैब निर्मित रसायनों और सिंथेटिक विटामिन से बने महंगे भोजन का खर्च उठा सकते हैं?”

उन्होंने यह भी कहा कि, “पेटा चाहती है कि अमूल 100 मिलियन गरीब किसानों की आजीविका छीन ले और 75 वर्षों में किसानों के पैसे से बनाए गए सभी संसाधनों को genetically modified Soya के लिए अपने मार्केट को MNCs के हवाले कर दे, जो अपने उत्पादों को अत्यधिक कीमतों में बेचते हैं जिसे औसत निम्न मध्यम वर्ग बर्दाश्त नहीं कर सकता।”

अब यह भी खबर सामने आ रही है कि पीपल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल (पेटा) ने अमूल को एक पत्र लिखा था, जिसमें कहा गया था कि डेयरी सहकारी सोसाइटी को लोकप्रिय हो रहे वीगन खाद्य और दुग्ध बाजार (vegan Milk ) से फायदा लेना चाहिए। पेटा इंडिया ने कहा, ”हम संयंत्र आधारित उत्पादों की मांग पर ध्यान देने के बजाए अमूल को फलते-फूलते शाकाहारी भोजन और दूध के बाजार से लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहेंगे। कई और कंपनियां भी बाजार में बदलाव के हिसाब से काम कर रही है और अमूल को भी ऐसा ही करना चाहिए।”

इसके बाद सोढ़ी ने स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-समन्वयक अश्विनी महाजन के एक ट्वीट को रीट्वीट किया, जिसमें बताया गया की ज्यादातर डेयरी किसान भूमिहीन हैं। उन्होंने इस बात से सहमती जताई है कि vegan Milk से कईयों की आजीविका का स्रोत खत्म हो जाएगा।

बता दें कि कुछ दिनों पहले PETA ने अमूल के खिलाफ उसके एक प्रचार के लिए The Advertising Standards Council of India (ASCI) से शिकायत भी की गई थी। अमूल ने ‘Myths vs Facts’ के नाम से VEGAN MILK पर फैलाये जा रहे झूठ का पर्दाफाश किया था और बताया था कि सिंथेटिक विटामिन और रसायनों से बने पेय को MILK या दूध नहीं कहा जा सकता है। उस विज्ञापन में यह भी कहा गया था कि “plant-based beverages are impersonating and masquerading as dairy products.”

हालाँकि, PETA की शिकायत को ASCI ने स्पष्ट रूप से ख़ारिज कर दिया था। ASCI ने पाया था कि अमूल का विज्ञापन सही था, क्योंकि भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) के नियमों के अनुसार, (vegan Milk)  plant-based दूध ‘दूध’ की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता है। FSSAI के दिशानिर्देशों के अनुसार, दूध को शाकाहारी उत्पाद माना जाता है। बता दें कि अमूल के खिलाफ इस शिकायत में PETA के साथ ब्यूटी विदाउट क्रुएल्टी (बीडब्ल्यूसी), और शरण इंडिया भी थीं।

तब सोढ़ी ने कहा था कि ये उत्पाद और कुछ नहीं बल्कि बड़ी कंपनियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा रसायनों और सिंथेटिक सामग्री से बने genetically modified खाद्य पदार्थ हैं। उन्होंने आगे कहा कि भारतीय डेयरी उद्योग सदियों से इंसानों और जानवरों के सह-अस्तित्व का एक मॉडल है, लेकिन विदेशी फंडेड  एनजीओ भारतीय डेयरी उद्योग को कलंकित करने के लिए अभियान चला रहे हैं जो पश्चिमी दुनिया के विपरीत factory farm industry नहीं है। मवेशी एक डेयरी किसान के परिवार का हिस्सा हैं, कोई उन्हें प्रताड़ित नहीं करता है।“

इस मामले पर TFI की सीनियर एडिटर महिमा पांडे ने ट्वीट किया कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था का आधार रहा है पशुपालन और कृषि। देश की तकरीबन 70% आबादी कृषि और पशुपालन पर निर्भर है। वास्तव में ये संस्था देश में जारी डेयरी फार्म की छवी खराब कर vegan Milk  जैसी बनावटी चीजों को बढ़ावा देना चाहती है।“

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उन्होंने सवाल किया कि PETA ने दावा किया था कि भारतीय किसानों को शाकाहारी भोजन से काफी फायदा होगा, पर कैसे? और बेहतर होगा ये संस्था अपने मूल उद्देश्यों पर फोकस करें जो खुद जानवरों को बचाने के नाम पर उनकी हत्या कर देती है। यह वास्तविकता भी है, PETA एक विवादित संस्था है जो अपने फायदे के लिए किसी भी तरह के प्रोपोगेंडे को बढ़ावा देती है। पेटा कई बार अपने पशु-प्रेम की आड़ में हिन्दू-विरोधी एजेंडा को बढ़ावा देती आई है। वैसे तो पेटा हर धर्म के ऐसे त्यौहारों पर टिप्पणी करता है, जो किसी न किसी तरीके से पशुओं के अधिकारों का हनन करते हैं, लेकिन जब बात हिन्दू धर्म के त्यौहारों की आती है, तो पेटा अपनी एजेंडावादी मानसिकता के चलते ऐसे मामलों में कुछ ज़्यादा ही दिलचस्पी दिखाता है।

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