हेमंता बिस्वा सरमा असम का लोकप्रिय चेहरा तो हैं ही, हिंदुत्व के फायरब्रांड नेता भी हैं। किंतु हेमंता बिस्वा सरमा की नियुक्ति केवल असम को ध्यान में रखकर नहीं हुई है, बल्कि इसके जरिये भाजपा, पश्चिम बंगाल के अगले चुनाव और आने वाले 5 सालों की राजनीति को साधने की कोशिश कर रही है। हेमंता की नियुक्ति शुवेन्दु अधिकारी के लिए एक स्पष्ट संदेश भी है कि वह भाजपा के लिए पश्चिम बंगाल में राजनीतिक चेहरा बन सकते हैं।
शुवेन्दु की तरह ही हेमंता भी भाजपा के कार्यकर्ता नहीं रहे हैं। वह कांग्रेस से भाजपा में आए थे। किन्तु उन्होंने 5 सालों तक असम भाजपा के लिए बहुत मेहनत की और भाजपा की जमीन को मजबूत किया। उन्होंने हिंदुत्व के कोर एजेंडा को पूरी तरह आत्मसात किया। उन्होंने खुलकर बांग्लादेशी घुसपैठियों और मुस्लिम कट्टरपंथ के विरुद्ध आवाज उठाई, असम की संवृद्ध संस्कृति को बचाने के लिए मुहिम छेड़ी।
यह भी पढ़े – असम CM के रूप में हेमंता बिस्वा सरमा की नियुक्ति, अगले बंगाल चुनाव में BJP के लिए साबित होगी मास्टरस्ट्रोक
इस समय पश्चिम बंगाल में भी वैसे ही हालात हैं जैसे असम में थे। जिस प्रकार असम लम्बे समय से बांग्लादेशी घुसपैठियों से त्रस्त रहा है, वैसे ही पश्चिम बंगाल भी त्रस्त है। इस्लामिक कट्टरपंथ ने बांग्ला संस्कृति के लिए चुनौती पेश कर दी है। रामकृष्ण परमहंस की भूमि पर दुर्गा पूजा की अनुमति मिलना दूभर हो गया है। ऐसे में शुवेन्दु के पास अवसर है कि वह अगले 5 सालों में पश्चिम बंगाल में वैसा ही संघर्ष दिखाएं जैसा हेमंता बिस्वा शर्मा ने असम में दिखाया है।
इस समय पश्चिम बंगाल में हिंदुओं की क्या हालत है यह जगजाहिर हो चुका है। बड़ी संख्या में उनका असम की ओर पलायन हो रहा है। तृणमूल के कार्यकर्ता और मुस्लिम समुदाय के लोग मिलकर ऐसे हिंदुओं को मार पीट रहे हैं जिन्होंने तृणमूल का समर्थन नहीं किया था। यहाँ तक कि भाजपा नेतृत्व भी परिस्थितिजन्य अक्षमता का शिकार है। ऐसे में शुवेन्दु अधिकारी के पास मौका है कि वह इस लड़ाई में पीड़ित हिंदुओं का नेतृत्व करें।
यह भी पढ़ें :- TMC को सत्ता से बाहर करना है तो सुवेंदु को बनाना होगा बंगाल का हेमंता
शुवेन्दु ने वह कारनामा किया है जिसकी उम्मीद बड़े बड़े राजनीतिक विशेषज्ञ भी नहीं कर रहे थे। उन्होंने ममता बनर्जी को नंदीग्राम सीट पर पराजित किया है। ममता की हार तृणमूल के लिए भी एक मनोवैज्ञानिक धक्का है, भले ही उसने चुनाव जीत लिया है। तृणमूल के व्यवहार से यह बात साफ जाहिर भी हो रही है कि तृणमूल नंदीग्राम की पराजय स्वीकार नहीं कर पा रही। ऐसे में शुवेन्दु का नेतृत्व तृणमूल के लिए चुनौती बन सकता है।
शुवेन्दु अधिकारी कई सालों से बंगाल की राजनीति के स्तंभ रहे हैं। शुवेन्दु लम्बे समय तक तृणमूल के साथ रहे हैं ऐसे में तृणमूल को बेहतर ढंग से समझते हैं।
इसके पूर्व जब पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट शासन था और लोकतंत्र मृतप्राय हो गया था तब भी उन्होंने CPM के विरुद्ध लोकतंत्र की स्थापना के लिए ममता के साथ मिलकर लड़ाई लड़ी थी। आज ममता न सिर्फ लोकतंत्र, बल्कि बंगाली संस्कृति और पश्चिम बंगाल में हिन्दू अस्तित्व के लिए खतरा बन गई हैं, ऐसे में शुवेन्दु से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वह भावी संघर्ष में बंगाल भाजपा का नेतृत्व करेंगे एवं हेमंता की तरह अगले विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा बनकर उभरेंगे।